जीवन सचमुच एक स्टेज है जिस पर हर आम आदमी एक नया किरदार निभाता है और उसी में मस्त रहता है लेकिन बड़े-बड़े स्टेटस वाले लोग जो कुछ भी जीवन में करते हैं उनके किरदार सचमुच बड़े विचित्र बनते हैं और सुर्खियां बनकर उभरते हैं। इसके बाद हालात बदलते हैं, बड़े-बड़े केस चलते हैं और सजा मिलने के बावजूद वह बाइज्जत बच निकलते हैं, वह इसलिए क्योंकि वे सेलिब्रिटी और स्टारडम के किंग हैं। माफ करना उस दिन कुछ कानून विशेषज्ञों का एक प्रोग्राम टीवी पर देख रहा था तो मन में कई सवाल उठे कि एक बेजुबान चिंकारा को सलमान खान जैसे एक स्टार ने मार गिराया और उसके खिलाफ केस चलता रहा और वह आर्म एक्ट में फंसने के बावजूद बाइज्जत बरी होकर निकल गया।
बेचारे चिंकारे का कसूर यह था कि वह मर चुका था और उसके बाकी साथियों के मुंह में जुबान नहीं थी और वह अदालत आकर गवाही भी नहीं दे सकते थे। जुबान न होने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी जबकि इसी सिक्के का दूसरा पहलु यह रहा है कि यही सलमान खान हिट एंड रन मामले में किसी की मौत के लिए जिम्मेदार परन्तु जो गवाह थे उनके मुंह में जुबान थी और उन्होंने गवाही यह दी कि सलमान कार चला ही नहीं रहा था। अदालत को सबूत चाहिए थे। जिसके मुंह में जुबान थी वह चुप रहा या फिर जुबान स्टारडम के प्रभाव के नीचे बंद कर दी गई। जो बोल सकता था वह चुप रहा, जो बेजुबान था वह चिंकारा था। पर सलमान खान बाइज्जत बरी होने के बावजूद अभी पिछले दिनों इसी चिंकारा कांड से जुड़े आर्म एक्ट के तहत जोधपुर कोर्ट में जमानत के लिए आया हुआ था। न्याय के मंदिर में जज साहब ने कुछ नहीं पूछा केवल तीन मिनट में बालीवुड हीरो ने तीन पन्नों पर साइन किए और उन्हें बेल मिल गई।
अब बात करते हैं एक और बालीवुड सितारे अभिनेता संजय दत्त की। अवैध बंदूकों की डिलीवरी लेने के चक्कर में वह खुद उस फिल्मी दुनिया की कहानी का किरदार बन गए जिन्हें वह दर्जनों बार निभाते रहे हैं। उन्हें एके-56 अपने पास रखने का दोषी माना गया और पांच साल की सजा दी गई। मामला 1993 के मुम्बई सीरियल ब्लास्ट से जुड़ा था। 1995 में संजय दत्त को बेल मिल गई लेकिन कुछ दिन बाद वह फिर गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी और बेल आउट का यह सिलसिला चलता रहा। आखिरकार 31 जुलाई, 2007 में टाडा कोर्ट ने उन्हें 6 साल की सजा सुनाई। दो महीने बाद उन्हें इस बार सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी। फिर विरोध हुआ और 2013 में इसी सुप्रीम कोर्ट ने 5 साल की सजा सुना दी। संजय दत्त को सरैंडर करने का समय दिया गया और सवा साल बाद वह बाहर आ गए और तब से पैरोल के नियमों में परिवर्तन हुए या नहीं हुए लेकिन वह अब जेल सलाखों से बाहर हैं तथा फिल्मी दुनिया में चैन की सांस लेकर नई ऊर्जा से डटे हुए हैं।
कहने का मतलब यह है कि सैलिब्रिटी होना और स्टारडम के धनी होने का यह मतलब तो नहीं कि कोई बड़ा आदमी कानून से ऊपर है। हम किसी फैसले पर टिप्पणी नहीं कर रहे लेकिन जो लोग कानून को लेकर बड़ी-बड़ी राय विशेषज्ञों के रूप में देते हैं उनके सामने एक सवाल रख रहे हैं कि चिंकारा कांड से जुड़े सल्लू और आर्म एक्ट से जुड़े संजू बाबा केस में अगर अदालत ने सजा दी भी है तो फिर उसका पालन क्यों नहीं हुआ? बिना किसी और केस का उदाहरण दिए हम बड़ी अदब से पूछना चाहते हैं तो फिर किसी भी बड़े क्राइम के गुनाहगार जिन्हें सजा-ए-मौत मिल चुकी है और वह जेलों में महफूज हैं या अन्य बड़े सैलिब्रिटी गुनहगारों के खिलाफ सजा का अमल कब होगा। क्या इस सवाल का जवाब न्याय के पुजारी और न्याय के भगवान दे पाएंगे? न्याय और अन्याय की तराजू पर क्या इन दोनों को बराबर में तौला जा सकेगा? हमारे देश में यह अपने आप में एक बहुत बड़ा मजाक कि इंसान को मारने पर तो सलमान छूट गया और केस खत्म हो गया जबकि एक चिंकारा के मारे जाने का केस अभी तक चल रहा है। इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है?