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अधिक मतदान और लोकतन्त्र

बिहार विधानसभा के दूसरे चरण के चुनाव में जिस प्रकार मतदान में वृद्धि हुई है उससे एक निष्कर्ष बिना संकोच के निकाला जा सकता है

बिहार विधानसभा के दूसरे चरण के चुनाव में जिस प्रकार मतदान में वृद्धि हुई है उससे एक निष्कर्ष बिना संकोच के निकाला जा सकता है कि 10 नवम्बर को चुनाव परिणाम आने पर राज्य में जो भी सरकार बनेगी वह पूर्ण बहुमत की ही नहीं बल्कि शानदार बहुमत की होगी। मतदाताओं के उत्साह को देख कर चुनावी अखाड़ेबाजी में हवा-हवाई मुद्दों पर दांव-पेंच मारने वाले प्रत्याशियों को निराशा का मुंह भी देखना पड़ेगा क्योंकि जागृत व जागरूक मतदाता इन चुनावों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा इस तरह ले रहा है कि उसने कोरोना संक्रमण के डर को काफूर करके अपने एक वोट के संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करके दिलेरी दिखाई है।
 भारत के लोकतन्त्र के लिए बिहार की जनता इन चुनावों में अधिक मतदान करके एेसी नजीर बना रही है जिसका असर आने वाले चुनावों पर भी पड़े बिना नहीं रह सकता। चूंकि बिहार की राजनीति राष्ट्रीय फलक पर भी शुरू से ही असर डालती रही है। अतः यहां से जो आवाज उठेगी उसकी प्रतिध्वनि हमें राष्ट्रीय राजनीति में भी सुनने को मिल सकती है। राजनीतिक पंडित अधिक मतदान होने के अलग-अलग प्रतिफल निकाल सकते हैं परन्तु बिहार के मतदाता इस बारे में किसी भ्रम में नहीं लगते हैं और वे अपना फैसला धमाके के साथ 10 नवम्बर को सुनाना चाहते हैं। यह फैसला राज्य के किस गठबन्धन के पक्ष में जायेगा यह देखने वाली बात होगी। इस बारे में अलग-अलग आंकलन लगाये जा रहे हैं मगर जमीनी हकीकत यह है कि इस बार चुनावों में न तो कहीं जातिगत गणित मुखर है और न कहीं कोई अन्य पारंपरिक जोड़-तोड़।
 पूरे चुनावों को स्वयं मतदाताओं ने अपने कन्धे पर उठा लिया है। लोकतन्त्र में एेसा तब होता है जब जनता को लगने लगता है कि उसके असल मुद्दों पर राजनीतिक दल स्वयं उलझ गये हैं। इसी वजह से अधिक मतदान के अलग-अलग मतलब निकलते लगते हैं क्योंकि एेसा भी कई बार देखने में आया है कि अधिक मतदान सत्तारूढ़ पक्ष के समर्थन में गया है परन्तु यह कोई एेसा नियम भी नहीं है जिस पर आंख मून्द कर यकीन किया जाये क्योंकि प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक पटल पर उभरने से पहले अधिक मतदान प्रायः विपक्षी गठबन्धनों के हक में जाता रहा है। वैसे चुनावों का एक वैज्ञानिक नियम होता है कि जो भी दल या गठबन्धन चुनावी विमर्श का एजेंडा तय कर देता है वही बाजी मार कर ले जाता है। बिहार में इस बार के चुनाव साधारण चुनाव नहीं हैं क्योंकि इन चुनावों में क्षेत्रीय राजनीतिक मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दे भी केन्द्र में आये हैं। समन्वित रूप से देखें तो अधिक मतदान होने के पीछे सभी मुद्दों पर आम मतदाताओं का उद्वेलित होना एक कारण लगता है मगर इन सभी के बीच में सामान्य मतदाता के अपने मुद्दे केन्द्र में जरूर रहे होंगे जिसकी वजह से वह मतदान केन्द्रों की तरफ बड़ी संख्या में दौड़ा है मगर इन चुनावों के साथ ही आज विभिन्न राज्यों में 54 स्थानों पर उपचुनाव भी हुए। इनमें अकेले मध्य प्रदेश में ही 28 विधानसभा  सीटों पर मतदान हुआ जबकि उत्तर प्रदेश में सात व गुजरात में आठ सीटों पर वोट पड़े। इनमें सबसे महत्वपूर्ण मध्य प्रदेश के उपचुनाव हैं जिन्हें मिनी चुनाव की संज्ञा दी जा रही है।  ये चुनाव विगत मार्च महीने में कांग्रेस पार्टी के 22 विधायकों द्वारा सदस्यता से इस्तीफा देने की वजह से हो रहे हैं। इनकी वजह से ही राज्य की तत्कालीन कांग्रेसी कमलनाथ सरकार गिर गई थी क्योंकि उसका विधानसभा में बहुमत समाप्त हो गया था। इसके बाद घटी संख्या शक्ति की विधानसभा में भाजपा का स्पष्ट बहुमत हो गया था और इसके नेता शिवराज सिंह चौहान मुख्यमन्त्री बन गये थे।
 लोकतन्त्र के स्वास्थ्य की दृष्टि से ये चुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दल-बदल कानून के संवैधानिक दायरे को न तोड़ते हुए सत्ता पलट की इस्तीफा तकनीक की यह अग्नि परीक्षा जनता की अदालत में हो रही है। लोकतन्त्र में जनता की अदालत से बड़ी कोई दूसरी अदालत नहीं मानी जाती। अतः मतदाताओं का जो भी फैसला आयेगा वह संसदीय लोकतन्त्र की ही आगे की दिशा तय करेगा। इस मामले में बहुत से गंभीर सवाल भी जुड़े हुए हैं। इसके साथ इन चुनावों के माध्यम से यह भी स्पष्ट हो गया है कि चुनावों का संचालन करने वाले चुनाव आयोग के पास एेसे अधिकार नहीं हैं कि वह किसी नेता का कद अपने पैमाने से तय कर सके।
 चुनाव आयोग ने राज्य के पूर्व मुख्यमन्त्री श्री कमलनाथ के खिलाफ शिकायत मिलने पर उनका स्टार प्रचारक का दर्जा समाप्त कर दिया था। इसे सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव आयोग किसी राजनीतिक दल के विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं कर सकता क्योंकि यह अधिकार राजनीतिक दल का ही हाेता है कि वह अपने किसी नेता का स्तर तय करे लेकिन मध्य प्रदेश के मिनी चुनावों में भी मतदान का प्रतिशत सन्तोषजनक रहा है जिससे पता चलता है कि मतदाताओं ने इन चुनावों को बहुत संजीदगी से लिया है। वास्तव में ये सभी लक्षण स्वस्थ लोकतन्त्र के ही हैं कि मतदाताओं का रुझान हर परिस्थिति में अधिक मतदान के प्रति रहा है। यह लोकतन्त्र के उज्जवल भविष्य की निशानी ही कही जायेगी। इसके साथ यह भी समझा जायेगा कि मतदाता सत्ता  में अपनी भागीदारी के प्रति सावधान हो रहे हैं और जीवन्त लोकतन्त्र को तरजीह दे रहे हैं।

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