कोरोना वायरस से उपजे संकट ने भारत समेत सभी देशों की अर्थव्यवस्था को बेपटरी कर दिया है। कोरोना वायरस से बीती एक सदी के दौरान अर्थव्यवस्था पर सबसे बड़ा संकट आया है, जिसने उत्पादन से लेकर रोजगार तक हर क्षेत्र पर बुरा असर डाला है। मौजूदा दौर में आर्थिक वृद्धि बहाल करना सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है। यह निश्चित है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सिकुड़न आएगी। अलग-अलग रेटिंग एजैंसियों के मुताबिक सिकुड़न का यह आंकड़ा पांच फीसदी से 12 फीसदी तक हो सकता है। सरकार की कोशिश है कि इस सिकुड़न को कम किया जाए।
देश के सामने बेरोजगारी है, बाजार खुले हैं लेकिन ग्राहक नहीं, पैट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से हर कोई परेशान है। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए केन्द्र सरकार ने हर क्षेत्र को पैकेज दिया है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत उद्योग जगत, छोटे-बड़े कारोबारियों, दुकानदारों और मजदूर वर्ग को राहत दी है। रिजर्व बैंक ने भी आर्थिक तंत्र को सुरक्षा और मौजूदा संकट में अर्थव्यवस्था को सहयोग देने के लिए कई कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के सामान्य होने के संकेत दिखाई देने लगे हैं और उनका यह भी कहना है कि भारतीय बैंकिंग व्यवस्था और वित्तीय व्यवस्था इस संकट का मुकाबला करने में सक्षम है। संकट के इस समय में भी भारतीय कम्पनियों और उद्योगों ने बेहतर काम किया।
भारतीय अर्थव्यवस्था ने बड़े-बड़े संकट झेले हैं। आर्थिक मंदी के दौरान जब अमेरिकी बैंक एक के बाद एक धराशायी हो रहे थे तब भी भारत अप्रभावित रहा था आैर भारत ने आर्थिक मंदी को आसानी से झेल लिया था। भारतीय अर्थव्यवस्था में कई ऐसे गुण हैं कि वह हर तूफान के बाद उबर आती है। कोरोना वायरस का खतरा अभी भी बना हुआ है तथा आर्थिक गतिविधियों में अभी वांछित तेजी नहीं आई है लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज के साथ विभिन्न कल्याण योजनाओं, वित्तीय सहायता तथा नियमन में बदलाव से स्थिति में सुधार के संकेत दिखाई देने लगे हैं।
भारत में खाद्यान्न भंडार पर्याप्त हैं। कोरोना काल में खाद्यान्न की कोई कमी नजर नहीं आई। इस बात का पुख्ता प्रबंध देश के लोगों ने ही किया कि महामारी के दौरान कोई भूखा न सोये। कृषि क्षेत्र की बात करें तो खाद बिक्री बढ़ने के साथ-साथ ट्रैक्टरों का पंजीकरण भी तेज हुआ है। जो पिछले साल के 90 फीसदी के स्तर पर है। खरीफ की बुवाई में क्षेत्रवार 50 फीसदी से अधिक की वृद्धि देखी गई है। ग्रामीण क्षेत्र में किसानों और कामगारों को सरकारी मदद तथा मनरेगा जैसी योजनाओं से काफी फायदा हुआ। यह बढ़त इसलिए भी अहम है कि प्रवासी श्रमिकों के वापस अपने गांवों को लौटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही थी लेकिन ये आंकड़े काफी संतोषप्रद हैं। मानसून के सामान्य रहने की उम्मीदों से भी कृषि क्षेत्र को बड़ा सहारा मिला है। लॉकडाउन हटाने पर पाबंदियों में ढील दिए जाने के बाद कारोबार शुरू हुआ है और उत्पादन भी शुरू हुआ है। पैट्रोल-डीजल के उपयोग में बढ़ौतरी हो रही है और बिजली की खपत भी बढ़ रही है। ऊर्जा और ईंधन की खपत बढ़ने का सीधा मतलब है कि उत्पादक गतिविधियां शुरू होे रही हैं। लॉकडाउन के दौरान यातायात और आवागमन ठप्प होकर रह गया था लेकिन अब राजमार्गों पर आवागमन बढ़ा है और टोल वसूली होने लगी है। सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ माह में कामकाज सामान्य हो जाएगा। उत्पादन और कारोबार में बढ़त का संबंध बहुत सीधा है। मांग बढ़ेगी तो उत्पादन बढ़ेगा, उत्पादन बढ़ेगा तो रोजगार बढ़ेगा और लोगों की कमाई बढ़ेगी। जरूरत है सतर्कता से कोराेना वायरस के संक्रमण को रोकने की।
कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई राज्यों ने फिर से लॉकडाउन लगाया है लेकिन कुछ राज्यों में कोरोना वायरस का असर काफी कम हो गया है। कोरोना वायरस को रोकने के लिए सरकारों, उद्योग जगत और समाज को सक्रिय बने रहना होगा।
जहां तक बैंकिंग सैक्टर का सवाल है, उसे एक बड़ी भूमिका निभानी है। उसे सूक्ष्म और लघु उद्योगों, छोटे कारोबारियों, दुकानदारों, रेहड़ी-पटरी वालों की धन की जरूरतों को पूरा करना होगा। सरकार द्वारा दिए गए पैकेज को लोगों तक पहुंचाना होगा। बैंकिंग तंत्र को यह काम ईमानदारी और उदारतापूर्वक करना होगा। बैंकिंग व्यवस्था ने अहम भूमिका निभाई तो इसमें कोई संदेह नहीं भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौट आएगी।