बिहार के राज्यपाल लालजी टंडन ने जैन साहित्य को सत्य, अहिंसा, करूणा का संदेश देने वाला बताया और कहा कि संपूर्ण जैन साहित्य तथा प्राकृत, पालि, संस्कृत आदि भाषाओं में संकलित जैन धर्म-दर्शन की महत्वपूर्ण ज्ञान-संपदा को संचित किया जाना बेहद जरूरी है।
श्री टंडन की अध्यक्षता में आज राजभवन सभाकक्ष में प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली की अधिष्ठात्री परिषद, की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि जैन साहित्य सत्य, अहिंसा, करूणा, प्रेम आदि का संदेश देने के साथ-साथ प्रकृति के साथ मनुष्य की अंतरंगता को महत्वपूर्ण मानते हुए पर्यावरण-संतुलन कायम रखने की प्रेरणा देता है। उन्होंने कहा कि ‘जैन दर्शन और साहित्य की पर्यावरण-चेतना’ विषय पर गंभीरता से शोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज पर्यावरण संतुलन पूरी दुनियां के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ है। ऐसे समय में भगवान महावीर एवं जैन साहित्य के संदेश मनुष्य में पर्यावरण-चेतना विकसित करने की दृष्टि से परम प्रेरणादायी सिद्ध होंगे।
राज्यपाल ने कहा कि जैन समाज एवं जैन साधक-संत वैशाली में भगवान महावीर की स्मृति में संचालित ‘प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान’ के सर्वतोन्मुखी विकास के लिए काफी बढ़-चढ़कर सहयोग कर सकते हैं। इस संस्थान का विकास केवल सरकारी सहयोग पर ही निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैन-समाज के समृद्ध तथा भगवान महावीर में अटूट आस्था रखनेवाले कई श्रद्धालु इस संस्थान के सुदृढ़करण हेतु अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उन्हें लगे कि यह संस्थान अपनी जीवंतता और सक्रियता से जैन साहित्य और उसके संदेशों को जन-जन तक पहुँचाने में अपनी तत्परता दिखा रहा है।
बैठक में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव आर.के.महाजन ने कहा कि संस्थान की घेराबंदी के लिए चारदीवारी निर्माण के लिए संस्थान को शीघ, ही राशि आवंटित कर दी जाएगी तथा संस्थान के पुस्तकालय के सुदृढ़करण के लिए भी शीघ, दस वातानुकूलित उपकरण लगवाने के लिए भी निधि आवंटित हो जाएगी। बैठक में यह निर्णय हुआ कि संस्थान एवं उसके निकटवर्ती क्षेत्र में पांच हजार वृक्षारोपण कराये जाएंगे तथा पौधों के संरक्षण आदि के लिए ‘मनरेगा’ आदि योजनाओं के तहत प्रयास किए जाएँगे।
इस बैठक में यह भी निर्णय हुआ कि संस्थान के पुस्तकालय की दुर्लभ पांडुलिपियों के संरक्षण हेतु विशेष व्यवस्था होगी तथा महत्वपूर्ण पुस्तकों के डिजीटलीकरण का काम पूरा कराया जाएगा। संस्थान की रिक्तियों को भरने के लिए बिहार लोक सेवा आयोग एवं बिहार कर्मचारी चयन आयोग को अधियाचना भेजे जाने का भी निर्णय लिया गया।
वहीं, राज्यपाल ने संस्थान में वर्तमान में अध्ययनरत विद्यार्थियों की संख्या मात्र चार होने पर भी आश्चर्य व्यक्त किया एवं कहा कि संस्थान में पढ़ये जानेवाले विषयों के प्रति छात्रों में अभिरूचि जगाना जरूरी है तथा पाठ्यक्रम को रोजगारोन्मुखी किया जाना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि स्नातकोत्तर, स्नातक एवं शोध-छात्रों में रूचि जगाकर संस्थान की शैक्षणिक गतिविधियों को विकसित किया जाना चाहिए।
इस मौके पर राज्यपाल के प्रधान सचिव विवेक कुमार सिंह, तिरहुत के प्रमंडलीय आयुक्त नर्मदेश्वर लाल, प्राकृत जैनशास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली के निदेशक-सह-सदस्य सचिव ऋषभचन्द, जैन आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।