भारत-पाक में कड़वाहट भरे सम्बन्धों के बीच करतारपुर साहिब कॉरिडोर को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के फैसले की सराहना तो हो ही रही है वहीं उनकी सरकार बॉलीवुड के चोटी के अभिनेता रहे पृथ्वीराज कपूर और उनके अभिनेता पुत्र राज कपूर के पेशावर स्थित पुश्तैनी मकान को म्यूजियम में बदलने की तैयारी कर रही है। पेशावर के किस्सा रब्बानी बाजार में मौजूद कपूर हवेली का निर्माण पृथ्वीराज कपूर के पिता बशेश्वरनाथ ने कराया था। इसी घर में पृथ्वीराज कपूर के बेटे राज कपूर का जन्म हुआ था जो बॉलीवुड के बिग शोमैन बने। अपने पुरखों की विरासत को संग्रहालय में बदलने का ऋषि कपूर का पाकिस्तान से आग्रह करना एक बेहतरीन पहल है और उनकी पहल को पाकिस्तान सरकार द्वारा स्वीकार किया जाना भी कपूर परिवार के लिए और देशवासियों के लिए खुशी की बात है।
पृथ्वीराज कपूर ने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से ग्रेजुएशन की तो वह पेशावर के पहले ग्रेजुएट बने और वह भी फर्स्ट क्लास श्रेणी में। तब उनको बग्घी में बिठाकर पेशावर में जुलूस निकाला गया था। उन्होंने वकालत का कोर्स किया लेकिन उनका मन वकालत में नहीं लगा तो वे लायलपुर में काम के साथ नाटकों में काम करने लगे। पृथ्वीराज कपूर बेहद शानदार शख्सियत के मालिक थे। वह दमदार आवाज के मालिक तो थे ही, कुछ हल्की नीली आंखें, जिससे वह पूरे यूनानी लगते थे। वह भारत विभाजन से पहले 1928 में ही लायलपुर से मुम्बई आ गए थे। उन्होंने फिल्मों में छोटे-मोटे रोल स्वीकार किए। 1931 में पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ बनी तो पृथ्वीराज कपूर ने उसमें भी किरदार निभाया था। 1941 में सोहराब मोदी की ‘सिकन्दर’ में जब उन्होंने मुख्य किरदार निभाया तो मानो यूनान का लड़का पर्दे पर जीवन्त हो उठा।
पृथ्वीराज कपूर को रंगमंच से बेहद लगाव रहा। वे 1942 में स्थापित इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन यानी इप्टा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनके अलावा बलराज साहनी, जोहरा सहगल, उत्पल दत्त, ख्वाजा अहमद अब्बास, पंडित रविशंकर जैसे महान लोग इप्टा से जुड़े थे। ये सब समाजवादी विचारधारा के लोग थे। पृथ्वीराज कपूर ने 1944 में पृथ्वी थियेटर की स्थापना की थी। इसी थियेटर के चलते भारत में रंगमंच जीवित रहा। 1960 में आई ‘मुगल-ए-आजम’ में उन्होंने अकबर का किरदार निभाया, जिसने उन्हें अमर कर दिया। मेकअप रूम में जाने से पहले वे कहते थे-पृथ्वीराज कपूर जा रहा है और जब तैयार होकर आते थे तो कहते थे ‘अकबर आ रहा है’। मुगल-ए-आजम के बाद इसी विषय पर कई फिल्में बनीं लेकिन लोगों के जेहन में पृथ्वीराज कपूर द्वारा निभाया ‘अकबर’ का किरदार ही छाया रहा। फिल्मों में उनके पुत्र राज कपूर का काफी महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनकी फिल्मों के दीवाने तो सोवियत संघ और जापान के लोग भी रहे। उनकी फिल्म के गीत ने जापान-रूस में धूम मचा दी थी।
मेरा जूता है जापानी, ये पतलून इंगलिस्तानी,
सर पे लाल टोपी रूसी, फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी।
उन्होंने अपने समय में बेहतरीन फिल्में दीं। जीवन के उतार-चढ़ाव भी देखे। उनका परिवार अब भी इंडस्ट्री में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। अभिनेता हो या गायक, कला को किसी सीमाओं में बांधा नहीं जा सकता। जब भी भारत में पाकिस्तान के कलाकार आए, भारतीयों ने उनका दिल खोलकर स्वागत किया। दोनों देशों का अवाम एक-दूसरे से जुड़ना चाहता है लेकिन पाक हुक्मरानों ने ऐसी दीवारें खींच दीं कि अवाम एक-दूसरे से कट गया। संवादहीनता की स्थिति पैदा हो गई। कट्टरपंथी ताकतें पाकिस्तान में हावी होती गईं और दोनों देशों के सम्बन्धों में आड़े आया कश्मीर। आजादी के बाद से ही हम पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का दंश झेलते आ रहे हैं और हम कितना ही खून बहा चुके हैं। भारत और पाकिस्तान के लोग जानते हैं कि देश विभाजन का दर्द क्या होता है। जिन लोगों को अपना घरबार, दुकान, पुश्तैनी हवेलियां छोड़कर आना पड़ा, उन्हें अपने पांवों पर खड़े होने में बरसों लग गए। आज भी बड़े बुजुर्ग मिलते हैं तो लाहौर, कराची, पेशावर और इस्लामाबाद की यादें उन्हें सताती हैं।
अपने पूर्वजों के घर देखने की तमन्ना किसे नहीं होती। मैं भी पाकिस्तान गया था तो मेरी भी उत्सुकता जाग गई थी। मैं भी अपना पुराना घर, जहां पूजनीय पितामह लाला जगत नारायण जी अपनी प्रेस चलाया करते थे, सब देखकर आया था। पुरानी पीढ़ी के लोग न अपनी संस्कृति को भूले आैर न ही अपनी जड़ों से अलग हुए हैं। मुझे बहुत खुशी हुई जब एक पौत्र ऋिष कपूर ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को फोन किया और उनसे आग्रह किया कि उनके पारिवारिक घर को म्यूजियम या उसी प्रकार के संस्थान में तब्दील कर दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान सरकार ने उनके आग्रह को स्वीकार कर लिया है। अपने दादा आैर पिता की विरासत को सहेज कर रखने के ऋषि कपूर के प्रयास की सराहना की जानी चाहिए। महान व्यक्तित्व किसी एक देश के नहीं होते बल्कि उनका व्यक्तित्व सार्वभौमिक होता है। वे दूसरों के लिए प्रेरणा का प्रकाश स्तम्भ बनते हैं। अब प्रांतीय सरकार भी कह रही है कि वह पेशावर की ऐतिहासिक चीजों को सहेज कर रखना चाहती है। इसी के साथ वह वहां मौजूद हेरिटेज को उसके असली रूप में रखना चाहती है। पृथ्वीराज कपूर की पुश्तैनी हवेली को विरासत के रूप में संरक्षित रखना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।