दुनिया में कई अजूबे हैं और उन्हें बनाने वाले भी तो किसी अजूबे से कम नहीं। ये सच हैं कि हम कला को तो देख लेते हैं लेकिन उसकी खूबसूरती को बनाने वाले कलाकार को नहीं। देश में ऐसे कई कलाकार हैं जिनका आर्ट आज भी लोगो की नज़रो से दूर हैं। ऐसे ही कलाकार जो हमारे देश को अपनी कला की खूबसूरती से और भी निखार देते हैं। और भी ज़्यादा मनमोहक बना देते हैं। ऐसे में ये तो ज़रूरी नहीं हैं न कि अगर आप कला करेंगे तो ही आपको कलककर कहा जाये कुछ लोग बेशक अपने शौक के लिए कला करे लेकिन उनकी कला सबका नजरिया बदल कर रख देती हैं।
एक ऐसा ही पठानकोट के एक शख्स के साथ भी हुआ है। जो पेशे से तो एक क्लर्क हैं लेकिन इनकी कला देख अच्छे-अच्छा के मुँह से निकल जायेगा भई वाह, जिनका शौक अब मिट्टी से मूर्ति बनाने की कला उनकी पहचान बन चुकी है। इतना ही नहीं बल्कि बॉबी सैनी का दावा है कि वह किसी शख्स को एक बार देख लेते हैं तो उसकी हू-ब-बू मूर्ति बनाने में वह पूरी तरह से सक्षम हैं।
वह अब तक दिवगंत गायक सिद्धू मूसेवाला की साथ ही दीप सिद्धू और प्रधानमंत्री मोदी सहित कई नामचीन हस्तियों की मूर्तियां बना चुके हैं। और सबसे खास बात तो ये हैं की मूर्तियों की बनावट के लिए वह जिस मट्टी का प्रयोग करते हैं वह गांव की साधारण मिटटी ही होती हैं।
कलाकारों का शहर बन चूका हैं पठानकोट
इन कलाओ को देख अब वाकई कहना पड़ेगा कि पठानकोट एक कलाकार का शहर बन चूका हैं। क्योकि न सिर्फ बॉबी बल्कि इनसे पहले कई और भी कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। सभी ने पठानकोट का नाम दुनियाभर में रोशन किया है और अब बॉबी सैनी भी उन्हीं कलाकारों में से एक की गिनती में गिने जाते हैं। जिसके बाद एक इंटरव्यू के दौरान बॉबी सैनी ने कहा की हम जैसे पंजाब के कई कलाकारों की मदद में सरकार को आगे बढ़ना चाहिए। अगर सरकार मदद करे तो प्रदेश के कलाकार अपनी कला को नए आयाम देकर दुनियाभर में नाम कमा सकते हैं।
विदेशी शैली की मूर्तिया अब होंगी भारत में
मिटटी की मूर्ति बनाकर एक सफल कदम आगे बढ़ाते हुए बॉबी सैनी ने विदेशों की शैली में सिलिकॉन की मूर्तियां बनाना भी अब शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं बल्कि बॉबी द्वारा बनाई गई ये सिलिकॉन मूर्तियां एकदम दिखने में तो किसी वास्तविक व्यक्ति की तरह नज़र आती हैं। क्योकि उनका इसे बनाने के पीछे का एक और कारण सामने आया जिसमे उन्होंने कहा कि, “पहले लोग ऐसी कलाकृतियों को देखने के लिए विदेशों में जाते थे, लेकिन अब पठानकोट में ही रहकर ऐसी मूर्तियां वह बना रहे हैं, जिसकी चर्चा भी है.”