मध्यप्रदेश में चल रहे सियासी घमासान के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के रुख पर कांग्रेस और विपक्षी भाजपा की नजर है। सिंधिया का रुख सामने आने के बाद ही दोनों दल आगामी रणनीति पर कदम बढ़ाएंगे।
राज्य में छह दिनों से सियासी पारा चढ़ा हुआ है। पहले 10 विधायकों के गायब होने से कमल नाथ सरकार संकट में आई थी, उसके बाद सोमवार को खबर आई कि सिंधिया के समर्थक 17 विधायक भोपाल में नहीं हैं, वे दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। इतना ही नहीं, कुछ विधायकों के बेंगलुरू ले जाने की बातें कही गईं। इन विधायकों और मंत्रियों, जिनमें गोविंद सिंह राजपूत, इमरती देवी, महेंद्र सिंह सिसौदिया, तुलसी सिलावट शामिल हैं के फोन बंद हैं।
इस बीच दिल्ली से खबर आई कि सिंधिया पार्टी हाईकमान से खुश नहीं हैं। वे कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। इसने कांग्रेस की मुसीबत और बढ़ा दी। वहीं भाजपा को भी कांग्रेस के भीतर चल रही खींचतान से संभावना नजर आने लगी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कांग्रेस और भाजपा में विधायकों की संख्या के आधार पर कोई बड़ा अंतर नहीं है। भाजपा ने मंगलवार को पार्टी के विधायक दल की बैठक बुलाई है।
राज्य में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं है। राज्य की 230 सीटों में से 228 विधायक हैं, दो सीटें खाली हैं। कांग्रेस के 114 और भाजपा के 107 विधायक हैं। कांग्रेस की कमल नाथ सरकार निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा के एक विधायक के समर्थन से चल रही है।
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि सिंधिया समर्थक चाहते हैं कि सिंधिया को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए और राज्यसभा में भेजा जाए। सिंधिया समर्थक विधायकों के फोन बंद आने के बाद कांग्रेस लगातार उनसे संपर्क करने की कोशिश कर रही है, मगर किसी से संपर्क नहीं हो पा रहा है।
सिंधिया की नाराजगी से पार्टी हाईकमान भी वाकिफ है और उन्हें मनाने की कोशिश शुरू कर दी है। उन्हें भरोसा दिलाया जा रहा है कि पार्टी बड़ी जिम्मेदारी देगी। पार्टी हाईकमान और सिंधिया के बीच चल रहे संवाद के ही कारण मुख्यमंत्री कमल नाथ ने रात नौ बजे होने वाली कैबिनेट की बैठक टाल दी थी।
इस तरह भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की सिंधिया के रुख पर नजर है। सूत्रों का कहना है कि अगर सिंधिया समर्थक पार्टी से दूरी बनाए रहते हैं तो मुख्यमंत्री कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं, तो दूसरी ओर भाजपा को सरकार बनाने का रास्ता नजर आ सकता है।