नेपाल में माओवाद केंद्र के पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ नए प्रधानमंत्री बन चुके हैं। सत्ता संघर्ष की लड़ाई में प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस को पटखनी दे दी हैं। कांग्रेस के हाथों से खिसकी कमान ने पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली को सत्ता की बागड़ोर में जगह दिला दी हैं। ओली अब प्रचंड सरकार में किंगमेकर की भूमिका अदा करेंगे। आपको बता दें कि ओली को नेपाल में चीन का मुखौटा माना जाता है। वहीं पीएम प्रचंड को चीन का समर्थक माना जाता है और वह चीनी नेता माओत्से को अपना आइडल मानते है। ऐसे में भारत के लिए नई समस्या उत्पन्न होने के पूर्ण आसार है।
भारत की सीमा पर घेराबंदी कर सकता है चीन
नेपाल में चीन का सबसे अहम प्रोजेक्ट BRI (बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव) लंबे समय से अटका हुआ है। अगर ये प्रोजेक्ट पूरा होता है तो रेल और सड़क के रास्ते चीन से नेपाल आना आसान हो जाएगा। माना जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट को अब चीन जल्द से जल्द पूरा कर लेगा। दरअसल नेपाल में माओवाद समर्थित दलों का ड्रैगन के प्रति झुकाव जगजाहिर है। चीन इसका पूरा लाभ उठाएगा। विशेषज्ञों की माने तो बेल्ट एंड रोड इनिसिएटिव प्रोजेक्ट के पूरा होने पर चीन नेपाल के रास्ते भारत की सीमा पर घेराबंदी कर सकता है। वहीं दूसरा मुद्दा लिपुलेख और कालापानी का है। दरअसल ओली सरकार ने चीन के दबाव में आकर नया नक्शा जारी किया था। जिसमें लिपुलेख और कालापानी को नेपाल अपना बता रहा था। इस दावे के बाद भारत और नेपाल में दूरियां बढ़ गई थी। माना जा रहा कि एकबार फिर यह मुद्दा दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न कर सकता है।
देउबा सरकार की विदाई
शेर बहादुर देउबा और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के बीच चली तनातनी ने देउबा सरकार की विदाई करवा दी है। जानें किस वजह से गई कांग्रेस सरकार –
सत्ता हस्तणांतरण: प्रचंड शुरुआत के ढाई साल खुद को प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहे थे। जिसका देउबा विरोध कर रहे थे।
राष्ट्रपति पद: प्रचंड माधव कुमार नेपाल को राष्ट्रपति बनाने के इच्छुक थे। वहीं देउबा किसी कांग्रेसी को इस पद पर बैठाना चाहते थे। प्रचंड-देउबा की बढ़ती दूरियों को देखते हुए ओली ने प्रचंड को पीएम बनने का प्रस्ताव दिया। जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।
इन दलों का प्रचंड सरकार को समर्थन :