लाला लाजपत राय जी का राष्ट्रबोध - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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लाला लाजपत राय जी का राष्ट्रबोध

भारतीय इतिहास के कालखण्डों में 28 जनवरी की तारीख की ऐतिहासिक महत्ता बहुत ही प्रासंगिक है। इस तारीख को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक की स्मृतियों में याद किया जाता है। आज के दिन हम भारतवासी इस तारीख को ‘‘पंजाब केसरी’’ के नाम से विख्यात महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के जन्मदिवस के रूप में याद करते हैं। भारतीय स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वदेशी, स्वशिक्षा के समर्थक लाला लाजपत राय का व्यक्तित्व भारतीय राष्ट्रवाद का आदर्श था। लाला लाजपत राय ने अपने विचारों से भारत भूमि में ही नहीं वरन् विदेश की धरती पर भारतीय स्वतंत्रता की अलख जगाने का कार्य किया। लाला जी ने अपने विचारों और आदर्शों के माध्यम से हमेशा भारत मां की एकता और स्वतंत्रता के लिए कार्य किया।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई में उन्होंने अपनी प्रारम्भिक अवस्था से ही कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था। राष्ट्र, भारत की आजादी एवं उसकी एकता और अखंडता को बनाये रखने के लिए लाला जी के कार्यों एवं आदर्शों को याद करेगा। भारतीय राष्ट्रवाद के सच्चे निर्माता लाला जी का जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के अग्रवाल जैन परिवार में हुआ था। लाला जी के राष्ट्रबोध का अध्ययन हमें उनके विचारों में निहित राष्ट्र के पोषक मूल्यों के अध्ययन से होता है। लाला जी ने भारतीय राष्ट्र की अक्षुणता और स्वतंत्रता के लिए अनेक वैचारिक कार्यों का निष्पादन किया जो आज भी भारतीय एकता के लिए पोषक साबित हो सकते हैं। लाला जी के राष्ट्रबोध में भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में जाति प्रथा के विरोधी होने के साथ-साथ धार्मिक सहिषुणता निहित थी। उन्होंने अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति की गंभीरता को समझा और भारतीय एकता के लिए कार्य किया। लाला जी हिन्दू महासभा के सक्रिय सदस्य थे परन्तु धर्म के नाम पर विभाजन या वैमनस्य से उनका सरोकार नहीं था।
1909 में हिन्दू महासभा के मंच से उन्होंने स्पष्ट शब्दों में घोषणा की कि “मैं अपने देश के दूसरे धर्म भाइयों के प्रति बुरे विचार नहीं रखता हूं, मैं उनके सुख एवं समृद्धि की कामना रखता हूं।” सच्चे धर्म का अनुसरण ही लाला जी के विचारों की आधारशिला थी। लाला जी ने अनेक अवसरों पर हिन्दू-मुस्लिम एकता और उनके समृद्धि की कामना की। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के हिमायती लाला जी ने समय-समय पर हिन्दू-मुस्लिम एकता के विचारों को व्यक्त किया। लाला जी ने कहा है कि “हमारे देश के प्रति निस्वार्थ भक्ति ही हमारा धर्म होना चाहिए। हमारे जीवन का उद्दांत उद्देश्य होना चाहिए, हम में से प्रत्येक के जीवन का लक्ष्य राष्ट्र सेवा होनी चाहिए और देश सेवा की खातिर न धन की परवाह करनी चाहिए न जीवन की।” राष्ट्र के प्रति लाला जी के इन्हीं वैचारिक मूल्यों ने उन्हें करोड़ों देशवासियों के हृदय में पूज्य बना दिया। लाला जी ने भारत भूमि की स्वतंत्रता के लिए सतत् संघर्ष किया। भारत की स्वयत्ता के लिए धन एवं जीवन के मूल्य को कम समझा और वक्त आने पर उन्होंने अपने जीवन को भारतीय राष्ट्र की स्वाधीनता के लिए उत्सर्ग कर दिया। लाला जी के राष्ट्रबोध का सिद्धांत उनका राष्ट्र के प्राचीन एवं गौरवशाली अतीत की प्रेरणा से प्रेरित है। लाला जी के राष्ट्रबोध में भारत भूमि के अतीत के गौरवशाली सिद्धान्तों का स्मरण रहता था।
