गरीबी और भूख का रिश्ता - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

गरीबी और भूख का रिश्ता

भारत कुपोषण का गम्भीर दंश झेल रहा है, जिसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। विश्व की सबसे तेजी से प्रगति कर रही अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत में भुखमरी बड़ी समस्या है।

भारत कुपोषण का गम्भीर दंश झेल रहा है, जिसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है। विश्व की सबसे तेजी से प्रगति कर रही अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत में भुखमरी बड़ी समस्या है। हमने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ऊंची छलांग लगा ली है। हमने मिसाइलें बना ली हैं। भारत अब दुनिया की बड़ी सामरिक शक्ति है लेकिन हम अपने बच्चों को भरपेट खाना देने में विफल हो रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय संस्था कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की सबसे बड़ी संस्थाओं में से एक ‘वर्ल्ड हंगर हिल्फ’ द्वारा बनाए गए सूचकांक वर्ल्ड हंगर इंडेक्स में 117 देशों वाले सूचकांक में भारत 102वें स्थान पर है। 
भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 94वें, नेपाल 73वें और बंगलादेश 88वें नम्बर पर है। इस तरह भारत न केवल अपने पड़ोसी देशों से बल्कि कुछ अफ्रीकी देशों से भी नीचे है। 2019 में 24.1 के स्कोर के साथ भारत 67वें पायदान पर था लेकिन अब 9 वर्ष में वह 35वें पायदान पर नीचे खिसक गया है। कुपोषण उन्मूलन के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें लगातार कदम उठा रही हैं। इन कदमों के चलते देश में भूख का स्तर तो घटा है परन्तु स्थिति इसलिए चिंताजनक बनी हुई है क्यों देश की पूरी जनसंख्या में अल्पपोषित लोगों की संख्या बढ़ी है। 
5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का वजन कम होना और उनकी उम्र के हिसाब से लम्बाई कम होने का प्रसार और उनकी मृत्यु दर दिखाती है कि बच्चे अत्याधिक अल्पपोषण का शिकार हैं। भारत में 14.5 प्रतिशत आबादी अल्पपोषित है। सूचकांक के अनुसार वैश्विक स्तर पर भूख और पोषण की कमी के स्तर में सुधार देखा जा रहा है। इसे वैश्विक गरीबी के स्तर में हो रही गिरावट के साथ देखा जा सकता है, क्योंकि गरीबी और भूख आपस में जुड़े हुए हैं। सूचकांक के अनुसार भारत में 6 से 23 महीने की उम्र के बच्चों में सिर्फ 9.6 प्रतिशत बच्चों को ही न्यूनतम स्वीकार योग्य भोजन मिलता है। देश में भोजन का अधिकार कानून सभी राज्यों में लागू है और इसका दायरा भी काफी व्यापक है। 
कानून में बेसहारा, बेघरों, भुखमरी और आपदा के शिकार लोगों को भोजन उपलब्ध कराने का प्रावधान है। कानून में गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था की गई है। राज्यों की स्थिति देखें तो दक्षिण भारत के मुकाबले कुपोषण से होने वाली मौतों के मामले में उत्तर भारत के राज्य आगे हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम, झारखंड और राजस्थान में कुपोषण की वजह से बच्चों की जिन्दगी को नुक्सान हो रहा है। बच्चों में खून की कमी देखी जा रही है। मध्य प्रदेश की ही बात करें तो आइना हकीकत बयान कर रहा है। दर्पण में कुरुपता नजर आती है। 
राज्य में बच्चों की मौत के मामले में पिछले 5 वर्ष के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस अवधि में 94699 सिर्फ नवजात बच्चों ने गरीबी और कुपोषण के चलते दम तोड़ दिया। यह उन बच्चों की संख्या है जो अपना पहला जन्मदिन भी नहीं मना पाए। तमाम सरकारी याेजनाओं के बावजूद साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। कुपोषण, गरीब और  भूख से जूझते लोगों की कहानियां भी दबकर रह जाती हैं।  2017-18 में देश के अरबपतियों ने 20,913 अरब रुपए कमाए जो कि भारत सरकार के बजट के बराबर है। बड़े ओहदों पर तैनात अधिकारियों को भी अच्छा खासा वेतन मिलता है लेकिन मजदूरों को मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं से मात्र 187 रुपए रोजाना मिलते हैं वह भी 365 ​दिन नहीं। 
पाकिस्तान और बंगलादेश से भारत की तुलना करना उचित नहीं क्योंकि उनकी आबादी हमसे बहुत कम है। बढ़ती आबादी के साथ चुनौतयां भी बढ़ जाती हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि भूख किसी भी समाज, राज्य और देश की सबसे बड़ी बुराई है। जिसकी कोख से बुराइयां जन्म लेती हैं, चाहे वह लूट या हत्या हो या फिर चोरी, राहजनी आदि। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून भी लागू है लेकिन कानून बनने के 6 वर्ष बाद भी यह कई राज्यों में सही ढंग से लागू ही नहीं है। अगर भारत में कुपोषण से बच्चों की मौतों में कोई कमी नहीं आई तो स्पष्ट है कि योजनाओं और नीतियों में कमी जरूर है। हर वर्ष हजारों टन अनाज खुले में पड़ा सड़ जाता है लेकिन वह गरीब तक नहीं पहुंचता। 
अगर हमें कुपोषण से लड़ना है तो हमें अपनी आबादी पर नियंत्रण करना होगा। बढ़ती आबादी के मुकाबले साधन सीमित हो जाते हैं। बेरोजगारी संकट बढ़ जाता है। बेहतर यही होगा कि कुपोषण, भुखमरी से मुक्ति पाने के लिए लोग स्वयं भी जागरूक हों और सरकार अपनी नीतियों काे चुस्त-दुरुस्त बनाएं। अन्यथा कुपोषण का कलंक भारत के माथे पर लगा रहेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

4 × 5 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।