हिमाचल प्रदेश की नवगठित कांग्रेस सरकार ने जिस तरह अपने प्रमुख चुनावी वादे को मन्त्रिमंडल की पहली ही बैठक में पूरा करने का फैसला किया वह संसदीय लोकतन्त्र के लिए शुभ संकेत माना जायेगा। हिमाचल प्रदेश के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि वह अपनी सरकार गठित होने के बाद पहली ही कलम से राज्य सरकार के कर्मचारियों की पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने का फैसला करेगी। अपने वादे पर खरा उतरते हुए मुख्यमन्त्री श्री सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने अपनी पार्टी के जनता से किये गये वादे को पूरा करने वाला प्रस्ताव अपने मन्त्रिमंडल की बैठक में रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। लोकतन्त्र में जनता से किये गये वादों की पवित्रता होती है क्योंकि जनता उन वादों पर यकीन करके विशिष्ट पार्टी को मत देती है। बेशक पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने को लेकर चुनावी माहौल में भी दोतरफा आलोचना व समालोचना हो रही थी परन्तु हिमाचल कांग्रेस का मत था कि पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करके राज्य के सवा लाख से ज्यादा कर्मचारियों का भविष्य खासकर बुुढ़ापा सुधारा जा सकता है, जिसके वित्तीय पोषण के लिए सरकार को अपने राजस्व साधन जुटाने के इंतजाम ही करने होंगे। श्री सुक्खू ने कहा है कि पुरानी स्कीम को लागू करने के लिए सरकार अपने खर्चों में कटौती करेगी जिससे रिटायर होने के बाद कर्मचारियों को बुढ़ापे में आर्थिक चिन्ता न रहे। दरअसल इस स्कीम को लागू करने के विरुद्ध तर्क दिया जाता है कि इससे राज्य सरकारों का गैर योजनागत खर्च बढे़गा और आने वाली सरकारों को इसका बोझ उठाना पड़ेगा परन्तु इसके हक में तर्क दिया जाता है कि यदि कर्मचारियों को अपने रिटायर होने के बाद अपने व अपने आश्रित लोगों की चिन्ता रहेगी तो नौकरी में रहते हुए वे सदाचार के साथ अपना कर्त्तव्य निभाने में झिझक महसूस कर सकते हैं जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। उन्हें नौकरी में रहते हुए ही अपने भविष्य की चिन्ता खाये जायेगी क्योंकि रिटायर होने के बाद उनकी कोई लगी-बन्धी आमदनी नहीं होगी। सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के सन्दर्भ में यह मत तार्किक लगता है क्योंकि ठेकेदारी प्रथा के प्रचलन के बाद सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा हो रहा है कि कर्मियों के भविष्य की सुरक्षा अनिश्चित रहती है, हालांकि सरकार की तरफ से कई प्रकार की भविष्यनिधि व निश्चित पेंशन योजनाएं भी शुरू की गई हैं। मगर बाजार मूलक अर्थव्यवस्था मानती है की किसी कर्मचारी की कार्यक्षमता या श्रम क्षमता चूक जाने के बाद सरकारी मद से उसका व्यय वहन करना वित्तीय घाटे की व्यवस्था को बढ़ावा देता है, गैर योजनागत खर्च में अावश्यक वृद्धि करता है। यह धन अनुत्पादक गतिविधियों में जाता है। भारत चूंकि एक कल्याणकारी राज की परिकल्पना का देश है। अतः समय-समय पर यह मांग उठती रही है कि जीवन भर सरकार की नौकरी करने वाले लोगों का बुढ़ापा निराश्रित नहीं छोड़ा जा सकता। अतः सरकार को उनकी दी गई सेवाओं का मुआवजा देना चाहिए। 2004 तक यह प्रथा जारी थी मगर इस वर्ष में केन्द्र स्तर पर फैसला किया गया कि सरकार एेसी नई पेंशन स्कीम लागू करेगी जिसमें कार्यरत कर्मचारी व राज्य सरकार आधा-आधा आर्थिक राशि अंशदान देकर कर्मचारी के रिटायर होने पर उसे एक मुश्त रकम देगी जिससे वह अपना भविष्य संवार सके। इस योजना का विरोध राज्य स्तर पर विभिन्न राज्यों के कर्मचारी कर रहे थे।
हिमाचल प्रदेश में खास तौर पर एक पहाड़ी राज्य होने की वजह से व्यवसाय व वाणिज्य के साधन बहुत सीमित हैं और राज्य कर्मचारियों की संख्या अच्छी खासी है। नौकरी ही राज्य के लोगों का एक प्रमुख व्यवसाय है। विकास के सीमित साधनों को देखते हुए जहां पहाड़ी राज्यों व आदिवासी बहुल राज्यों में नई पेंशन स्कीम का विरोध हुआ वहीं राजस्थान जैसे मैदानी राज्य में भी सरकारी कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की। हिमाचल प्रदेश में तो पूरा चुनाव ही पुरानी पेंशन स्कीम के मुद्दे पर लड़ा गया जिसे कांग्रेस ने लागू करने का वादा किया था। अतः लोगों की इस मांग को पूरा करके सुक्खू सरकार ने केवल अपना दायित्व ही निभाया है। सुक्खू सरकार का पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने पर पहले वर्ष में ही 800 करोड़ रुपए का खर्च राज्य के एक लाख 36 हजार कर्मचारियों पर आयेगा। ये सभी कर्मचारी नई पेंशन स्कीम के तहत आते हैं। मगर हिमाचल सरकार ने केन्द्र से मांग की है कि वह नई पेंशन स्कीम के तहत राज्य कर्मचारियों के लिए की गयी उसकी अंशदान धनराशि की वापसी करें जिससे पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने में उसे कठिनाई न हो। इसी प्रकार की मांग छत्तीसगढ़ व राजस्थान सरकार की तरफ से भी की जा रही है क्योंकि यहां की सरकारों ने भी पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का घोषणा की है। पुरानी पेंशन स्कीम के अन्तर्गत रिटायर होने वाले कर्मचारी को अपनी नौकरी में प्राप्त होने वाली अंतिम महीने की मूल तनखव्हा तथा महंगाई भत्ते की आधी धनराशि प्रतिमाह दी जायेगी। इसमें महंगाई भत्ता आदि बढ़ने पर समय- समय पर संशोधन भी होता रहेगा। 2004 से पहले जो भी कर्मचारी रिटायर हुए हैं उन्हें इसी फार्मूले पर पेंशन दी जाती है। अब सवाल यह है कि पुरानी पेंशन स्कीम पर भविष्य में जो भी खर्चा आयेगा उसकी व्यवस्था राज्यों को अभी से करके चलना पड़ेगा जिससे भविष्य की राज्य सरकारें किसी प्रकार के आर्थिक संकट का सामना न कर सकें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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