सच बात यह है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम, तेलंगाना में जो विधानसभाई चुनाव होने जा रहे हैं, उनके परिणाम 2019 के लोकसभाई चुनावों का सेमीफाइनल सिद्ध होंगे। महागठबंधन का शोर महज हंगामा है या समय की मांग, इसका जवाब भी राज्यों के विधानसभाई चुनाव देंगे। आज की तारीख में मोदी सरकार के दावे और विपक्ष के हमले और भाजपा के पलटवार के बीच 2019 का सेमीफाइनल यही विधानसभाई चुनाव हैं। एक बात तय है कि अगर कांग्रेस के हक में 2 से ज्यादा राज्य आ गए तो महागठबंधन में उसकी खूब चलेगी और वहीं अगर 2 से ज्यादा राज्य उसके हाथ आ गए तो अध्यक्ष राहुल गांधी की उम्मीदों को भी पंख लग जाएंगे, लेकिन अगर वह हार गए तो कांग्रेस और महागठबंधन की उम्मीदें धराशायी हो सकती हैं।
मोदी सरकार की भी असली परीक्षा होने जा रही है। मोहब्बत और जंग में सब जायज है लेकिन हमारा मानना है कि आज की तारीख में जीवन के हर क्षेत्र में खासतौर पर सियासत में मौके का फायदा उठाने के लिए राजनीतिक दल कभी भी, कुछ भी कर सकते हैं। ऊपरी सतह पर जो दिखाई देता है और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान जितना फर्क होता है। यह हर पार्टी पर लागू किया जा सकता है। महागठबंधन को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा, राजद और एनसीपी के अलावा रालाेद में जो कुछ चलता रहा वह किसी को भूला नहीं है। आज की तारीख में स्थिति क्या है, कल क्या हो जाए कोई गारंटी नहीं है लेकिन फिलहाल तो बसपा सुप्रीमो बहन मायावती ने हमेशा की तरह कागज पर लिखावट को पढ़ डाला और घोषित कर दिया कि छत्तीसगढ़ के बाद मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी हम अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। इसे लेकर विपक्षी दलों में एक अलग ही तरह के सियासी बाण चलने लगे हैं। आज की तारीख में एनसीपी या बसपा की क्या स्थिति है, हम इससे हटकर बात करना चाहते हैं और स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि आने वाले दिनों में तीन राज्य जहां चुनाव होने हैं (मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़) को लेकर कांग्रेस अंदर ही अंदर बहुत कुछ पका रही है।
बहुजन समाज पार्टी भी अपनी ताकत का गुमान दिखाकर अपनी कीमत लगा रही है, तो इस पर ज्यादा हैरान होने वाली बात नहीं है, क्योंकि राजनीतिक पार्टियां जब इकट्ठी होती हैं तो वे अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही एक झंडे तले आती हैं। वे इकट्ठी भी होती हैं और टूटती भी हैं। 1977 से लेकर आज तक का इतिहास सबके सामने है। एनडीए या यूपीए कोई इससे अछूता नहीं रहा। राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने कयास लगाने शुरू कर दिए हैं। यूपी के दो लोकसभायी और विधानसभायी उपचुनाव जीतने के बाद परिणाम विपक्ष के खाते में गए। यही विपक्षी एकता महागठबंधन थी जिसे लेकर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा था। कांग्रेस ने इसी तथ्य को सामने रखकर कर्नाटक में चुनाव पूर्व की बजाए मतदान और परिणाम के बाद समझौता किया तथा सरकार बना ली। गोवा, मणिपुर की कहानी भी किसी से छिपी नहीं है, लेकिन जिसको जो फायदा होता है वह गठबंधन करता है।
बदली हुई परिस्थितियों में कोई कुछ भी कहे आजकल नकारात्मक राजनीति चल निकली है। एक-दूसरे पर हमला बोलो और अपना काम करो। बहन मायावती ने बड़ी चतुराई से कांग्रेस को आइना दिखाने की कोशिश की है, यह बात हम नहीं कह रहे लेकिन ऊपरी सतह पर जो नजर आ रहा है आप उसे पढि़ए। मायावती जी कहती हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी बहुत अच्छे हैं, ऐसा कहते हुए उन्होंने दिग्विजय सिंह पर जमकर निशाना लगाया और कांग्रेस को उनसे सावधान रहने की सलाह तक दे डाली। भले ही मायावती ने अकेले चुनावों में उतरने की बात कह दी हो, लेकिन यह वक्तव्य साफ दर्शा रहा है कि पूरी-पूरी सौदेबाजी चल रही है और कभी भी, कुछ भी हो सकता है। इस कड़ी में इसी यूपी से जुड़े सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव बराबर मायावती के बारे में टेढ़ा-मेढ़ा न बोलकर संतुलित शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस को आत्मचिंतन की सलाह देते हुए कहा है कि अब उसका अगला पग क्या होगा यह फैसला उसे खुद करना है। जब मायावती ने 15 दिन पहले कहा था कि न वह किसी की बुआ हैं और न उनका कोई भतीजा है, तो उन्होंने अखिलेश और रावण पर बड़ी चतुराई से एक तीर से कई निशाने साधे थे लेकिन जिन पर वार हुआ वे खामोश रहे तो मायावती ने अब कांग्रेस को निशाने पर लिया। इसीलिए राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अभी कुछ भी फाइनल नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि राजस्थान और मध्यप्रदेश का वोटर अंकगणित विचित्र किस्म का है, जहां मायावती का कोई लंबा-चौड़ा राजनीतिक वजूद नहीं है।
कमोबेश यही स्थिति छत्तीसगढ़ की भी है। कांग्रेस चुप होकर हालात पर नजर रख रही है। विपक्ष फिलहाल उसी आक्रामक रणनीति को अपना रहा है, जो 2014 में भाजपा ने अपना रखी थी। इन तीनों राज्यों के चुनावों का असर 2019 के लोकसभायी चुनावों पर भी पड़ेगा। अपनी-अपनी बिसात पर सबके अपने-अपने दांव हैं लेकिन असली मोहरे तो कांग्रेस की ओर से उसके कप्तान राहुल गांधी चल रहे हैं और पूरी तरह से चाहे पैट्रोल-डीजल मूल्य वृद्धि हो या राफेल सौदा, वह हर मामले में भाजपा और विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी पर हमला करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसके अलावा राहुल का हिन्दू और हिन्दुत्व जागने लगा है। इसका उन्हें लाभ भी मिलने लगा है। मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा इन सबको वह राजनीतिक लाभ से जोड़ रहे हैं। सियासत में जो कुछ चला जा सकता है वह चल रहे हैं और दूसरे पर हमला करना ही सबसे बड़ा बचाव है। इस दृष्टिकोण से चुनावी राज्यों में जो कुछ घट रहा है वह स्वाभाविक है। हालात जो आज हैं और जो एक-दूसरे से अलग होकर लड़ने की बातें हैं ये सब दिखावा है। असली बात और सच्चाई कुछ और है। आने वाले दिनों में कल कौन, किसका दामन थाम ले यह कोई बड़ी बात नहीं है। महागठबंधन को लेकर इसलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन यह पक्का है कि विपक्ष के टारगेट पर सिर्फ भाजपा है।