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चारधाम सड़क व राष्ट्रीय सुरक्षा

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी करके धुंधलका साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर पर्यावरण को नुकसान होने की आशंका को बरतरफ किया जा सकता है

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी करके धुंधलका साफ कर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर पर्यावरण को नुकसान होने की आशंका को बरतरफ किया जा सकता है क्योंकि राष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा का प्रश्न सभी अन्य आपत्तियों को नैपथ्य में डाल देता है। न्यायालय में उत्तराखंड की चारधाम यात्रा को जोड़ने वाली सड़कों को चौड़ा किये जाने के मुद्दे पर बहस चल रही है जिसमें यह आंकलन उभर कर आया। हालांकि केन्द्र सरकार का भूतल परिवहन मन्त्रालय उत्तराखंड में स्थित तीर्थ स्थलों को हर मौसम में एक-दूसरे से जोड़े रखने की गरज से 889 कि.मी. लम्बे मार्ग को चौड़ा करने की परियोजना चला रहा है मगर इसका सम्बन्ध रक्षा सेनाओं से भी गहरा है। उत्तराखंड से चीन की सीमा बहुत दूर नहीं है और चीन ने पूरी नियन्त्रण रेखा के आसपास अपनी तरफ सड़कों का भारी निर्माण कर रखा है जिससे उसकी सेनाओं को सैनिक साजोसामान भेजने में दिक्कत का सामना न करना पड़े। फिलहाल उत्तराखंड के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों की चौड़ाई साढे़ पांच मीटर तक ही सीमित रखने की व्यवस्था है जिसे भूतल मन्त्रालय बढ़ा कर दस मीटर करना चाहता है। 
चारधामों को जोड़ने वाली सड़कें सैनिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण होंगी क्योंकि इन पर सेना के वाहनों का आवागमन सुविधापूर्वक हो सकेगा और दोनों तरफ से यातायात को चालू रखने में भी सुविधा होगी। इस परियोजना के विरोध में देश के कुछ पर्यावरण संरक्षण से जुड़े गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन एतराज उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने से पर्वतीय इलाकों में पेड़ काटे जायेंगे और वन्य जीवन को भारी नुकसान होगा तथा यातायात के बढ़ जाने से इन क्षेत्रों का पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ेगा और बर्फ के ग्लेशियरों का जल्दी पिघलने का खतरा पैदा होगा। इन संगठनों की यह चिन्ता एक हद तक वाजिब इसलिए है कि पहाड़ों का मौसम धीरे-धीरे गर्म होता जा रहा है जिसका असर जल स्रोतों पर भी पड़ रहा है मगर जहां तक राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न है तो इससे बड़ा मुद्दा कोई दूसरा नहीं हो सकता खास कर तब जबकि चीन अपनी बदनीयती के निशान बार-बार छोड़ रहा है। एक ओर उसने लद्दाख के क्षेत्र में पूरी नियन्त्रण रेखा की स्थिति बदलने की चाल चल रखी है वहीं वह उत्तराखंड से छूती अपनी सीमाओं के साथ भी बार-बार छेड़छाड़ करता रहता है। कुछ माह पहले ही वह इस सीमान्त राज्य के बारामती इलाके में घुस आया था। 
चीन की यह आदत बहुत पुरानी है कि वह भारतीय इलाकों में अपनी सेना भेज कर कह देता है कि उसे नियन्त्रण रेखा की स्थिति के बारे में भ्रम हो गया था मगर लद्दाख के इलाके में उसकी कार्रवाइयों को देख कर अब यकीन से कहा जा सकता है कि वह भारतीय सीमा से सटे भू-भाग पर नजरें गड़ाये हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश के भारतीय इलाके में तो उसने बाकायदा ग्रामीणों की एक बस्ती भी बसा दी है। अतः उत्तराखंड में चारधाम  की यात्रा को जोड़ने के लिए केन्द्र सरकार जो परियोजना चला रही है उसका विरोध जायज नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसका लाभ भारतीय सेनाओं को प्रत्यक्ष रूप से मिलेगा। हालांकि 2020 के सितम्बर महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि ऊंचे पहाड़ी इलाकों में सड़कों की चौड़ाई साढे़ पांच मीटर ही रखी जाये मगर राष्ट्रीय सुरक्षा की चिन्ताओं को देखते हुए वह अब अपना नजरिया बदलता दिखाई दे रहा है। इसका अर्थ यही निकलता है कि सर्वोच्च न्यायालय ने चीन द्वारा की गई ताजा हरकतों का संज्ञान बहुत गंभीरता से लिया है और ऐसा न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड ने कहा भी। जाहिर है कि पर्यावरण सुरक्षा का ख्याल भी सर्वोच्च न्यायालय को है जिसकी वजह से विद्वान न्यायाधीशों ने इस मुद्दे को भी महत्वपूर्ण माना है। इस मामले में पहले ही कई दिशा-निर्देश जारी किये हैं परन्तु उत्तराखंड की स्थिति अलग है क्योंकि यह चीन से सटा हुआ राज्य है और चीन की नीयत ठीक नहीं है। अतः पर्यावरण की सुरक्षा की खातिर राष्ट्रीय सुरक्षा को किसी कीमत पर खतरे में नहीं डाला जा सकता। 
 सेना की मांग है कि इन सड़कों की चौड़ाई कम से कम दस मीटर की होनी चाहिए जिससे चीन की सीमा से लगे मोर्चे पर राकेट लांचर तक ले जाने में दिक्कत न हो। बेशक केन्द्र सरकार ने चारधाम को जोड़ने की परियोजना की घोषणा 2016 में की थी परन्तु इसके बाद चीन के मोर्चे पर तेजी से परिस्थितियों   में बदलाव आया है जिससे हर देशभक्त नागरिक चिन्तित हुआ है।  अतः न्यायमूर्तियों का यह कहना कि यह परियोजना केवल पर्यटन के उद्देश्य से नहीं चलाई जा रही है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु सेना की जरूरतों को देखते हुए भी चलाई जा रही है तो पर्यावरण का मुद्दा उठाना गैर वाजिब दिखाई पड़ता है। इसी वजह से न्यायमूर्तियों ने कहा कि अगर यह परियोजना केवल पर्यटन की दृष्टि से चलाई गई होती तो हम प्रतिबन्धात्मक उपायों के बारे में सोच सकते थे मगर इसका सम्बन्ध सेना व राष्ट्रीय सुरक्षा से भी है। अतः बहुत स्पष्ट है कि चारधाम यात्रा की सड़कों का निर्माण केवल धार्मिक पर्यटन से नहीं जुड़ा है बल्कि चीन की बदनीयती को साफ करने से भी बावास्ता है। सीमा पर सेना के हाथ मजबूत करने के हर संभव उपाय किये जाने बहुत जरूरी हैं। 

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