आज देशभर या यूं कह लो विदेश में भी किसान आंदोलन की बहुत चर्चा है। किसान काे हम अन्नदाता का नाम देते हैं। यह सही है कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना गया है और किसानों का आंदोलन करना, अपनी मांगें रखना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और हम यह भी जानते हैं कि असली भारत गांवों में बसता है और देश किसानों की मेहनत पर ही चलता है। जवान सरहद पर रक्षा करते हैं तो किसान देश के सभी लोगों के पेट की रक्षा करते हैं। और हम सभी यह भी जानते हैं कि ‘पेट न पइयां रोटियां ते सारी गल्लां खोटियां’। यानी सब कुछ बेकार है अगर पेट नहीं भरा और वो पेट किसान ही भरता है, इसलिए किसान की सुरक्षा और रक्षा भी हमारा सबका फर्ज है। हम सब जानते हैं इस समय पूरा विश्व कोरोना की चपेट में है। पिछले कई महीनों में लाखों मौतें हो चुकी हैं, इसलिए मेरी अपने किसान भाइयों से प्रार्थना है कि आंदोलन करें, वो आपका अधिकार है, परन्तु कोरोना से बचना आपका धर्म है। जहां हजारों लोग एक साथ इकट्ठे होंगे तो कोरोना का खतरा बढ़ सकता है। कोरोना के बारे साफ बात है कि सावधानी हटी और दुर्घटना घटी। आंदोलन में बुजुर्ग, महिलाएं, युवा सभी शामिल हैं। सर्दी का मौसम है, वैसे ही सर्दी से बीमारी का डर रहता है। अभी भी गांव की मिट्टी बहुत इम्युनिटी और बीमारी से लड़ने की ताकत देती है। देश में हम अगर कोरोना के बढ़ते आंकड़ों पर ध्यान दें तो आप समझ सकते हैं कि किसानों की सुरक्षा क्यों इतनी जरूरी है। इसके साथ ही एक और अहम बात यह भी चर्चा में आ रही है िक आंदोलन में असामाजिक तत्व घुस सकते हैं। इसलिए सावधान रहते हुए सुरक्षा बंदोबस्त करना भी बहुत जरूरी है।
यह बात ठीक है कि देश में संक्रमण का आंकड़ा 2.5 प्रतिशत रह गया है लेकिन यह भी तो चौंकाने वाला सत्य है कि अकेले दिल्ली में कोरोना पीड़ितों की संख्या छह लाख का आंकड़ा पार कर गई है। भगवान न करे कि कोरोना फिर से सिर उठाए तो दिल्ली से सटी सीमा पर या फिर दिल्ली के अन्दर रहने वाले लोगों पर इसकी मार बराबर ही रहेगी। अपना काम करने के लिए कोरोना कभी किसी बार्डर को नहीं चुनता, उसके लिए कोई बैरियर नहीं है। मेरी प्रभु से यही प्रार्थना है कि कोरोना खत्म हो। किसानों का आंदोलन खत्म हो और किसानों की सुरक्षा का चक्र मजबूत हो। वैसे तो किसानों की मैनेजमेंट आैर उनके आंदोलन करने के तरीके से सारा देश कायल है परन्तु अत्यधिक सर्दी के मौसम में हजारों की भीड़ जमा है वह भी एक हाइवे पर तो शर्तिया उनमें से कुछ लोग बीमार पड़ेंगे, इसलिए जो व्यवस्था आपने हैल्थ के लिए कर रखी है वह भी काबिले तारीफ है। चिकित्सा सुविधा, एम्बुलैंस, वेंटीलेटर और मेडिकल स्टोर यानी दवाइयां कई किलोमीटर और फासले पर मौजूद हैं। कहते हैं न पंजाबियां दी रीस कोई नहीं। ओ बंजर जमीन नूं वी उपजाऊ बना लैंदे ने क्योंकि ज्यादा किसान पंजाब से हैं। मानो बार्डर पर पंजाब बस रहा है। कहीं जलेबियां तल रही हैं, कहीं गर्मा-गर्म पकौड़े बन रहे हैं, कहीं गरम गोभी, मूली, आलू के परांठे, कहीं लस्सी, सरसों का साग। हमारे फोटोग्राफर, रिपोर्टर बताते हैं कि उनकी भी खूब सेवा होती है। मेहमाननबाजी पूरी है। शूगर और कोलेस्ट्रोल लेवल के अनुसार धरने पर बैठे-बैठे गरीबों के भुने चने से लेकर अमीरों के काजू, किशमिश तक मिल रहे हैं परन्तु पूरी भोजन व्यवस्था सेवा भाव के साथ है।
मुझे यह भी मालूम पड़ा है कि एक ग्रुप पूरे धरने में घूम-घूम कर इस बात को सुनिश्चित भी कर रहा है कि कोई असामाजिक तत्व इस प्रदर्शन का नाजायज फायदा न उठा सके। महिलाओं की सुरक्षा भी की जा रही है। वाकई पंजाबियों की यह कहावत भी मशहूर है कि दुःख वेले या औकड़ (मुसीबत) वेले सभी इकट्ठे होकर लड़ते हैं और सुख के समय पर कोई आगे बढ़ रहा हो तो एक-दूसरे की टांगें भी खींच लेते हैं।
यहां अलग-अलग पंजाबी कलाकार आकर जोश भरे गीतों से मनोरंजन भी कर रहे हैं यानी कुल मिलाकर आंदोलन बहुत अच्छी व्यवस्था से चला रहे हैं। मेरी हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि अभी तक तो ठीक आगे सर्दी, कोरोना और ट्रैफिक जाम की समस्याओं से परेशानी न आ जाए। सो दो कदम किसान आगे बढ़ें, दो कदम सरकार। मामला सुलझ जाए और बात बन जाए। सारे किसान खुशी-खुशी अपने घरों को वापस जाएं, खेती करें, देश को खुशहाल बनाएं, अपने पेट के साथ-साथ सारे देश का पेट भरें।