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युद्ध से क्या हासिल हुआ?

रूस और यूक्रेन युद्ध के 200 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं।

‘‘तर्कों के बिना ही हो सकता है आक्रांत
युद्ध की आचार संहिता पढ़ने के बावजूद
निहत्थे योद्धा की हो सकती है हत्या
सिर्फ धुएं से ही आग की खबर मिल जाती है
गिद्ध मृतकों की सूचना दे देते हैं।’’
रूस और यूक्रेन युद्ध के 200 से ज्यादा दिन बीत चुके हैं। महाशक्ति रूस ने यूक्रेन को तबाह करके रख दिया है। उसकी आधी आबादी पलायन कर चुकी है। शहर खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं लेकिन यूक्रेन की सेना अब भी लड़ रही है। किसी ने नहीं सोचा होगा कि युद्ध इतना लम्बा खिंच जाएगा। कीव से लेकर खारकीव तक रूस  ने बुलंद इमारतों को मलबे में तब्दील कर दिया लेकिन अभी भी वह विजेता नहीं है। एक रिपोर्ट में तो यह दावा किया गया है कि युद्ध में रूस को बहुत नुक्सान हुआ है। उसके 80 हजार सैनिक या तो मारे गए हैं या गम्भीर रूप से घायल हुए हैं। उसके हथियारों की भीषण बर्बादी हुई है। उसके एक हजार से अधिक टैंक तबाह हुए और 300 टैंकों पर यूक्रेन के सैनिकों का कब्जा है। जिन क्षेत्रों पर रूस ने कब्जा जमाया, यूक्रेनी सेना उन पर दोबारा कब्जा कर लेती है। खारकीव से रूसी सेना भागने लगी है।
प्रतिरोध से परेशान रूसी सेना बौखलाहट में है और लगातार बमबारी कर रही है। युद्ध की शुुरूआत में ऐसा लगता था कि यूक्रेन जल्द ही असहाय हो जाएगा। यूक्रेन ने लगातार प्रतिरोध कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। एक जमाना था जब सोवियत संघ के पास दुनिया को तबाह करने वाले परमाणु हथियार थे तब उस दौर को शीत युद्ध कहा गया। सोवियत संघ की सेना जिसकी ताकत पूरी दुनिया में थी और जिसने हिटलर की सेना को तबाह कर दिया था, उसने भी 1980 के दशक में अफगानिस्तान में पहली हार का सामना किया। ऐसा नहीं है कि रूस के पास परमाणु हथियार नहीं है, वह आज भी काफी शक्तिशाली है। फिर ऐसा क्या हुआ कि रूस को अब तक जीत हासिल नहीं हुई। पश्चिमी देश और अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध तो लगाए लेकिन वे सीधे युद्ध में शामिल नहीं हुए। नाटो देश युद्ध में शामिल इसलिए नहीं हुए क्योंकि इससे युद्ध का स्वरूप ही बदल जाता। 
पश्चिमी देशों के नेताओं को डर था कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन कहीं परमाणु हथियार का इस्तेमाल न करें। अमेरिका और यूरोपीय के देशों ने यूक्रेन को गोला बारूद और अन्य हथियार देना शुरू कर दिया। इस कदम ने युद्ध को प्रभावित कर दिया। अब तक 30 से अधिक देश यूक्रेन को सैन्य मदद दे चुके हैं और यूरोपीय यूनियन एक अरब यूरो और अमेरिका एक दश्मलव सात अरब डालर की मदद दे चुका है। यूक्रेन को लगातार रक्षा उपकरण मिल रहे हैं, जिनमे टैंक रोधी और मिसाइल रोधी डिफैंस सिस्टम शामिल हैं। आज के दौर में युद्ध की शैली बदल गई है। रूसी सेना शायद शहरों में लड़ने की योजना के साथ नहीं आई थी। अब जबकि रूस की फौजें कई इलाकों से वापस लौट रही हैं तो बहुत सारे सवाल उठने लगे हैं। पुतिन के समर्थक भी अब सवाल दाग रहे हैं। इस युद्ध के कारण पूरी दुनिया प्रभावित हुई है। दुनिया भर में तेल-गैस की आपूर्ति बाधित हुई, जिससे दाम बढ़ गए। रूस को भी आर्थिक प्रतिबंधों का नुक्सान उठाना पड़ रहा है और पूरी दुनिया को भी। रूस पश्चिमी देशों को गैस की सप्लाई नहीं दे रहा। गैस की सप्लाई से कमाया गया धन रूस की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है जो वह युद्ध पर खर्च कर रहा है। युद्ध के बाद दुनिया भर में खाने-पीने के उत्पाद महंगे हो गए। लगातार बढ़ रही महंगाई के चलते दुनिया भर से सात करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए। दुनिया में इस युद्ध का असर कब तक रहेगा, यह बताना मुश्किल है। छोटे देश जब लम्बी लड़ाई लड़ते हैं तो नुक्सान बहुत ज्यादा होता है। 
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि युद्ध रूस जीत भी गया तो उसे क्या हासिल होगा। अगर यूक्रेन ने रूसी फौजों को धूल चटा भी दी तो उससे क्या हासिल होगा। युद्ध से जो तबाही हो चुकी है, वह तबाही केवल इन दोनों देशों की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की तबाही है। इस दुनिया को युद्ध का अंधार नहीं शांति के उजाले की जरूरत है। शक्ति सम्पन्न देशों को युद्ध रोकने के प्रयास गम्भीरता से करने होंगे। भारत को भी शांति प्रयास करने चाहिएं। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध की ​विभीषता से मुक्ति मिलनी ही चाहिए। युद्ध से अब तक जो हासिल हुआ है वह है तबाही का मंजर, जवानों की मौत पर विधवाओं का क्रंदन, बिलखते मां-बाप और बच्चों का चीत्कार। युद्ध में न कोई हारेगा न कोई जीतेगा। इस समय केवल मानवता कराह रही है। दोनों देश अहंकार का विसर्जन कर युद्ध को रोकें वर्ना कुछ हासिल होने वाला नहीं।
­आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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