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नये वर्ष पर आगे बढ़े भारत

आज नव वर्ष प्रारम्भ हो रहा है जिसकी सभी पाठकों को शुभकामनाएं। लेकिन आज हम आत्म विश्लेषण भी करें कि बीते वर्ष में हमने क्या खोया और क्या पाया है।

आज नव वर्ष प्रारम्भ हो रहा है जिसकी सभी पाठकों को शुभकामनाएं। लेकिन आज हम आत्म विश्लेषण भी करें कि बीते वर्ष में हमने क्या खोया और क्या पाया है। एक राष्ट्र के रूप में जब हम चिन्तन करते हैं तो पाते हैं कि इस देश की सबसे बड़ी ताकत लोकतन्त्र की संसदीय प्रणाली में ऐसी तन्त्रगत अराजकता व्याप्त होने का खतरा पैदा हो रहा है जिसे तुरन्त नियमित किये जाने की आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में बीते वर्ष के दौरान संसद के हुए विभिन्न सत्र उदाहरण हैं जिनमें सत्ता और विपक्ष की खींचतान के चलते देश की इस सबसे बड़ी  जनप्रतिनिधि संस्था की प्रतिष्ठा को आघात लगा। भारत का संसदीय लोकतन्त्र इसके लोगों की आस्था का ऐसा प्रतिष्ठान है जिसकी संवैधानिक सर्वोच्चता निर्विवाद है क्योंकि इसके माध्यम से सामान्य नागरिक के हाथ में बदलते समय के अनुसार अपना विकासक्रम तय करने का अधिकार होता है जो चुने हुए प्रतिनिधियों की मार्फत किया जाता है। ( संविधान संशोधन इसी दायरे मे आता है)। संसदीय प्रणाली चूंकि भारत के लोकतन्त्र की बुनियाद है अतः इसकी शुचिता सर्वोच्च वरीयता में आती है। परन्तु संसदीय संस्थाओं का गठन राजनीतिक दलों से निकले प्रतिनिधियों से ही होता है अतः राजनीतिक दलों की शुचिता भी इसकी बुनियादी शर्त बन जाती है। अब इस शुचिता की कड़ी जाकर चुनाव प्रणाली से जुड़ती है जिसमें जोर आजमाइश करके विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि​ संसद या विधानसभाओं में पहुंचते हैं।
 गौर से देखा जाये तो असली फसाद की जड़ यह प्रणाली ही है जिसे फतेह करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल सभी प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं। अतः निष्कर्ष यह निकलता है कि संसदीय प्रणाली की शुचिता कायम रखने के लिए चुनाव प्रणाली की शुचिता सुनिश्चित की जाये। हाल ही में कानपुर में एक सुगन्ध व्यापारी के घर उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले जिस तरह तोल के हिसाब से नकद धनराशि मिल रही है उससे यह अन्दाजा तो लगाया ही जा सकता है कि इस बेहिसाब धनराशि का उपयोग कोई राजनीतिक दल चुनावों में खर्च कर सकता था। इससे पहले भी हम देख चुके हैं कि विभिन्न राज्यों में जब चुनाव होते हैं तो चुनाव आयोग की टीमें कितनी मिकदार में रोकड़ा जब्त करती रही हैं। हमारे लोकतन्त्र के प्रदूषित होते जाने का यह एक पक्ष है। दूसरा पक्ष यह है कि इस चुनाव प्रणाली के बावजूद लोग अपने गुप्त मत का मनमाफिक उपयोग करने से नहीं हिचकते। इसका उदाहरण यदा-कदा होने वाले उपचुनाव व स्थानीय निकाय चुनाव हैं। गुजरात में मतदाताओं ने स्थानीय निकाय चुनावों में पिछले दिनों भाजपा को जिताया था तो हाल ही में कर्नाटक में कांग्रेस को जिता दिया। तर्क दिया जा सकता है कि चुनाव प्रणाली में इतना प्रदूषण घुल जाने के बावजूद लोगों की इच्छा को नहीं बदला जा सकता। परन्तु इस बारे में हमें राजनीतिक दलों द्वारा उतारे गये प्रत्याशियों की गुणवत्ता का ध्यान भी रखना होगा। नये वर्ष की प्रथम तिमाही में ही पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होंगे । इनकी तैयारी सभी