लोहार्गल सूर्य मंदिर राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है। ये राजस्थान के झुन्झुनू जिले में स्थित है और देश के सबसे प्राचीन सूर्य मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में हुआ था और ये भगवान सूर्य को समर्पित है। पूरे विश्व में 44 सूर्य मंदिरों में से एक है लेकिन ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां सूर्य भगवान अपनी पत्नी छाया के साथ विराजमान हैं।
मंदिर में भगवान सूर्य की एक विशाल प्रतिमा है जो एक सिंहासन पर बैठी हुई है। प्रतिमा के चारों ओर अन्य देवताओं और देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी हैं। लोहार्गल सूर्य मंदिर के बीच में एक कुंड है जिसे सूर्य कुंड कहते हैं। मान्यता है कि इस कुंड का पानी अमृत के समान है और इसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं। इस देवस्थान को लेकर मान्यता है कि धरती पर भगवान विष्णु ने सबसे पहले इसी जगह पर अवतार लिया था।
लोहार्गल सूर्य मंदिर के बारे में एक लोकप्रिय मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडवों को अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए एक तीर्थ की तलाश में थे। श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि जिस तीर्थ स्थल के तालाब के पानी में तुम्हारे हथियार गल जायेंगे, वहीं तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होगा। ऐसे में एक घूमते-घूमते पांडव लोहार्गल आ पहुंचे थे।
पांडवों ने यहां आकर भगवान सूर्य की पूजा की थी। इसी कुंड में उनके सारे हथियार गल गए थे। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां स्नान करने के बाद अपने पापों से मुक्ति पाई थी। इसलिए इस मंदिर को तीर्थराज भी कहा जाता है। आज भी मान्यता है कि लोहार्गल में मृत व्यक्ति की अस्थियां विसर्जन करने पर वो अस्थियां बहाये हुए पानी में गल जाती हैं।
लोहार्गल सूर्य मंदिर एक प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल है। ये मंदिर दूर-दूर से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। आज भी राजस्थान में पुष्कर के बाद लोहार्गल को दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां पर हर साल लाखों भक्त आते हैं और इस पवित्र में डूबकी लगाते हैं। ये मंदिर राजस्थान के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।