उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने शुक्रवार को कहा कि दुनियाभर के लोगों ने यह माना है कि भारतीय परिवार व्यवस्था समाज में सौहार्द, दूसरों की चिंता और आंतरिक शांति की दिशा में आगे बढ़ने की राह दिखाती है।
उन्होंने कहा कि समय की कसौटी पर खरी अपनी मजबूत परिवार व्यवस्था के कारण भारत पूरी दुनिया के लिए आदर्श हो सकता है।
यहां इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर दी आर्ट्स (आईजीएनसीए) में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए उन्होंने समाज में माताओं की भूमिका को सराहते हुए कहा कि सभी धर्मों में श्रद्धा और आदर के साथ माताओं का उच्च स्थान प्रदान किया गया है।
सम्मेलन में नायडू ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम – परिवार व्यवस्था और माता की भूमिका’ पर कहा, ‘‘दुनियाभर के धर्मों में महिलाओं और माताओं का विशेष महत्व दिया गया है और वे परिवार एवं मानवता की केंद्र बिंदु हैं।’’
हिंदू धर्म से लेकर, ईसाई धर्म और इस्लाम में माताओं के महत्व को रेखांकित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे समाज में महिलाओं को न सिर्फ बराबरी का दर्जा मिला है बल्कि वे पुरुषों से भी श्रेष्ठ हैं क्योंकि वे मानवता की जननी हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘इस्लाम में पैगम्बर मोहम्मद का मशहूर कथन है – अल जन्नतो तहता अकदाम अलउमहात (जन्नत आपकी मां के कदमों के नीचे है)।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऋग वेद काल में मातृसत्तात्मक भूमिका का बड़ा महत्व था। ईसाई धर्म में मातृत्व को जीवन का एक उच्च एवं अहम क्षण बताया गया है।’’
नायडू ने संस्कृत के श्लोक ‘‘जननि जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरियसि’’ का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में माताओं का स्थान स्वर्ग से भी ऊपर है।
उन्होंने कहा कि साझा करना और देखभाल का विचार ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ (विश्व एक परिवार है) के दर्शन में निहित है और यह 5,000 साल पुरानी भारतीय सभ्यता के टिके रहने और फलने-फूलने के पीछे प्रमुख कारक है।
नायडू ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का विचार भारत की परिवार व्यवस्था के लिये मार्गदर्शक प्रकाश के समान रहा है।
उन्होंने कहा कि एक मजबूत परिवार व्यवस्था कई सामाजिक बुराइयों से उबरने का संभावित सबसे बेहतर समाधान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आज की आधुनिक चुनौतियों में संयुक्त परिवार की व्यवस्था टूट रही है, हालांकि अपनी संयुक्त परिवार व्यवस्था के सहयोगात्मक ढांचे में रहकर भारत ने अपनी वर्तमान स्थिति हासिल की है।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां बच्चे अपने बड़े-बुजुर्गों के मार्गदर्शन में नैतिकता का पाठ सीखते हैं।’’
उपराष्ट्रपति ने युवा पीढ़ी से अपने दादा-दादी, नाना-नानी के साथ समय बिताने का आह्वान किया।
उन्होंने कहा, ‘‘मोबाइल फोन और टेलीविजन के कारण दादा-दादी, नाना-नानी के साथ कम समय बिताने के गलत चलन को हटाने की जरूरत है।’’