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दोफाड़ होती सिख कौम का मार्गदर्शन करें अकाल तख्त साहिब

सिख कौम में श्री अकाल तख्त साहिब का सर्वोच्च स्थान है और समय-समय पर श्री अकाल तख्त साहिब से सिख पंथ को मार्गदर्शन प्राप्त होता भी आया है। अगर किसी व्यक्ति या संस्था ने सिख मर्यादा के विपरीत जाकर या फिर सिखी को नुकसान पहुंचाने हेतु कोई कार्य किया तो उसी समय श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिबान के द्वारा उसके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उसे दण्डित भी किया गया। इतिहास गवाह है कि देश की प्रमुख शख्सियतों में जिनका नाम दर्ज है। महाराजा रणजीत सिंह खालसा राज के समय देश की अगुवाई करते हुए कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक उनका दबदबा था, बूटा सिंह जो कि देश के गृहमंत्री रहे, जत्थेदार संतोख सिंह जिनके द्वारा दिल्ली के ज्यादातर एतिहासिक गुरुद्वारों को सरकार से जमीनें लेकर दी, सिख बच्चों को बेहतर एजुकेशन मिल सके इसके लिए साथियों के साथ मिलकर गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूलों का निर्माण करवाया। इसी तरह अनेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने सिख कौम के लिए बेहतर कार्य किये परन्तु जब इनके खिलाफ श्री अकाल तख्त पर शिकायत पहुंची और कार्रवाई के दौरान उन्हें दोषी पाया गया तो श्री अकाल तख्त साहिब से उन्हें धार्मिक सजाएं मिली जिसे इन लोगों ने निभाया भी। मगर जत्थेदार साहिबान को प्रभाव में लेकर राजनीतिक लोगों के द्वारा अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए श्री अकाल तख्त साहिब का इस्तेमाल किया जाने लगा जिससे श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों को कई बार सिखों के द्वारा चुनौती भी दी गई। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार आखिरकार हैं तो शिरोम​िण गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के तनख्वाहदार मुलाजिम ही इसलिए वह चाहकर भी अपने आकाओं के खिलाफ जाकर किसी भी व्यक्ति को सजा यां माफी कैसे दे सकते हैं। कई ऐसे मामले देखे गये जिसमें सिख कौम को नुकसान पहुंचाने वालों को मामूली सी सजा लगाकर ही छोड़ दिया गया। यहां तक कि एक डेरा मुखी के तो श्री अकाल तख्त साहिब पर हाजिर हुए बिना ही उसे माफी दे दी गई मगर जिनसे इनके आकाओं को रंजिश हों उनकी मामूली गल्ती को भी नहीं बख्शा जाता। आज भी अकाल तख्त साहिब पर अनेक ऐसे मामले लम्बित होंगे जिन पर कोई सुनवाई नहीं की गई मगर छोटी मोटी गल्तियां करने वालों को आए दिन श्री अकाल तख्त साहिब पर बुलाकर कार्रवाई होती रहती है।
बीते दिनों भाजपा से जुड़े एक सिख नेता द्वारा मस्जिद के स्थान पर गुरुद्वारा बनाया जाने वाला बयान सोशल मीडीया पर इस कदर वायरल हुआ कि उसके बाद देशभर से सिख नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आने लगी क्योंकि आज तक किसी ने इस इतिहास के बारे में सुना तक नहीं था। कहीं भी ऐसा कोई जिक्र इतिहास में नहीं है जहां पर सिखों के द्वारा किसी अन्य धर्म के धार्मिक स्थल को नुकसान पहुंचाकर वहां गुरुद्वारा सुशोभित किया हो। इसके बाद बयान देने वाले नेता के द्वारा हवाला दिया गया कि उन्होंने शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी द्वारा प्रकाशित एक किताब में इस विषय को पढ़ा था। मौजूदा हालात ऐसे बन चुके हैं कि सिखों का एक वर्ग बयान देने वाले नेता का समर्थन करते हुए शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को कटघरे में खड़ा कर श्री अकाल तख्त साहिब पर कार्रवाई की गुहार लगा रहा है तो दूसरी ओर समूचा विपक्षी दल यहां तक कि भाजपा से संबंधित कई सिख नेता भी ऐसे ब्यान को इतिहास से छेड़छाड़ करने और सरकार की चापलूसी कर बदले में कोई बड़ा पद लेने की बात करते हुए अकाल तख्त साहिब से बयानबाजी करने वाले नेता के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इसमें वह लोग भी शामिल हैं जिन्होंने बीते समय में स्वयं श्री अकाल तख्त साहिब से टकराव की स्थिति रखते कई बार अकाल तख्त साहिब के आदेशों को नजरअंदाज किया। अब ऐसे में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिब की जिम्मेवारी बनती है कि वह दोफाड़ हो रही कौम का मार्ग दर्शन करे और असल इतिहास संगत के सामने लेकर आए। वैसे देखा जाए तो बयान देने वाले सिख नेता बधाई के पात्र जिसके बयान के बाद यह सामने आया जबकि शिरोमणी कमेटी द्वारा काफी साल पहले इसे छापा गया मगर आज तक किसी की नजर नहीं पड़ी। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिब को उन लोगों के प्रति कार्रवाई अवश्य करनी चाहिए जिनके द्वारा सिख इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया फिर भले ही शिरोमणी गुरुद्वारा कमेटी से सम्बिन्धित क्यों ना हों।
