उत्तर प्रदेश के चर्चित हाथरस कांड में राज्य सरकार लगातार विपक्ष के दवाब में है। पुरे देश में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं इस बीच योगी सरकार ने कड़े फैसले लिए। सबसे पहले ले तो हाथरस के पुलिस अधीक्षक, एक डीएसपी और संबंधित थाना प्रभारी को भी सस्पेंड कर दिया गया है। अब इस मामले में आरोपियों के साथ-साथ पीड़ित पक्ष का भी पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट कराया जाएगा। सरकार ने इस बात का फरमान एसआईटी की पहली रिपोर्ट मिलने के बाद किया है। ऐसा पहली बार होगा कि किसी मामले की जांच करने वाली पुलिस टीम का भी पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट कराया जाएगा। बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले में अधिकारियों से बेहद नाराज़ है।
तो क्या होता है नार्को टेस्ट , क्या इससे हो जाएगा दूध का दूध और पानी का पानी !
दरअसल पॉलिग्राफ, नार्को और ब्रैन मैपिंग टेस्ट झूठ पकड़ने की एक तकनीक होती हैं। आइए सबसे पहले समझते हैं कि पॉलिग्राफ टेस्ट क्या है। इस टेस्ट में संबंधित शख्स से सवाल जवाब किये जाते हैं यानी उससे प्रश्न पूछे जाते हैं। शुरू शुरू में आसान से प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे नाम क्या है, पिता का नाम क्या है, उम्र और परिवार से जुडी जानकारियां यानी कि वो सवाल जिसे बताने में शख्स सहज हो। इसके बाद मामले से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं। अचानक सवाल पूछे जाने से शरीर में कई तरह के बदलाव नज़र आने लगते हैं जैसे की धड़कन का बढ़ना बीपी का हाई होना आदि। उस दौरान ही एक विशेष मशीन की स्क्रीन पर कई ग्राफ बनते हैं। व्यक्ति के शरीर में हो रही गतिविधि जैसे की की सांस, हृदय गति और ब्लड प्रेशर में बदलाव के हिसाब से ग्राफ ऊपर-नीचे होता है। ग्राफ में अचानक असामान्य बदलाव दिखने लगे तो इसका मतलब है कि शख्स झूठ बोल रहा है।
इस दौरान शख्स को कुछ दवाइयां या इंजेक्शन दी जाती हैं। आम तौर पर ट्रूथ ड्रग नाम की एक साइकोऐक्टिव दवा का इस्तेमाल किया जाता है या फिर सोडियम पेंटोथोल का इंजेक्शन लगाया जाता है। इस दवा का असर ये होता है कि शख्स आधा बेहोश हो जाता है। अर्धबेहोशी की हालत में वह सवालों का सही-सही जवाब देता है क्योंकि वह अर्धबेहोशी की वजह से झूठ बोलना आसान नहीं होता।
पर क्या हर बार इस टेस्ट में रिजल्ट सही आते हैं तो ऐसा ज़रूरी नहीं है की पॉलिग्राफ, नार्को या ब्रेन मैपिंग टेस्ट के नतीजे बिलकुल सही आएं क्यूंकि कई बार कुछ बड़े अपराधी इस टेस्ट को भी चकमा दे जाते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों की माने तो अगर इन टेस्ट को ठीक तरीके से किया जाए तो सही नतीजे निकलते हैं। जानकारी के लिए बता दें कि भारत में मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इन जांचों को गैरकानूनी ठहरा दिया था। हालांकि, कोर्ट ने आपराधिक मामलों में इन जांचों को संबंधित व्यक्तियों की सहमति से करने की इजाजत दी है।
इस मामले में सरकार के सूत्रों के मुताबिक कई तरह के वीडियो भी सामने आए और तथ्य भी। इसलिए सभी सबूतों को लेकर साइंटिफिक जांच जरूरी है। यही कारण है कि सरकार ने आरोपियों, पीड़ित परिवार के सदस्यों के साथ साथ पुलिस जांच टीम के सभी कर्मियों का नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के आदेश दिए हैं।