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न्यायालय का सुपरटेक के 40 मंजिला दो टॉवरों को गिराने का निर्देश, नोएडा प्राधिकरण को कड़ी फटकार

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में नियमों का उल्लंघन कर एमेराल्ड कोर्ट परियोजना में बनाए गए सुपरटेक के 40 मंजिला दो निर्माणाधीन टॉवरों को मंगलवार को तीन महीने के भीतर गिराने का निर्देश दिया

उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के नोएडा में नियमों का उल्लंघन कर एमेराल्ड कोर्ट परियोजना में बनाए गए सुपरटेक के 40 मंजिला दो निर्माणाधीन टॉवरों को मंगलवार को तीन महीने के भीतर गिराने का निर्देश दिया और कहा कि मामले में जिले के अधिकारियों की ‘‘मिलीभगत’’ साफ नजर आती है तथा कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अवैध निर्माण से सख्ती से निपटे जाने की आवश्यकता है।
नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण (नोएडा) के अधिकारियों की खिंचाई करते हुए न्यायालय ने इसके अधिकारियों की एमेराल्ड कोर्ट परियोजना में सुपरटेक के साथ मिलीभगत की कई घटनाओं को रेखांकित किया। इसने कहा, ‘‘मामले से योजना प्राधिकारण और डेवलेपर के बीच कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के सिलसिले में कपटपूर्ण मिलीभगत का खुलासा हुआ है।
शीर्ष अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि घर खरीददारों का समूचा धन बुकिंग की तारीख से 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाया जाए और दोनों टॉवरों की वजह से एमेराल्ड कोर्ट की रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए) को हुई परेशानी के लिए दो करोड़ रुपये दिए जाएं।
आरडब्ल्यूए ने नोएडा के सेक्टर 93 ए स्थित संबंधित टॉवरों के खिलाफ कानूनी लड़ाई की शुरुआत करते हुए कहा था कि इनकी वजह से धूप और ताजी हवा रुक गई है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने टॉवरों को गिराने से संबंधित इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 11 अप्रैल 2014 के आदेश को बरकरार रखते हुए 140 पन्नों के अपने फैसले में कहा, ‘‘इस मामले का रिकॉर्ड नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों की, अपीलकर्ता तथा इसके प्रबंधन के साथ मिलीभगत के उदाहरणों से भरा है।’’
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि वह सुपरटेक और नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश नगर विकास कानून और औद्योगिक क्षेत्र विकास कानून के प्रावधानों के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के उच्च न्यायालय के आदेश की भी पुष्टि करती है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि टॉवरों-एपेक्स और सियेन (टी-16 और टी-17) को गिराने के उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है और उच्च न्यायालय द्वारा टॉवरों को गिराने के लिए दिए गए आदेश की पुष्टि की जाती है।
इसने उल्लेख किया कि दोनों टॉवरों में कुल मिलाकर 915 अपार्टमेंट और 21 दुकानें हैं।
सुपरटेक के अनुसार, शुरू में फ्लैट बुक करने वाले 633 लोगों में से 133 ने अन्य परियोजनाओं में बुकिंग की है और 248 पैसा वापस ले चुके हैं तथा 252 गृह क्रेताओं की परियोजना में कंपनी के साथ अब भी बुकिंग है।
पीठ ने कहा कि दोनों टॉवरों को नोएडा प्राधिकरण और विशेषज्ञ एजेंसी की निगरानी में तीन माह के भीतर गिराया जाए और इसका पूरा खर्च सुपरटेक लिमिटेड उठाएगा।
आरडब्ल्यूए ने नौ साल से चली आ रही कानूनी लड़ाई में शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत किया है।
न्यायालय ने कहा कि भवन विनियमन के अनुपालन का दायित्व सुनिश्चित करने में योजना प्राधिकार की विफलता उन लोगों के आग्रह पर कार्रवाई योग्य है जिनके अधिकारों का उल्लंघन हुआ।
इसने कहा, ‘‘अनुपालन सुनिश्चित करने में योजना प्राधिकरण के विफल रहने की वजह से उनकी (संबंधित लोगों) जीवन गुणवत्ता पर सीधा असर पड़ा।’’
इस बीच, सुपरटेक के प्रबंध निदेशक मोहित अरोड़ा ने कहा कि कंपनी उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी।
वहीं, नोएडा प्राधिकरण ने कहा कि वह टॉवर गिराने के उच्चतम न्यायालय के आदेश का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करेगा।
नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) रितु माहेश्वरी ने कहा कि प्राधिकरण सुपरटेक मामले में नियमों का उल्लंघन करने के दोषी विभाग के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।
प्राधिकरण में जुलाई 2019 में पदस्थापना प्राप्त करने वाली वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि उल्लंघन 2004 और 2012 के बीच हुआ था।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नोएडा प्राधिकरण ने उप्र अपार्टमेंट्स अधिनियम 2010 का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जिसके परिणामस्वरूप फ्लैट खरीददारों के अधिकारों का उल्लंघन हुआ, इसलिए कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अवैध निर्माण से सख्ती से निपटे जाने की आवश्यकता है।
पीठ ने कहा कि जैसा कि इस मामले से पता चलता है, उन्हें (गृह क्रेताओं) सूचना से वंचित किया गया। इसलिए कानून को उनकी वैध चिंताओं का समाधान करना होगा।
वर्ष 2012 में आरडब्ल्यूए सबसे पहले इस लड़ाई को इलाहाबाद उच्च न्यायालय लेकर पहुंची थी जिसने 11 अप्रैल 2014 को दोनों निर्माणाधीन टॉवरों को गिराने का आदेश दिया था।
बिल्डर ने इसके एक महीने बाद शीर्ष अदालत का रुख किया था जिसने यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।
आवासीय परियोजना के निवासियों ने उच्चतम न्यायालय के फैसले पर कहा कि सत्य की जीत हुई है।
निवासियों ने कहा कि 15 टॉवरों में कुल 660 फ्लैट हैं लेकिन वर्ष 2009 में नियमों का उल्लंघन कर दो टॉवरों का निर्माण शुरू हुआ और उन्हें बताया गया कि यह अलग परियोजना का हिस्सा है।
एमेराल्ड कोर्ट आरडब्ल्यूए के पूर्व अध्यक्ष एसके शर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमने परियोजना से जुड़े नक्शे और मंजूरी पत्र को देखने पर जोर दिया, क्योंकि परियोजना बहुत बड़ी दिख रही थी और दो ढांचों के बीच की दूरी के नियम का उल्लंघन करती प्रतीत हो रही थी। कई बार की कोशिशों के बाद हमें नक्शा देखने को मिला जिसे देखकर हम स्तब्ध रह गए। हमें महसूस हुआ कि बिल्डर नियमों का उल्लंघन कर रहा है।’’
शर्मा ने कहा कि सच की जीत हुई है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि 26 नवंबर, 2009 को परियोजना की दूसरी संशोधित योजना को मंजूरी देने, भवन नियमों के स्पष्ट उल्लंघन, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन को योजना का खुलासा करने से इनकार करने जैसी चीजों से नोएडा प्राधिकरण की मिलीभगत का पता चलता है।
पीठ ने कहा कि जब मुख्य अग्निशमन अधिकारी ने नोएडा प्राधिकरण को दो टॉवरों के बीच न्यूनतम दूरी की आवश्यकता के उल्लंघन के बारे में लिखा, तो योजना अधिकारियों ने कोई कार्रवाई नहीं की ।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने बिल्डर के साथ नोएडा प्रशासन की मिलीभगत की बात कही थी जो अदालत के समक्ष तथ्यों के रूप में उभरी।

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