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डूटा चुनाव : रिकॉर्ड मतदान, लेफ्ट-राइट में टक्कर

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के पदाधिकारियों के लिए गुरुवार सुबह से डीयू के नॉर्थ कैंपस में मतदान हुए। इस दौरान शिक्षकों की मतदान के प्रति उत्साह सुबह से ही बना रहा।

नई दिल्ली : दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) के पदाधिकारियों के लिए गुरुवार सुबह से डीयू के नॉर्थ कैंपस में मतदान हुए। इस दौरान शिक्षकों की मतदान के प्रति उत्साह सुबह से ही बना रहा। यही वजह है कि इस बार शाम तक रिकॉर्ड 82.36 फीसदी मतदान हुआ। यही नहीं गर्मी होने के बावजूद सुबह 10 से दोपहर 12.30 बजे तक शिक्षकों की लंबी कतार दिखाई दी। यही हाल शाम तक रहा शिक्षक वोट डालने के लिए आते रहे। 
इस दौरान वाम उम्मीदवार राजीव रे और एनडीटीएफ के उम्मीदवार एके भागी के समर्थक शिक्षकों को उनके पक्ष में वोट डालने की अपील करते रहे। वोटिंग के दौरान नॉर्थ कैंपस स्थित आर्ट्स फैकल्टी के बाहर सड़क के दोनों तरफ गाड़ियों की लंबी लाइन लग गई। 
जिसकी वजह से यातायात व्यवस्था में दिक्कतें आई। इस बार डूटा चुनाव में 9,630 शिक्षकों में से 7631 शिक्षकों ने मतदान किए। खबर लिखे जाने तक राजीव रे 1428, एके भागी 1287 और अमान्य 141 वोट मिले हैं। वाम दल के डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (डीटीएफ) उम्मीदवार राजीव रे 141 वोटों से आगे हैं।
क्यों हो गया वाम हावी…  डूटा चुनाव के शुरुआती दिनों में एनडीटीएफ के उम्मीदवार एके भागी काफी मजबूत प्रत्याशी के तौर पर उभरे थे। लेकिन चुनाव से ठीक एक दिन पहले डीटीएफ को एएडी ने अपना समर्थन दे दिया। वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स फोरम ने भी वाम शिक्षक संगठनों को अपना समर्थन दिया। वहीं दूसरी ओर नई शिक्षा के मामले में भी शिक्षकों का रोष सरकार के खिलाफ दिखाई दिया।
किन मुद्दों पर लड़ा गया चुनाव…
पूर्व एसी मेंबर हंसराज सुमन ने कहा कि हमारी तरफ से वामपंथ शिक्षक संगठनों को समर्थन दिया गया है। डीयू में कई शिक्षकों की पदोन्नति नहीं हुई है। साथ ही कई तदर्थ शिक्षक 15 सालों से पढ़ा रहे हैं लेकिन इन्हें अब तक स्थायी नहीं किया गया है। डीयू के कॉलेजों एवं विभागों में स्थायी शिक्षकों की नियुक्तियां नहीं हो रही हैं। इन मुद्दों पर चुनाव लड़ा गया है। 
वहीं, डीयू के अकादमिक परिषद के सदस्य एवं एनडीटीएफ के सदस्य डॉ रसाल सिंह ने कहा कि करीब दस सालों से डीयू में शिक्षकों की स्थायी नियुक्तियां नहीं हुई हैं। पांच हजार तदर्थ शिक्षक 15 सालों से ज्यादा समय से पढ़ा रहे हैं, लेकिन इन्हें स्थायी करने का फैसला नहीं लिया गया है। तीन हजार शिक्षकों को पदोन्नति नहीं दी गई है। कई सेवानिवृत शिक्षकों को पेंशन नहीं मिल रही है।

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