नई दिल्ली, (पंजाब केसरी) : गेहूं के वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मामूली हिस्सेदारी के बावजूद उस पर निर्यात खोलने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। जबकि देश की खाद्य सुरक्षा हर हाल में सुनिश्चि रखने के लिए भारत विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) के तहत गेहूं निर्यात खोलने के पक्ष में नहीं है। अगले महीने जून में होने वाली विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की बैठक में भारत पर डब्ल्यूएफपी के तहत अनाज निर्यात जारी रखने के लिए दबाव डाला जा सकता है, लेकिन भारत इसे मानने के लिए तैयार नहीं है। भारत की पहली प्राथमिकता देश की खाद्य सुरक्षा को सुरक्षित रखने की है। भारत का कहना है डब्ल्यूएफपी के तहत निर्यात जारी तभी रखा जा सकता है जब भारत को जरूरतमंद देशों को भी अनाज निर्यात करने की इजाजत दी जाए।
गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन संकट के बाद वैश्विक स्तर पर गेहूं की आपूर्ति कम होने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं और आटा के दाम बढ़ गए हैं। ऐसे में, भारत ने देश की खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब डब्ल्यूटीओ की मांग है कि ऐसी स्थिति में भी डब्ल्यूएफपी की तरफ से अनाज की मांग करने पर भारत को अपने पब्लिक स्टॉक होल्डिंग से निर्यात जारी रखना चाहिए। सिंगापुर समेत 70 से अधिक देश आगामी जून के दूसरे सप्ताह में होने वाली डब्ल्यूटीओ की मिनिस्ट्रिलय कांफ्रेंस में भारत पर इस मांग को मानने के लिए दबाव बना सकते हैं।
वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक भारत का कहना है कि अगर डब्ल्यूटीओ की तरफ से पब्लिक स्टॉक होल्डिंग से जरूरतमंद देशों को अनाज निर्यात करने की इजाजत दे दी जाती है, तभी भारत डब्ल्यूएफपी को निर्यात जारी रखने की मांग मानने पर राजी हो सकता है। अभी भारत को पब्लिक स्टॉक होल्डिंग से निर्यात की इजाजत नहीं है। मंत्रालय का कहना है कि डब्ल्यूएफपी संयुक्त राष्ट्र से जुड़ा संगठन है और किसी देश में खाद्य संकट होने पर डब्ल्यूएफपी पहले उस देश में खाद्य की जरूरत की समीक्षा करेगा, फिर पैसे का इंतजाम करके आयात करता है। सिर्फ डब्ल्यूएफपी के तहत अनाज निर्यात करने की शर्त मानने पर भारत बांग्लादेश, अफगानिस्तान, श्रीलंका एवं अफ्रीका के कई जरूरतमंद देशों को अनाज की आपूर्ति नहीं कर पाएगा।