नई दिल्ली: दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय स्कूली खेलों मे भाग लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या भले ही पिछले सालों की तुलना मे कम हो सकती है लेकिन कबड्डी के नाम एक ऐसा रिकार्ड बनता नज़र आ रहा है जिसने सारे रिकार्ड तोड़ डाले हैं। छत्रसाल स्टेडियम में चल रहे कबड्डी मुकाबलों के अंडर 19 ग्रुप में बालक और बालिका वर्ग में क्रमशः 29 और 27 टीमें भाग ले रही हैं जोकि एक रिकार्ड है। इतना ही नहीं यह खेल कुश्ती के मुक़ाबले ज़्यादा भीड़ खींच रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि कुश्ती पर कबड्डी भारी पड़ रही है। जहां एक ओर बाकी खेलों में आठ-दस या कुछ खेलों में 15 से बीस टीमें भाग ले रही हैं तो कबड्डी में पूरा देश मैदान पर उतर आया है।
दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, यूपी, एमपी, राजस्थान, महाराष्ट्र तमिलनाडु, वेस्ट बंगाल, छत्तीसगढ, बिहार, गुजरात और तमाम राज्यों के खिलाड़ी बढ़-चढ़ कर स्कूली खेलों में भाग ले रहे हैं। कबड्डी के प्रति ऐसा जुनून और रुझान पहले कभी देखने को नहीं मिला। पूछने पर हर कोई कहता है कि प्रो. कबड्डी ने इस खेल की दशा और दिशा को बदल दिया है। चार साल पहले तक कबड्डी देश के पहले बीस लोकप्रिय खेलों में भी शामिल नहीं था। कारण इस खेल को ओलंपिक मे शामिल नहीं किया गया है। हां, एशियाड के सात खिताब भारत के नाम दर्ज हैं। पिछले एशियाई खेलों में पुरुषों के साथ महिला टीम ने भी ख़िताबी जीत दर्ज की और देश में महिला कबड्डी के लिए माहौल बन गया।
स्कूली खिलाड़ियों को प्रो कबड्डी ने बेहद रोमांचित किया है। खासकर, कबड्डी की पेशेवर एप्रोच उन्हें रास आ रही है। कबड्डी लीग में उन्हें देश के ओलंपिक पदक विजेता पहलवानों से भी ज़्यादा कीमत पर खरीद जा रहा है। कई कोच और खिलाड़ी मानते हैं कि कबड्डी की लोकप्रियता कुश्ती से भी आगे बढ़ गई है। हालांकि ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगी। ना सिर्फ गांव-देहात में अपितु शहरों में भी कबड्डी सरकारी और पब्लिक स्कूलों में जगह बना चुकी है। महाराष्ट्र, दिल्ली, यूपी, कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब आदि प्रदेशों के बहुत से कबड्डी खिलाड़ी पहले पहलवान बनना चाहते थे लेकिन जल्दी ही उनका इरादा बदल गया और अब कबड्डी उनका पहला खेल बन गई है। प्रो कबड्डी के बढ़ते रुझान और धनवर्षा ने उन्हें ऐसा करने के लिए विवश किया है। खिलाड़ी और कोच चाहते हैं कि उनके खेल को अब ओलंपिक में जगह मिल जानी चाहिए।
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(राजेंद्र सजवान)