अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से एक के बाद एक कदम उठाते हुए पूरी दुनिया में तनाव पैदा करते जा रहे हैं, उसमें भारत भी पिसेगा। चीन, रूस, यूरोपीय संघ और दक्षिण अमेरिकी देशों को तो उन्होंने निशाने पर लिया ही है परन्तु भारत पर उनकी कार्रवाई ने सबको उलझन में डाल दिया है। भारत और अमेरिका के संबंध अच्छे रहे हैं लेकिन आर्थिक मोर्चे पर अब ट्रंप भारत को कोई प्राथमिकता देना ही नहीं चाहते। अच्छे रिश्तों की बात तभी कही जा सकती है जब अमेरिका भारतीय हितों की चिन्ता करे। अमेरिकियों के बारे में मशहूर है कि उनके लिए अपने हित सर्वोपरि हैं, वह किसी की भी परवाह नहीं करते। भारत और अमेरिका के बीच सिर्फ टैरिफ दर में बढ़ौतरी एकमात्र मुद्दा नहीं है और भी कई मुद्दे हैं। इसी वर्ष मार्च में अमेरिका ने भारतीय निर्यातकों को दी जा रही छूट का मुद्दा भी उठाया था। वाशिंगटन ने इसके खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में आपत्ति दर्ज की थी और कहा था कि भारत के सस्ते सामान अमेरिकी कंपनियों को नुक्सान पहुंचा रहे हैैं। बात इसके कहीं आगे है।
रूसी मिसाइलों, ईरान के तेल और अमेरिकी गाड़ियों पर टैक्स में भारत-अमेरिका रिश्तों में खटास आ चुकी है। अमेरिका ने भारत के साथ 2+2 डायलॉग को स्थगित किया। उसी दिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की बैठक की पुष्टि हुई। यह बैठक महत्वपूर्ण है क्योंिक रक्षा सौदों पर मास्को के साथ दिल्ली की करीबी भी ट्रंप को खटकती है। अमेरिकी कांग्रेस रूस से एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल की खरीद के मुद्दे पर भारत पर प्रतिबंध लगाने की बहस कर रही है। भारत ने एयर डिफेंस मिसाइल प्रणाली सहित रूस से रक्षा आपूर्ति जारी रखने की बात कही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूस भारत का श्रेष्ठ मित्र रहा है। आज भी रक्षा जरूरतें पूरी करने के मामले में हम रूस पर काफी हद तक निर्भर हैं। क्या अमेरिका की दादागिरी के चलते भारत रूस को नजरंदाज कर सकता है? अमेरिका ने अब भारत और अन्य देशों को 4 नवम्बर तक ईरान से तेल आयात बंद करने को कहा है और चेतावनी दी है कि ऐसा न करने वाले देशों को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप प्रशासन बार-बार दोहरा रहा है कि अब किसी के लिए कोई छूट नहीं होगी।
ट्रंप ईरान के साथ परमाणु करार तोड़ने के बाद तेल से सम्पन्न इस देश की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ना चाहते हैं। ट्रंप ने ईरान में कारोबार कर रही विदेशी कंपनियों को निवेश बंद करने के लिए भी कहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों का पालन नहीं करने पर कंपनियों को भारी जुर्माने की भी धमकी दी है। ईरान के साथ परमाणु करार करने वालों में शामिल यूरोपीय नेताओं ने इस मुद्दे पर ट्रंप को समझाने की कोशिश की लेकिन ट्रंप पर सनक सवार है। भारत और चीन ईरान के तेल के प्रमुख आयातक हैं। भारत ईरान के कच्चे तेल का दूसरा सबसेे बड़ा खरीदार है और चीन तीसरे नम्बर पर है। भारत का स्टैंड हमेशा यही रहा है कि वह केवल उन्हीं प्रतिबंधों का पालन करेगा जो संयुक्त राष्ट्र से जारी होंगे। अमेरिका की चेतावनी का सीधा असर भारत पर पड़ रहा है। भारत ने ईरान से कच्चे तेल का आयात घटाने का संकेत दिया है। इसके बदले में वह सऊदी अरब और कुवैत से कच्चे तेल की खरीद बढ़ाएगा। पैट्रोलियम मंत्रालय ने रिफाइनरी कंपनियों से सतर्कता बरतने और अन्य विकल्पों पर विचार करने को कहा है। सबसे बड़ा सवाल है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए क्या विकल्प ढूंढेगा। ईरान से कच्चे तेल के आयात को शून्य करने का फैसला व्यावहारिक नहीं।
सवाल फिर उठाया जा रहा है कि क्या भारत अमेरिका के दबाव को मानेगा? अगर मानेगा तो पैट्रोल की कीमतें और देशहित पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत को यह भी नहीं भूलना चाहिए कि ईरान भारत का बहुत पुराना पार्टनर है और उसने भारत को कई रियायतें भी दी हुई हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल कीमतों में अनिश्चितता से भारत के सामने पहले ही चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। मौजूदा हालात में नुक्सान भारत को ही होने वाला है क्योंिक ईरान से तेल आयात बंद करने से अन्य देश हमें कोई छूट नहीं देंगे। ट्रंप ने बार-बार अनुचित व्यापार प्रथाओं को लेकर भारत पर निशाना साधा है। हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिलों पर 60-70 प्रतिशत टैरिफ की वजह से भारत के साथ सभी व्यापार रोकने की धमकी दी है। इस्पात और एल्यूमीनियम पर ट्रंप के पहले टैरिफ के जवाब में यूरोपीय संघ द्वारा टैरिफ लगाए जाने के बाद हार्ले ने अमेरिका से बाहर निकलने का फैसला किया है। भारत ने मोटरसाइकिल पर करों को 50 प्रतिशत कम किया लेकिन ट्रंप अब भी खुश नहीं। ट्रंप खतरनाक खेल खेल रहे हैं। ट्रेड वार के चलते भारत-चीन की नजदीकियां बढ़ी हैं जो एक अच्छा संकेत है। देखना है दुनिया ट्रंप की दादागिरी के आगे कितना दबाव में आती है। कहीं ट्रंप का ‘ट्रंप’ कार्ड उलट न पड़ जाए।