पी. एन. कृपाल ने लाला जी के राष्ट्रबोध के सिद्धांत को सही कहा था “लाला जी का आदर्श भारतीय राष्ट्रवाद था, इसी आदर्श के लिए उन्होंने काम किया, कष्ट झेले और अंततः अपने जीवन का बलिदान दिया। वे राष्ट्र के काम में एक कार्यकर्ता ही नहीं थे वरन् उन्होंने राष्ट्रवादी भावना पर ही अपनी छाप छोड़ दी और उसे नया अर्थ दिया।” लाला जी का जीवन आदर्श ही राष्ट्रबोध था, लाला जी ने भारतीय राष्ट्रवाद के लिए कार्य किया, उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति के विचारों को हमेशा स्थान दिया। लाला जी ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर “भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या” नामक एक वृहद पुस्तक की रचना की। लाला जी शिक्षा व्यवस्था पर विचार व्यक्त करने से पहले जापान और ब्रिटेन की शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन किया था। लाला जी का कहना था कि “हमारी सन्तानों को उस समाज के मध्य भली प्रकार शिक्षित किया जाना चाहिए जिसका कि भविष्य में उनको क्रियाशील सदस्य बनना है।”
लाला जी के राष्ट्रबोध में स्वदेशी को स्थान प्राप्त था, लाला जी राष्ट्रवाद में स्वदेशी की विचारधारा के हिमायती थे। लाला जी ने स्वदेशी आंदोलन और उसके महत्व को परिभाषित करते हुए कहा कि मैं स्वदेशी को अपने देश के लिए उद्धारक समझता हूं। स्वदेशी आंदोलन को हमें आत्मभिमानी, आत्मविश्वासी, स्वावलंबी और त्यागी बनाना चाहिए। स्वदेशी ही हमें जाति, धर्म के बंधनों से मुक्ति दिला सकती है। मेरी दृष्टि में स्वदेशी संयुक्त भारत का धर्म होनी चाहिए। लाला लाजपत राय ने राष्ट्रवाद के विकास के लिए स्वदेशी को महत्वपूर्ण विचार समझा जो जाति- धर्म के बंधनों से मुक्त थी जो आत्मनिर्भर भारत, स्वावलंबी भारत और अर्थ सम्पन्न भारत का मूल थी। राष्ट्र की एकता, सम्पन्नता और आत्मनिर्भरता के लिए लाला जी ने स्वदेशी को अपने राष्ट्र का मूल माना था। लाला जी ने स्वदेशी को मजबूत करने के लिए पंजाब में इंडियन बैंक तथा पंजाब नेशनल बैंक की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लाला जी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने भारत के साथ-साथ विदेशों में भारतीय विचारधारा का बोध कराने के लिए अनेक संगठनों की स्थापना की जिससे भारतीय विचारधारा को विश्व पटल पर स्थापित किया जा सके। अमेरिका में इंडियन होम रूल लीग तथा इंडियन इन्फॉर्मेशन ब्यूरो नामक संस्था की स्थापना की, साथ-साथ उन्होंने अमेरिका में ही इंडियन लेबर एसोसिएशन की स्थापना की। अमेरिका में प्रवास के दौरान ‘यंग इंडिया’, ‘इंग्लैंड्स डैट टू इंडिया’ नामक पुस्तक लिखी। अंततः भारतीय राष्ट्र की सेवा करते हुए 17 नवम्बर 1928 को महान आत्मा ने अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया। लाला जी की मृत्यु से शोक संतप्त महात्मा गांधी जी ने ठीक ही कहा था कि “लाला लाजपत राय मर चुके हैं, लाला जी अमर रहें, लाला जी जैसे व्यक्तित्व तब तक नहीं मर सकते जब तक कि भारतीय आकाश में सूर्य चमक रहा है, लाला जी का अर्थ एक संस्था है। अपने यौवन काल से ही उन्होंने देश सेवा को अपना धर्म बना लिया, उनकी देश भक्ति में किसी भी प्रकार की संकीर्णता नहीं थी, उन्होंने अपने देश से प्यार किया क्योंकि उनकाे सम्पूर्ण विश्व से प्यार था, उनका राष्ट्रवाद वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीयतावाद था।” मां भारती के ऐसे सच्चे सेवक को शत-शत नमन। राष्ट्र आपकी सेवा के लिए सदा ऋणी रहेगा।

– डॉ. रामेश्वर मिश्र

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