आज नव वर्ष 2021 का नया दिन है जिसका नई ऊर्जा के साथ प्रत्येक व्यक्ति को स्वागत कना चाहिए और बीते साल को एक सबक के तौर पर ध्यान में रखना चाहिए। यह सबक चुनौतियों और झंझावातों से बाहर निकलने के सतत् प्रयास और कामना है। कोरोना महामारी के प्रकोप से जूझते हुए जिस प्रकार भारत के लोगों ने अपने नागरिक धर्म का निर्वाह किया वह आने वाली पीढि़यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।
राजनीतिक मोर्चे पर बीता वर्ष हमें इस देश में लगातार कमजोर हो रहे विपक्ष की दशा पर चिन्तित रखेगा और चालू किसान आन्दोलन लोकतन्त्र में जनता की अपेक्षाओं के प्रस्फुट होने के लिए स्वयं ही अग्रणी भूमिका निभाने की रवायत की भी याद दिलाता रहेगा।
यह वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर भारी वैचारिक उलट-पुलट का भी वर्ष कहा जायेगा जिसमें राजनीति के बदलते स्वरूप की छवि उभरी है। यह दौर राष्ट्रवादी विचारधारा के व्यापक विस्तार व प्रसार का दौर भी कहा जायेगा क्योंकि देश भर में जितने भी चुनाव हुए उन सभी में भारतीय जनता पार्टी का वरदहस्त रहा।
महत्वपूर्ण यह है कि यह सारा परिवर्तन कोरोना काल में हुआ जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के बीच में दूरी बनाये रखने का नियम समाज में विधान के तौर पर लागू रहा। सबसे बड़ी चुनौती इसी कोरोना पर विजय प्राप्त करने की थी जो साल के आखिरी दिन तक इस प्रकार बनी रही कि इसके नये सहोदर ‘वेरियंट’ का खतरा पैदा हो गया।
इसके बावजूद भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश में इस पर काबू पाकर भारत के लोगों ने दिखा दिया कि ‘असंभव’ कुछ भी नहीं हो सकता। यह कार्य प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ही इस देश के आम आदमी ने करके दिखाया। कोरोना पर नियन्त्रण करने के प्रयासों में जिस तरह भारत ने सिद्ध किया कि ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ उससे यह उम्मीद बंधी कि संकट काल में भारत और अधिक मजबूत होकर उभरता है और इसके लोगों की सहनशीलता में वृद्धि होती है, चाहे इसका भुगतान कितना ही महंगा क्यों न करना पड़े।
यही वजह रही कि भारत की अर्थव्यवस्था के बुरी तरह डगमगाने के बावजूद इसके लोगों का हौंसला नहीं टूटा और उन्होंने अपनी मेहनत के बूते पर इसमें पुनः सुधार लाने के लक्षण पैदा कर दिये। यह चमत्कार ही कहा जायेगा कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर के उल्टा नीचे की तरफ 24 प्रतिशत घूम जाने पर तीसरी तिमाही में इसमें शानदार सुधार के चिन्ह पैदा होने लगे मगर यह चमत्कार भारत के गांवों और कस्बों में बसे 80 प्रतिशत लोगों की मेहनत से ही हो सका और विशेष रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उभार आने पर ही संभव हुआ। अतः बीता साल कह कर जा रहा है कि ‘हम में है दम’।
लेकिन इसके साथ ही स्वीकार करना पड़ेगा कि राजनीतिक मोर्चे पर कुछ बेचैनी का आलम इस तरह रहा कि संसदीय लोकतन्त्र की स्थापित परंपराओं की दयनीय स्थिति ‘लोक समीक्षा’ में आयी। राज्यसभा में कृषि विधेयकों के पारित होने की प्रक्रिया पर सामान्य नागरिक की टेढ़ी नजर पड़ी जिसका प्रभाव हमारे दुनिया के सबसे बड़े संसदीय लोकतन्त्र होने के गौरव पह पड़े बिना नहीं रह सका, परन्तु दूसरी तरफ बिहार राज्य में हुए विधानसभा चुनावों ने सिद्ध कर दिया कि हमारा संसदीय लोकतन्त्र दुनिया का सबसे महान लोकतन्त्र है जिसमें .03 प्रतिशत के मतों के अन्तर से भी सरकारों का भविष्य तय हो जाता है।
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में पंचायती राज व्यवस्था के अनुसार पहली बार जिला विकास परिषदों के चुनाव करा कर गृह मन्त्री श्री अमित शाह ने पूरी दुनिया को यह दिखा दिया कि भारत में लोकतन्त्र की जड़ें इस राज्य में कितनी गहरी हैं। अतः इस राज्य का विशेष दर्जा समाप्त करने से कश्मीर पर आंसू बहाने वाले लोगों को सबक लेना चाहिए कि नई व्यवस्था लागू होने पर आम कश्मीरी की स्थिति और मजबूत हुई है और वह अधिकार सम्पन्नता की ओर बढ़ रहा है।
बीते साल में सबसे बड़ा काम कश्मीर मोर्चे पर यह हुआ है कि इसका भारतीय संघ में विलय सम्पूर्णता और भारत के प्रति समर्पण के साथ हुआ है। यह विलय केवल भूमि का नहीं बल्कि लोगों का भी है क्योंकि उन्हें भारतीय संविधान में उल्लिखित वे सभी मौलिक अधिकार दिये गये हैं जो देश के शेष नागरिकों को मिलते हैं। यह कार्य श्री शाह की दृढ़ इच्छा शक्ति का प्रतीक है जिसे भारत की आने वाली पीढि़यां सर्वदा याद रखेंगी।
स्वतन्त्र भारत के ताजा राजनीतिक इतिहास में यह घटना विशिष्ट अध्याय के रूप में जुड़ चुकी है जिसे कोई ताकत मिटा नहीं सकती है, परन्तु सामाजिक मोर्चे पर कुछ ऐसा भी घटा है जिसे भारत की बहुधार्मिक एवं विविधतापूर्ण संस्कृति की संपुष्टता के हक में नहीं कहा जा सकता। नये वर्ष में हमें भारत को आधारभूत ढंग से मजबूत करने के सभी वैकल्पिक उपायों पर जोर देना होगा जिससे हमारी एकता को किसी प्रकार का खतरा पैदा न हो सके। देश की एकता इसके लोगों की एकता से ही बनती है क्योंकि कोई भी देश इसके लोगों से ही बनता है।
गांधी बाबा का यह मन्त्र हमें हमेशा याद रखना होगा लेकिन लोकतन्त्र का यह नियम भी होता है कि इसमें लोग सरकार तक नहीं जाते बल्कि सरकार लोगों तक जाती है। इस नियम का पालन प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं और इसी वजह से उन्होंने लोक कल्याण की विभिन्न योजनाएं चालू की हैं। यही नजरिया हमें लोक अपेक्षाओं के बारे में अपनाना होगा। गांधीवादी कवि स्व. भवानी प्रशाद मिश्र ने इसका चित्र अपनी दो पंक्तियों में बखूबी खींचा थाः
‘‘इससे पहले कि घटनाएं हम तक आयें
जरूरी है कि हम घटनाओं तक जायें।’’