शिवसेना का बड़ा सियासी चेहरा संजय राउत आजकल मुश्किल में फंसते नजर आ रहे हैं। ईडी ने पात्रा चॉल मामले में उन पर शिकंजा कस दिया हैं। लेकिन संजय राउत ने हिरासत में लिए जाने पर जाते समय अपने तेवरों को प्रदर्शित किया। उन्होनें शिवसेना कार्यकर्ताओं को हाथ हिलाकर धन्यवाद दिया व केंद्र पर जमकर निशाना साधा। संजय राउत लगातार महाराष्ट्र व मराठी मानुष को लेकर केंद्र सरकार के प्रति गर्म तेवर अपनाते हैं। संजय राउत कभी शिवसेना के मुखपत्र सामना में क्राइम रिपोर्टर हुआ करते थे। लेकिन बालासाहेब ठाकरे से नजदीकी के चलते उन्हे सियासी बुलंदियों पर पहुंच गए।
अलीबाग में जन्म , शिवसेना बनी सियासी भविष्य
संजय राउत का जन्म बुधवार, 15 नवंबर 1961 को अलीबाग, महाराष्ट्र में हुआ था। संजय राउत सोमवंशी क्षत्रिय पठारे जाति के हैं। उनके माता-पिता राजाराम राउत और सविता राजाराम राउत हैं। उनके छोटे भाई सुनील राउत शिवसेना के भी राजनेता हैं। उन्होंने वडाला, मुंबई में डॉ अंबेडकर कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स से बैचलर ऑफ कॉमर्स (बीकॉम) किया। शिवसेना में आज संजय राउत का कद उद्धव ठाकरे के बाद का है।
महाराष्ट्र के क्षत्रिय पठारे समुदाय से आते हैं राउत , बी कॉम से पत्रकारिता के क्षेत्र में आए
राउत सोमवंशी क्षत्रिय पठारे समुदाय से आते हैं। मुंबई के कॉलेज से बी.कॉम. करने के बाद वह पत्रकारिता के क्षेत्र में आ गए। वह एक मराठी अखबार में क्राइम रिपोर्टर के तौर पर कार्य करने लगे। संजय राउत बड़े सरीखे के साथ क्राइम की स्टोरी को लिखते थे। बताया जाता हैं कि राउत के अंडरवर्ल्ड में अच्छे सूत्र थे और क्राइम रिपोर्टर के तौर पर अच्छी पहचान थी।
बालासाहेब को काफी पंसद आया था राउत का लेख
क्राइम स्टोरी के लिखने के दौरान ही सामना में भी पत्रकारों के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे। जिसमें संजय राउत कार्यकारी संपादक के तौर पर शिवसेना के मुखपत्र में लेख लिखने लगे। कुछ दिनों बाद ही संजय राउत का सामना में कद काफी बढ़ गया, इसके बाद सामना का हिंदी एडिशन भी शुरू किया। संजय राउत की इसमें बड़ी भूमिका थी। जल्दी ही बालासाहेब के विचार और संजय राउत की लेखनी का तालमेल इतना अच्छा हो गया कि वह जो कुछ लिख देते थे उसे बालासाहेब का ही विचार माना जाता था।
परिवार में सियासी फूट पड़ी तो दोस्त का साथ छोड़ा
बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना की नींव पड़ चुकी थी, शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे पर महाराष्ट्र में अपनी सियासी पकड़ का विस्तार करती जा रही थी। लेकिन बालासाहेब अपना नेतृत्व आागामी पीड़ी को सौंपना चाहते थे, लेकिन बालासाहेब वंहा पुत्रमोह में घिर गए। बालासाहेब ने अपने उद्धव ठाकरे को शिवसेना का नेतृत्व सौंप दिया। जिसके बाद परिवार में पहली सियासी फूट पड़ गई। भतीजे राजठाकरे ने अपना सियासी दल की घोषणा जिसके प्रमुख खुद राज ठाकरे बने। लेकिन इस दौरान संजय मुखपत्र के साथ सियासत हाथ पैंर मारने लगे थे। परिवार में फूट के चलते संजय राउत ने राज ठाकरे का साथ छोड़कर उद्धव ठाकरे का साथ निभाया। मुखपत्र सामना में भी वह राज ठाकरे पर हमला बोला करते थे। 2004 में शिवसेना ने पहली बार उन्हें राज्यसभा भेजा। राउत संसद में शिवसेना का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना का नाम राउत के साथ जरूर लिया जाता हैं।