आज से लाॅकडाऊन का तीसरा चरण शुरू हो रहा है जो दो सप्ताह तक चलेगा। इसे लेकर विरोधी दल सरकार की आलोचना कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि उसे स्पष्ट करना चाहिए कि लाॅकडाऊन पूरी तरह कब समाप्त होगा? बिना शक कहा जा सकता है कि पिछले 41 दिनों के लाॅकडाऊन ने भारत की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है परन्तु इसके लिए सरकार को किसी भी नजरिये से दोष नहीं दिया जा सकता। कोरोना वायरस से दूर रहने और उसे भगाने का एकमात्र यही रास्ता था जिसकी वजह से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने आह्वान किया था कि ‘जान है तो जहान है’ मगर यह भी हकीकत है कि बिना जहान के जान भी ‘बेजान’ हो जाती है, इसलिए जहान का कारोबार तो जान को ‘जिन्दादिल’ बनाये रखने के लिए करना ही पड़ेगा।
तीसरे चरण के लाॅकडाऊन के दौरान सरकार ने पूरे देश को तीन क्षेत्रों रैड, ओरेंज व ग्रीन जोन में बांट कर जिन रियायतों की घोषणा की है वे जमीन पर जिन्दगी की रौनकें वापस लाने के लिए ही हैं। विपक्षी पार्टी कांग्रेस के कई नेता लगातार मांग कर रहे हैं कि लाॅकडाऊन शुरू करते ही सरकार को इससे निपटने के लिए एक राष्ट्रीय योजना की घोषणा भी करनी चाहिए थी जो कि उस ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन अधिनियम- 2005’ का महत्वपूर्ण प्रावधान है जिसके तहत लाॅकडाऊन केन्द्र सरकार ने लागू किया था। जाहिराना तौर पर यह मांग जायज दिखाई देती है मगर हकीकतन एेसी किसी भी योजना का लाभ कारोबारियों से लेकर उद्योग जगत को तभी होगा जब लाॅकडाऊन पूरी तरह उठा लिया जाये और मुल्क में तिजारत से लेकर कारखानों का काम बदस्तूर तरीके से चलने लगे। जहां तक रोजाना काम करके घर चलाने वाले लोगों और प्रवासी मजदूरों का सवाल है तो इनके लिए केन्द्र व राज्य सरकारों ने कई मदद योजनाएं चलाईं। यह जरूर कहा जा सकता है कि हर तरफ काम धंधे चौपट होने की वजह से यह मदद पर्याप्त न हो लेकिन 130 करोड़ के मुल्क में केन्द्र व राज्य सरकारों ने मिल कर किसी एक इंसान को भी भूखा नहीं सोने दिया। ध्यान रखना चाहिए कि भारत की आबादी पूरी दुनिया की आबादी का पांचवां हिस्सा है।
यूरोप में किसी-किसी मुल्क की आबादी के बराबर तो इस देश के किसी एक जिले की आबादी है! यदि हम गौर से देखें तो कोरोना ने भारत की आन्तरिक ताकत को भी पूरी दुनिया के सामने जाहिर कर दिया है और बता दिया है कि मुसीबत के समय भारत की जनता एकजुटता के साथ मुकाबला करना जानती है। कोरोना जैसी अजीबो-गरीब बीमारी से लड़ने के लिए जिस तरह गांवों से लेकर शहरों तक के लोगों ने अनुशासनप्रियता दिखाई है वह एक लाजवाब मिसाल से कम नहीं है। भारत के गांव इस बीमारी से पूरी तरह अछूते रहते यदि तबलीगी जमात के लोगों ने अक्लमन्दी से काम लिया होता और बेवजह का मजहबी तास्सुब न दिखाया होता। इसके बावजूद लाॅकडाऊन के चलते प्रथम चरण के दौरान ही कृषि क्षेत्र को एहतियात के साथ अपना काम शुरू करने की इजाजत दी गई और ईश्वर की कृपा से गांवों में लोग सुख चैन से अपना दैनिक कारोबार कर रहे हैं परन्तु यह तस्वीर का एक पहलू है, दूसरा पहलू दिल दुखाने वाला है क्योंकि पूरे देश में छोटे-छोटे दस्तकारी या फनकारी या दुकानदारी का काम करने वाले लोग सर पकड़ कर घर में ही बैठे हुए हैं। चाहे वह बाल काटने वाला एक नाई हो या चाय-पकौड़े बेच कर घर चलाने वाला एक कामदार हो अथवा छोटा होटल या हलवाई की दुकान करने वाला कोई व्यक्ति हो, सभी बिना कमाई के बैठे रहे।
कहने का मतलब यह है कि लाॅकडाऊन के सन्नाटे ने सबसे ज्यादा इन्हीं लोगों को पीड़ा दी। तीसरे चरण के लाॅकडाऊन में इनकी पीड़ा समाप्त करने का सरकार ने फैसला लिया है, इसका स्वागत विपक्ष को भी करना चाहिए मगर इससे राष्ट्रीय योजना का सवाल समाप्त नहीं हो जाता बल्कि वह और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि दो सप्ताह तक लाॅकडाऊन बढ़ने के बाद आम भारतीय नागरिक अपेक्षा करेगा कि अब इस ‘बिन बुलाये मेहमान’ को ‘अलविदा’ कह दिया जाये। गंभीर सवाल है कि छोटे व मध्यम दर्जे के उद्योगों से लेकर बड़े उद्योगों को खोलने का माहौल बनाना शुरू किया जाये जिससे करोड़ों लोगों के रोजगार को फिर से हरा-भरा किया जा सके और कस्बों से लेकर शहरों में रौनकें फिर से लौट सकें। हालांकि केन्द्र ने प्रथम चरण में ही एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए के मदद पैकेज की घोषणा की थी परन्तु गरीबों के खाते में कुछ धन पहुंचने के सिवाय इसका लाभ उद्यमियों को तभी हो सकता है जब उनकी फैक्टरियां चलनी शुरू हों। अतः केन्द्र को दूसरा मदद पैकेज घोषित कर देना चाहिए।
लाॅकडाऊन की वजह से सरकार को भारी राजस्व हानि उठानी पड़ रही है। अतः राजस्व राशि की मिकदार बढ़ाने के लिए उसे आर्थिक गतिविधियों का चक्र तेजी से घुमाना होगा। फिलहाल तो 75 प्रतिशत से ज्यादा आर्थिक गतिविधियां बन्द हैं। अतः राजस्व हानि का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। जरूरी है कि ऐसी सन्तुलनकारी रणनीति बने जिससे कोरोना से जो लोग बाहर हैं वे बाहर ही रहें और आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय भी रहें। हम यह लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि कोरोना को नियन्त्रित करने में हमने जो तत्परता दिखाई है वह अन्य देशों के लिए एक उदाहरण है। 130 करोड़ की घनी आबादी वाले देश में यदि इस विनाशकारी वायरस से मरने वालों की संख्या हर साल डेंगू या फ्लू से मरने वाले लोगों से भी कम रहती है तो यह हमारी युद्धक क्षमता को दर्शाती है। कोरोना की आहट पर ही जिस तरह भारत में चिकित्सीय व्यवस्थाओं का ढांचा खड़ा किया गया उसे भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। अब हमें आर्थिक मोर्चे पर भी इसी हिम्मत से आगे बढ़ कर भारत को शक्तिमान बनाना होगा।