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समुद्र में डूबती मानवता

करीब चार वर्ष पहले तुर्की के समुद्र किनारे एक तीन वर्ष के सीरियाई बच्चे एलन कुर्दी के शव की तस्वीर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था।

करीब चार वर्ष पहले तुर्की के समुद्र किनारे एक तीन वर्ष के सीरियाई बच्चे एलन कुर्दी के शव की तस्वीर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था। अब एक और तस्वीर ने फिर से पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है। बस जगह बदल गई है। भूमध्य सागर की जगह दक्षिण अमेरिका और उत्तरी मैक्सिको में बहने वाली नदी रियो ग्रैंड है। एलन कुर्दी की जगह अब मैक्सिको के ऑस्कर अल्बर्टो मार्टिनेज रैमिरेज और उनकी 23 महीने की बेटी बलेरिया है। उनकी कोशिश थी कि वे किसी न किसी तरह अमेरिका के टेक्सास पहुंच जाएं लेकिन दोनों डूब गए। 
दोनों ही इन्सानों द्वारा बनाई गई सरहदों की बलि चढ़ गए। दोनों बाप और बेटी ही नहीं डूबे बल्कि मानवता ही समुद्र में डूब गई। इन्सानियत, मानवता, दया, सहिष्णुता केवल पुस्तकों में रह गई है। दोनों के शवों की तस्वीर देखने के बाद दुनियाभर में फैल चुके शरणार्थी संकट फिर से केन्द्र में आ गया है। पिछले सप्ताह तीन अन्य बच्चे रियो ग्रैंड नदी में मृत पाए गए थे। इससे पहले इसी माह एक भारतीय बच्ची आरिजोना में मृत पाई गई थी। इससे पहले रियो ग्रैंड नदी में ही डेंगी डूबने से होंडूरास के तीन बच्चे और एक युवक की मौत हो गई थी।
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद प्रवासियों पर काफी सख्ती बरती जा रही है। हर साल बेहतर जीवन की चाह में गैर कानूनी ढंग से हजारों लोग मैक्सिको की सीमा से अमेरिका में दाखिल होने की कोशिश करते हैं। ट्रंप के शासनकाल में पहले लोग अमेरिका में घुसपैठ करने में सफल हो जाते थे लेकिन सख्ती की वजह से अब उनकी चाहत उन्हें मौत के मुंह में धकेल रही है। खुद को मानवाधिकार का सबसे प्रबल झंडाबरदार कहलाने वाला अमेरिका ही मानव के प्रति क्रूर बन चुका है। वायरल हुई इस तस्वीर ने प्रवासियों और शरणार्थियों की समस्या पर दुनियाभर में बहस छेड़ दी है। यह समस्या इतनी विकराल रूप धारण कर चुकी है कि कोई निदान नजर नहीं आ रहा है। आतंकवाद के चलते सीरिया और अन्य कई देश ऐसे हो चुके हैं कि वहां के नागरिक पलायन कर गए हैं। सीरिया की आधी से भी ज्यादा आबादी देश से बाहर जा चुकी है आैर शरणार्थी की तरह रह रही है।
कहीं आईएस का खूनी खेल तो कहीं अलकायदा का। लोग जान जोखिम में डालकर छोटी-छोटी नावों से भागते हैं। पार कर गए तो किस्मत, नहीं कर पाए तो मौत। नावों के दलाल इनसे मनमानी रकम तो वसूलते हैं लेकिन सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती है। यह लोग भूमध्य सागर के रास्ते यूरोप में दाखिल हो रहे हैं। सीरिया ही क्यों, लीबिया और अफगानिस्तान के लोग भी क्रोएशिया के रास्ते यूरोप में पहुंचे हुए हैं। कई देशों ने शरणार्थियों को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया था क्योंकि इन देशों में शरणार्थियों को बसाने की व्यवस्था करना ही मुश्किल है। उनकी अर्थव्यवस्था शरणार्थियों का बोझ सहन नहीं कर सकती। आर्थिक रूप से सम्पन्न और उदार शासन वाले देश भी आतंकवाद से भयभीत हैं। वे कोई जोखिम उठाना ही नहीं चाहते। 
पश्चिम एशिया और खाड़ी का कोई देश शरणार्थियों के लिए आगे नहीं आया, इस्लाम के नाम पर भी नहीं। एकमात्र तुर्की ऐसा देश है जो 20 लाख से अधिक सीरियाई शरणार्थियों का बोझ सहन कर रहा है। फ्रांस में एक के बाद एक आतंकी हमलों के बाद बहुत सारे देश सशंकित हो उठे और उन्हें लगा कि शरणार्थियों के साथ आतंकवादी भी आ सकते हैं, इसलिए उन्होंने अपनी सीमाएं सील कर दीं। पिछले 20 जून को ही दुनियाभर में विश्व शरणार्थी दिवस मनाया गया। यह रस्म हर साल निभाई जाती है। यह दिवस उन लोगों के लिए मनाया जाता है जिन्हें सताए जाने, संघर्ष और हिंसा के खतरे की वजह से अपना घर-बार छोड़कर जाना पड़ा। 
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस समय दुनियाभर में शरणा​र्थियों की संख्या लगभग 7 करोड़ है। हर तीन सैकेंड में एक व्यक्ति विस्थापित हो रहा है। म्यांमार और दक्षिणी सुडान की हिंसा के चलते भी लाखों लोग शरणार्थी बने हैं। हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किए गए अंग्रेजी के लेखक अमिताभ घोष ने कहा है कि शरणार्थी संकट अरबों डॉलर का उद्योग बन चुका है। लीबिया, ट्यूनीशिया और मिस्र से काफी संख्या में लोग पलायन कर दूसरे देशों में जा रहे हैं। भूमध्य सागर को पार करने वाले शरणार्थियों का बड़ा समूह बंगलादेश का भी देखा गया। इस तरह के विस्थापन और पलायन के पीछे संगठित उद्योग काम कर रहा है। 
उन्होंने पूूरे हालात की जानकारी अपनी पुस्तक में भी दी है। ऐसी स्थिति में कौन भटका, कौन जेलों में पहुंचा, कितनों का अपहरण हुआ या कितने लोग गुलाम बने, कुछ पता नहीं। यह आधुनिक युग की बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी है जिसकी कभी कल्पना ही नहीं की गई थी। अब सवाल यही है कि इस समस्या का समाधान कैसे हो? इसका उपचार एक ही है कि पूरी दुनिया एकजुट होकर आतंकवादी समूहों का सर्वनाश कर दे ताकि भविष्य में कोई समूह हिंसा न कर सके। अगर ऐसा नहीं किया गया तो किसी न किसी देश से लोग पलायन करते रहेंगे और मानवता लगातार समुद्र में डूबती रहेगी।

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