यह जगजाहिर है कि हमारे देश के नेता चुनावी वर्ष में कुछ ज्यादा ही बढ़-चढ़कर बयान देते हैं। वे अपने राजनीतिक विरोधियों को नाकाम आैर नाकारा साबित करने अथवा आम जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए कुछ भी कह देते हैं। वे नितांत आधारहीन और मिथ्या बातें भी उछाल देते हैं, लेकिन इसके चलते कई बार उन्हें आलोचना के साथ उपहास का भी सामना करना पड़ता है। लगता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी खुद की गिनती ऐसे ही नेताओं में कराना चाहते हैं। राहुल गांधी की बयानबाजी का रिकार्ड देखिये तो उनका उपहास एक बार नहीं कई बार उड़ चुुका है। उनकी स्थिति एक पराजित योद्धा जैसी ही है। ‘नन्हा-मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं, बोलो मेरे संग जय हिन्द।’ इतना करने के बाद भी जब उस नन्हें-मुन्ने के साथ कोई जय हिन्द नहीं बोलता तो वह खिसिया जाता है आैर अनर्गल बातें करने लग जाता है। शायद ऐसी ही स्थिति राहुल गांधी की है।
विदेश दौरे के दौरान उन्होंने बार-बार दोहराया कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश को तोड़ने का काम कर रही हैं जबकि कांग्रेस देश को जोड़ने का काम करती है। अगर वह अपनी पार्टी का इतिहास जानते तो अच्छा होता। आज समाज के भीतर जो विभाजन की दीवार है, वह कांग्रेस की ही देन है। राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद सम्भाल रहे हैं। जितनी परिपक्वता इस पद पर बैठने वाले व्यक्ति को दिखानी चाहिए, वह नजर नहीं आ रही बल्कि बचकाना हरकतों से लोगों को अपनी ओर खींचने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। कौन बोलेगा उनके पीछे जय हिन्द? कुछ वर्ष पहले मेरी मुलाकात राहुल गांधी से हुई थी तो बातचीत के दौरान गांधी जी की हत्या की चर्चा हुई तो उन्होंने कहा कि गांधी जी की हत्या संघ ने की तो मैंने उनसे कहा यह बात असत्य है। तभी मुझे लगा कि राहुल गांधी राजनीतिक रूप से अपरिपक्व हैं। मैंने संघ को बहुत करीब से देखा है।
पत्रकार का धर्म हकीकत और सबके समक्ष सच्चाई बिना किसी द्वेष के पेश करना होता है। संघ निश्चित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रवर्तक है और हिन्दू संस्कृति को भारतीय संस्कृति के पर्याय के रूप में देखता है मगर इसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह करना रात को दिन बताने की तरह है। राहुल गांधी ने संघ की तुलना प्रतिबंधित संगठन सिमी से करके भयंकर भूल की थी। जरा सोचिये आजादी से पहले जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने वर्धा आश्रम के सामने ही लगे संघ के शिविर में गए थे तो उन्हें स्वयंसेवकों की अनुशासनप्रियता आैर जाति-पाति के बंधन से दूर देखकर कहना पड़ा था कि यदि कांग्रेस के पास ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता हों तो आजादी का आंदोलन अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए बहुत जल्दी मजबूर कर देगा। इतना ही नहीं महान समाजवादी चिन्तक और जननेता डा. राम मनोहर लोहिया ने भी संघ के बारे में कहा था कि यदि मेरे पास संघ जैसा संगठन हो तो मैं पूरे देश में पांच साल के भीतर ही समाजवादी समाज की स्थापना कर सकता हूं। संघ ऐसा संगठन है जिसकी प्रशंसा स्वयं पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी।
1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार भारत की सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद पूरे देश में आगे बढ़कर नागरिक क्षेत्रों में मोर्चा संभाला था उसे देखकर स्वयं पं. नेहरू को इस संगठन की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा करनी पड़ी थी और उसके बाद 26 जनवरी की परेड में संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों को शामिल किया गया था। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने पूरे देश में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में पुलिस प्रशासन की पूरी मदद की थी और छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में इसके गणवेशधारी कार्यकर्ता नागरिकों को पाकिस्तानी हमले के समय सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया करते थे। मैंने 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान अपनी आंखों से संघ कार्यकर्ताओं को देश की सेना का उत्साह बढ़ाने के लिए पूरी-छोले, बिस्कुट और अन्य खाने-पीने की चीजों के पैकेट जालंधर से पठानकोट जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर जवानों को देते हुए देखा है। उस समय सेना के जवान बॉर्डर पर अपनी ड्यूटी निभाने के लिए अपनी बैरकों से ट्रकों में बैठकर रवाना हो रहे होते थे तो मैं खुद भी उन दिनों बच्चा ही था मैं उस टोली में था जिसमें संघ कार्यकर्ता जवानों को मिठाई आैर िबस्कुट बांटने का काम करते थे।
हमने अपनी आंखों से पाकिस्तान के ‘सेबर’ जेटों को आसमान से िगरते हुए देखा है और भारतीय सेना द्वारा बर्बाद किये हुए उन पेंटन टैंकों को भी देखा है जिनके मलबे कितने ही पंजाब के नगरों के चौकों पर यादगारी स्मारकों के रूप में बिराजमान हैं जो सेना के दमखम की नजीर प्रस्तुत कर रहे हैं। राहुल ने आरएसएस को इस्लामिक ब्रदरहुड से जोड़ा है उससे मैं व्यक्तिगत रूप से असहमत हूं। संघ स्वयं सेवकों की जुबान पर हमेशा भारत माता की जय का उद्घोष रहता है। अखंड भारत की बात करना क्या गुनाह है भारत में हिन्दू संस्कृति की बात करना क्या गुनाह है? संघ पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रितबंध जरूर लगाया गया था मगर बापू की हत्या में संघ के किसी कार्यकर्ता का हाथ नहीं पाया गया था। हिन्दू महासभा के नेता स्व. वीर विनायक दामोदर सावरकर को भी इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था मगर उनकी राष्ट्रभक्ति पर भी क्या कोई कांग्रेसी प्रश्नचिन्ह लगा सकता है? सावरकर के गुरु बंगाल के क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा थे। संघ और हिन्दू महासभा की विचारधारा में भी मूलभूत अन्तर शुरू से ही रहा है। हिन्दू सभा राजनीति का हिन्दूकरण आैर हिन्दुओं के सैनिकीकरण के पक्ष में थी जबकि संघ के संस्थापक डा. बलिराम केशव हेडगेवार का लक्ष्य हिन्दुओं का मजबूत सांस्कृतिक संगठन स्थापित करना था। इस सच को कैसे झुठलाया जा सकता है कि 1947 में भारत का बंटवारा होने के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने पश्चिमी पाकिस्तान (पंजाब) के मोर्चे पर हिन्दुओं और सिखों की रक्षा की थी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कुशल एवं महान नेता संघ की ही देन हैं और प्रखर एवं ऊर्जावान पीएम नरेन्द्र मोदी भी संघ की ही उपज हैं।
संघ भारतीय संस्कृति का विश्वविद्यालय रहा है। यह जिस हिन्दू गौरव की बात करता है उसका मतलब मुस्लिम विरोध नहीं है बल्कि मुस्लिम पहचान को भारत की जड़ों में खोजना है। संघ शुरू से ही कहता रहा है कि भारत के मुस्लिम मूल रूप से भारतीय हैं और इनके पुरखों आैर हमारे पुरखों में कोई अन्तर नहीं। अच्छा होता राहुल गांधी पहले अपने भारत के इतिहास को जानते फिर तार्किक बातें करते। कभी पी. चिदम्बरम, सुशील कुमार शिंदे और राहुल ने भगवा आतंक का राग छेड़ा था। उन्हें समझना चाहिए कि कभी लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गले मिलकर, आंख मारकर और इराक के आतंकवाद का कारण बेरोजगारी बताकर देशवासियों को अपने पीछे चलने के लिए आकर्षित नहीं कर सकते। आईएस का आतंकवाद जेहादी विचारधारा है न कि बेरोजगारी। देश समझ नहीं पा रहा कि कमी राहुल में है या उनके सलाहकारों में। अगर प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गांधी की दावेदारी का विश्लेषण करें तो वह नरेन्द्र मोदी के कद के सामने अभी बहुत छोटे हैं। बेहतर होगा राहुल गांधी गंभीर होकर राजनीतिक पिरपक्वता दिखाएं। लफ्फाजी से नहीं, अपनी विचारधारा से देश को प्रभावित करें। हमारी शुभकमानाएं राहुल गांधी के साथ हैं।