समरु की बेगम का इतिहास
गुरु तेग बहादुर जी की शहादत के बाद उनके धड़ को लक्खी शाह बंजारा द्वारा रायसीना गांव में स्थित अपने घर पर लाकर उनका अंतिम संस्कार किया गया। 1707ई. में गुरु गोबिन्द सिंह जी बहादुरशाह ज़फ्फर से मिलने दिल्ली आए तो उन्होंने इस स्थान पर एक मंजी लगाकर यादगार स्थापित की थी जिसे 1 अक्टूबर 1778 को दिल्ली के मुगल बादशाह के आदेश के बाद हटा कर मस्जिद बना दी गई। जिसका सिखों ने जमकर विरोध किया। समरू की बेगम जो कि मुगल बादशाह शाह आलम और बाबा बघेल सिंह की भी मुंह बोली बहन बनी हुई थी। समरु की बेगम गुरु साहिब का भी पूर्ण सत्कार करती थी जिसने सिखों की मांग को बादशाह तक पहुंचाया। जिसके बाद एक समझौता बादशाह शाह आलम और समरु की बेगम के बीच हुआ। जिसके तहत सिख अपनी पसंद के किसी भी स्थान पर गुरुद्वारा बना सकते थे मगर गुरुद्वारा रकाबगंज को बनाने के लिए उस स्थान पर बनी हुई मस्जिद को वहां से हटाना जरूरी था। यह बात जैसे ही दिल्ली की मुस्लिम आबादी के बीच पहुंची तो लोगों ने इस पर आपत्ति जताई। मुस्लिम नेता कहने लगे कि सिखों को मस्जिद हटाने की इजाजत देकर बादशाह काफिर हो गया है। मुस्लिम नेता लोगों को साथ लेकर सम्राट शाह आलम के समक्ष पेश हुए। जिस पर उन्हंे बताया गया कि उसने सिखों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं वह उससे पीछे नहीं हट सकते। उसके बाद सहमति शायद इस बात पर बनी कि उस स्थान की खुदाई करवाई जाए। शाही वज़ीर को बुलाकर उसकी मौजूदगी में खुदाई करवाने पर गुरु साहिब के अस्थियों की राख वाले दो कलश मिलने पर यह स्थान सिखों को दिया गया जिसके पश्चात् यहां पर पुनः बाबा बघेल सिंह द्वारा गुरुद्वारा साहिब बनवाया जो कि आज गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब के रूप में सुशोभित है। मगर एक बात और गौर फरमाने वाली है कि सिखों ने मस्जिद जबरन नहीं तोड़ी बल्कि बादशाह के आदेश पर मुस्लिम भाईचारे की सहमति से उस समय मस्जिद हटाई गई क्योंकि प्रमाण मिल चुके थे कि यह स्थान गुरु तेग बहादुर जी के संस्कार का स्थान है। इसलिए नेताओं को अपनी वाणी में मस्जिद तोड़कर गुरुद्वारा बनाने की बात पर संकोच करना चाहिए।
एजुकेशन सिस्टम में सुधार
सिख कौम के द्वारा लंगर तो बहुत लगाए जाते हैं पर बच्चों को एजुकेशन मुहैया करवाने में कौम कहीं ना कहीं दूसरे धर्मों से काफी पीछे दिखाई पढ़ती है। सिख कौम के पास साधनों की कोई कमी नहीं है। एक एक सिंह सभा के पास भी इतना बजट रहता है कि वह अपने क्षेत्र में जरुरतमंद सिख परिवारों के बच्चों को शिक्षा मुहैया करवा सकते हैं मगर ऐसा संभव तभी होगा जब इसके प्रति प्रबन्धकों की सोच होगी। जिन सिंह सभाओं यां संस्थाओं के अधीन स्कूल चल रहे हैं उन्हें और बेहतर बनाने के प्रयास करने चाहिए। बच्चों को एजुकेशन के साथ साथ धर्म और मातृ भाषा के प्रति भी ऐसी जानकारी देनी चाहिए जिससे बच्चे चाहकर भी धर्म से दूरी ना बना सकें। बच्चों को सिविल सर्विसिस की पड़ाई हेतु तैयारी करवानी चाहिए ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चे ब्यूरोक्रेट बनकर आगे चलकर कौम की बेहतरी के लिए कार्य करें। आज हालात ऐसे बनते जा रहे हैं कि उच्च पदों पर पगड़ीधारी सिख बहुत कम देखने को मिलते हैं और अगर यही हालात रहे तो शायद आने वाले समय में ढूंढने पर भी ना मिले। गुरु नानक पब्लिक स्कूल राजौरी गार्डन के चेयरमैन बलदीप सिंह राजा और मैनेजर जगजीत सिंह के द्वारा इस विषय को गंभीरतापूर्वक लेते हुए सिख बच्चों को सिविल सर्विसिस की तैयारी हेतु प्रयास किये जा रहे हैं। इस जोड़ी ने जब सेवा संभाली थी तो स्कूल काफी घाटे में चल रहा था, बच्चों की गिनती बहुत कम रह गई थी।
इन्होंने कड़ी मेहनत और सूझबूझ के साथ स्कूल को ना सिर्फ घाटे से उबारा बल्कि ऐसे हालात बना दिये कि आज फिर से लोग इस स्कूल में अपने बच्चों का दाखिला करवाने के लिए आगे आने लगे हैं। बच्चों का खेलों में भी अच्छा प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। अन्य सिख स्कूलों को भी इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

– सुदीप सिंह

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