राजनीतिक दलों ने शुरू कर दी है। इस मामले में हमें सभी को लोकतन्त्र की मूल शुचिता के पैमाने पर कसना होगा। मगर बीते वर्ष में सबसे ज्यादा कहर कोरोना संक्रमण का रहा जिसने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवीय सभ्यता के लिए चुनौती खड़ी कर दी थी। इसका मुकाबला भारत में जिस तरह किया गया उसकी तारीफ भी अन्तर्राष्ट्रीय  स्तर पर हुई मगर घर के भीतर आलोचना भी होती रही। इसके बावजूद यह सिद्ध हो गया कि भारत में इतनी क्षमता है कि वह वक्त पड़ने पर किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। इस कार्य को भारत के लोकतन्त्र के तीनों पायों विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका ने मिल कर किया। इसकी तफसील में जाने का यह वक्त नहीं है मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि कोरोना का मुकाबला करने के लिए भारत के आम आदमी से लेकर देश का सर्वोच्च न्यायालय और प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र से लेकर प्रधानमन्त्री कार्यालय तक उठ कर खड़ा हो गया। यही हमारे लोकतन्त्र की वह अजीम ताकत है जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमारे स्वतन्त्रता सेनानी सौंप कर गये हैं। 
भारत की यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है जिसे नजरअन्दाज कर दिया जाये। वास्तव में बीते वर्ष की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। अब यदि भारत की कूटनीति की बात की जाये तो समाप्त वर्ष के अन्तिम महीने में रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन का भारत दौरा सबसे महत्वपूर्ण कहा जायेगा । भारत के चीन के साथ चल रहे तनावपूर्ण सम्बन्धों को देखते हुए रूस का रुख भारत के प्रति यथावत रख कर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने यही सिद्ध किया कि राजनीतिक विचारधाराओं का महत्व राष्ट्रीय विचारधारा के समक्ष नगण्य होता है क्योंकि देश सर्वप्रथम होता है। रूस ने जिस तरह रक्षा क्षेत्र से लेकर विभिन्न वैज्ञानिक व उत्पादन क्षेत्रों में भारत से समझौते किये उससे चीन को सन्देश चला गया कि भारत की तरफ टेढी आंख करके देखने का नतीजा अच्छा नहीं हो सकता। मगर आने वाला वर्ष कम चुनौतियों से भरा हुआ नहीं है। सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की है जो कोरोना काल के बाद धीरे-धीरे सुधर रही है। इस मोर्चे पर हमें इस तरह संभल कर चलना होगा कि भारत की प्रगति की रफ्तार धीमी न पड़ने पाये। जिस जैविक लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) की हम कल्पना करते हैं उसे साकार करने के लिए हमें कारगर कदम उठाने होंगे। इसके ​लिए जो आधारभूत ढांचा भारत में तैयार हो रहा है वह आने वाली पीढि़यों के लिए निश्चित रूप से लाभांश में परिवर्तित हो इसके लिए हमे अभी से तैयारी करनी पड़ेगी और नव वर्ष में इस तरफ कदम बढ़ाना पड़ेगा। किसी भी विकास के लिए कुलबुलाते हुए राष्ट्र के लिए नया साल सांकेतिक नहीं होता बल्कि दृढ़ता के साथ आगे बढ़ने का संकल्प होता है। और ऐसा तभी होता है जब समाज में पूरी तरह अमन व भाईचारा हो। इसलिए हरिद्वार जैसी कथित धर्म संसदों से हमें किनाराकशी करते हुए सचेत रहना होगा और महात्मा गांधी के उस वचन को याद रखना होगा कि भारत ‘भारत के लोगों से मिल कर बना है’।  
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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