आज हाथ कांप रहे हैं यह लिखते हुए कि आज अश्विनी जी की तीसरी पुण्य तिथि है, समझ भी नहीं आता और अभी तक विश्वास भी नहीं होता। अक्सर अपने मन को, अपने बच्चों को यही तसल्ली देती हूं कि वह कहीं नहीं गए, वो हमारे बीच ही हैं… हमारे दिलों में हैं, पंजाब केसरी के हर कर्मचारी के दिल में, हर उस परिचित के दिल में जिससे कभी उनका नाता रहा, उनके निर्वाचन क्षेत्र के हर व्यक्ति के दिलों में बसे हुए हैं। बूढ़े, जवान, बच्चे, हर धर्म से हर जाति से जिनके फोनों की घंटियां हमेशा उनको और उनके कामों को याद कर बजती रहती हैं। इतना सब होते हुए भी उनकी बहुत कमी महसूस होती है। उनकी याद में जब भी अश्रुधारा बह निकले तो रुकने का नाम नहीं लेती। बच्चों के और अपने कर्मचारियों के समक्ष मैं उनकी शेरनी मां हूं और कम्पनी की ष्ट.रू.ष्ठ. हूं परन्तु अन्दर से एक साधारण पत्नी जो अपने पति के प्रति पूरी तरह समर्पित थी, वो पत्नी हर पल टूटती भी है… मैं मानती हूं यह विधि का विधान है इसके आगे किसी की नहीं चलती परन्तु फिर भी दिल है कि मानता नहीं… जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है कि कहीं वो तो नहीं… क्या बताऊं, क्या लिखूं लिखने के लिए आज मेरी कलम भी साथ नहीं दे रही। हां यह जरूर लिखना चाहूंगी कि जिन बुजुर्गों का मैं सहारा थी आज उनकी उम्मीद भरी आंखें उनके चेहरे की खुशियां मुझे ऊर्जावान बनाते हुए पुन: काम करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। उनकी उम्मीद और आशीर्वाद मुझे काम करने का एहसास दिलाते हैं। या यूं कह लो पहले मैं उनका सहारा थी आज वो मेरा सहारा हैं, क्योंकि उनकी उम्मीद भरी नजरें मुझसे पूरी उम्मीद रखती हैं कि मैं उनको पहले वाली किरण नजर आऊं जो मेरे लिए बहुत मुश्किल है परन्तु उनकी आशाओं के अनुरूप पहले वाली ‘किरण बनने की जरूर कोशिश करूंगी।
अश्विनी जी का वो चेहरा भी मेरे सामने रहता है जो मुझे बुजुर्गों और चौपाल के लिए कार्य करते हुए देखकर बहुत खुश होते थे और गर्व महसूस करते। अक्सर कई वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते, बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते और चौपाल के कार्यक्रम में भी हिस्सा लेते थे। उनको लगता था कि किरण बहुत अच्छे सामाजिक काम कर रही है और सबको शान से बताते थे यह देखो जी किरण ने कितने घरों को जोड़ा है। कितनी लड़कियों को अपने पांवों पर खड़ा किया है। यह उनके लिए बड़ा गर्व और खुशी का विषय होता था। उन्होंने जाते-जाते अपनी जीवन गाथा लिखी जिसमें काफी पृृष्ठ तो मेरे और मेरे कार्यों पर हैं।
अश्विनी जी ऑलराउंडर थे-एक अच्छे पत्रकार, क्रिकेटर, सफल राजनेता थे, उन्हें हर विषय का ज्ञान था। सारे वेद पढ़े हुए थे, गीता, रामायण के श्लोक कंठस्थ थे। आर्य समाजी होने के नाते सभी मंत्र आते थे। ज्योतिष शास्त्र, खगोल शास्त्र, इतिहास, राजनीति और विश्व के भूगोल की पूरी जानकारी थी। मुझे अक्सर लोग विभिन्न कार्यक्रमों पर बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं। कई बार ऐसे विषय भी होते थे जिसकी मुझे बहुत अधिक जानकारी नहीं होती थी तो वो मुझे विस्तार से विषय समझा देते थे, वो हमेशा सच बोलते और सच लिखते थे जिस कारण बहुत नुक्सान भी सहने पड़ते थे। वित्तीय और रिश्तों में मुझे काफी कुछ भुगतना भी पड़ता था। मैं अक्सर कहती थी ”इतना भी सच न बोलो की कल्ला (अकेला) रह जावेगा तो उनके चेहरे पर एक आत्मविश्वास से भरी मुस्कान होती थी, जो भुलाए नहीं भूलती है, यही नहीं कभी मैं उनको किसी बात के लिए मना करती तो सबके सामने बोल देते कि किरण ने मुझे मना किया पर मैं बता रहा हूं।
यही नहीं एक बार वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के प्रोग्राम में उन्होंने स्पीच देनी थी तो मैंने उन्हें कहा अश्विनी जी छोटी स्पीच देना बुजुर्ग लम्बे समय तक बैठ नहीं सकते तो यह भी उन्होंने माइक पर बोल दिया कि ‘किरण ने मुझे लम्बी स्पीच देने को मना किया है, परन्तु मुझे आनन्द आ रहा है…यही वो अपने राजनैतिक क्षेत्र में करते थे कि किरण ने मुझे यह कहने को मना किया परन्तु मैं कहूंगा… और लोग ठहाके लगाकर हंसते, उनके लिए एक ईमानदार, कर्मठ, अति साधारण और उच्च विचारों वाला स्पष्टवादी सांसद जो लोगों के दिलों में राज करता था, हर कोई उन्हें अपना समझते थे जो आज भी उनके अपनेपन को महसूस करते हैं। वो आर. एस. एस. की विचारधारा को मानते थे परन्तु उनके संबंध सभी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं से थे। चाहे मोदी जी, राजनाथ, स्व. अरुण जेतली, गुलाम नबी आजाद, स्व. शरद यादव, लालू यादव, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी। इतने बड़े कद्दावर व्यक्तित्व के स्वामी होते हुए भी वह अपने अंदर एक मासूम व शरारती बच्चे का मन भी रखते थे। कुल मिलाकर वो सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति थे, हैं और हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे हमारे अश्विनी जी…. द्य