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पाकिस्तान में मतदान

कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि जब भारत की संसद के वर्षाकालीन सत्र में विभिन्न ज्वलन्त राष्ट्रीय मुद्दों पर गर्मागर्म बहस

कुछ लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि जब भारत की संसद के वर्षाकालीन सत्र में विभिन्न ज्वलन्त राष्ट्रीय मुद्दों पर गर्मागर्म बहस और वाद-विवाद हो रहा है और चौतरफा अराजकता का माहौल इस मुल्क को अपनी गिरफ्त में लेने के मुहाने पर बैठ सा गया है तब मैं पड़ौसी देश पाकिस्तान में हो रहे चुनावों की बात कर रहा हूं मगर इसकी एक खास वजह है, वह यह है कि पाकिस्तान की राजनीतिक करवट का भारत से गहरा लेना-देना पिछले सत्तर साल से इस तरह रहा है कि यह मजहब की राजनीति करने वालों के लिए मिसाल बनकर हमें सावधान करता रहा है। इस मुल्क का वजूद जिस तरह केवल हिन्दोस्तान के विरोध पर टिकाये रखने की कोशिशें यहां के फौजी हुक्मरान और कट्टरपंथी तबके करते रहे हैं उसी वजह से इस मुल्क में कभी भी लोकतन्त्र मजबूत नहीं हो पाया और आम पाकिस्तानी नागरिक की उन जरूरतों की तरफ तवज्जो नहीं दी गई जो किसी भी गैरतमन्द मुल्क के लिए लाजिमी होती है।

आज 25 जुलाई को पाकिस्तान की राष्ट्रीय एसेम्बली के लिए मतदान होगा। इसमें तीन प्रमुख पार्टियों पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन), पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान तहरीके इंसाफ पार्टी के बीच टक्कर होने की संभावना है। इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्रिकेटर से सियासतदां बने इमरान खां की तहरीके इंसाफ पार्टी इन चुनावों को भारत विरोध को मुख्य मुद्दा बनाकर लड़ रही है और कश्मीर में आतंकवाद को जंगे आजादी की लड़ाई बता रही है। इसे यहां की फौज का समर्थन इस तरह प्राप्त है कि तमाम दहशतगर्द तंजीमों के अगुवा रहे लोग इसके झंडे के नीचे भेष बदल कर चुनाव लड़ रहे हैं जबकि घोषित अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी हाफिज सईद ने अपनी राजनैतिक पार्टी बनाकर इस्लामी कट्टरपंथियों को मैदान में उतार रखा है।

दूसरी तरफ मुस्लिम लीग व पीपुल्स पार्टी का चुनावी एजेंडा बिल्कुल दूसरा है। ये पार्टियां पाकिस्तान काे इस बवाल से बाहर निकालने के लिए एेसे मुद्दे रख रही हैं जिनसे पाकिस्तान में फौज की हुकूमत में दखलन्दाजी कम हो और चुनी हुई सरकारों के अख्तियारों में इस तरह इजाफा हो कि वे इसकी विदेश व रक्षा नीति की दिशा भी निर्धारित कर सकें। पूर्व प्रधानमन्त्री नवाज शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग ने इसी वजह से इन चुनावों में यह नारा दे रखा है कि वोट को इज्जत दो। इसके साथ ही पीपुल्स पार्टी के सरपरस्त बिलावल भुट्टो मुल्क में फैली नफरत की सियासत को खत्म करके लोगों को लोकतान्त्रिक अधिकारों से लैस करना चाहते हैं।

यह पाकिस्तान की राजनीति का वह मोटा-मोटा अक्स है जो इन चुनावों में उभरा है मगर कयास लगाये जा रहे हैं कि फौज इमरान खां की पूरी मदद कर रही है और इस काम में उसने अदालतों का इस्तेमाल इस तरीके से किया है कि नवाज शरीफ को जेल के भीतर भिजवा दिया है। उनके साथ ही उनकी बेटी मरियम नवाज को भी भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में बन्द कर दिया गया है किन्तु यह भी हकीकत है कि जेल में बन्द रहने के बावजूद नवाज शरीफ पर साबित हुए भ्रष्टाचार के आरोपों का यहां की अवाम पर ज्यादा असर नहीं है और वह उनकी पार्टी के गढ़ पंजाब प्रान्त में यहां हुई रैलियों में भारी तादाद में शिरकत करती नजर आयी है। वहीं सिन्ध प्रान्त में पीपुल्स पार्टी का दबदबा भी कम नहीं हुआ है।

इससे इतना तो कयास लगाया ही जा सकता है कि इमरान खान की जो विश्वसनीयता फौज पर्दे के पीछे से आम जनता के बीच बनाना चाहती है उसमें भारी बाधाएं हैं। पाकिस्तान की आधी ताकत केवल इसके पंजाब प्रान्त में ही है क्योंकि इसकी राष्ट्रीय एसेम्बली की कुल 272 सीटों में से इस राज्य का हिस्सा 141 सीटों का है। उसके बाद सिन्ध प्रान्त का 69 सीटों का है। इमरान खां का खैबर पख्तूनख्वा राज्य है जिसमें 30 से अधिक सीटें हैं। फौज की कोशिश है कि मजहबी तास्सुब उभार कर और भारत विरोध को भड़का कर इमरान खां को गद्दी नशीं कर दिया जाये जिससे वह पाकिस्तान में अपनी मनमानी लोकतन्त्र का नकाब ओढ़कर करती रहे और आतंकवादी गिरोहों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल करती रहे। इसका पता तो 26 जुलाई को पूरे चुनाव नतीजे आने के बाद ही चलेगा कि पाकिस्तान कौन सी राह पकड़ेगा।

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