नई दिल्ली : फिल्मिस्तान इलाके की अनाज मंडी में रविवार की सुबह उजाला नहीं, बल्कि मौत का मातम साथ लेकर आई। पैकेजिंग फैक्ट्री में शॉर्ट सर्किट से आग लगने पर 43 लोग काल के ग्रास बन गए। इनमें से कुछ सोते-सोते मौत के मुंह में चले गए तो कुछ ने अस्पताल में दम तोड़ दिया। पुलिस, दमकल, एनडीआरएफ की टीम को रेस्क्यू ऑपरेशन में यदि सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा तो वह थीं संकरी गलियां।
इन गलियों में दमकल की बड़ी गाड़ियां नहीं पहुंच सकीं। माना जा रहा है कि यदि स्पॉट तक गाड़ियां पहुंच पाती तो हादसे में मरने वाले कम हो सकते थे। सदर बाजार इलाके में ही नहीं, बल्कि पुरानी दिल्ली के अनेक इलाके तंग गलियों से पटे हुए हैं। चांदनी चौक, दरियागंज, जामा मस्जिद, खारी बावली, नई सड़क, हौजकाजी, फतेहपुरी, अजमेरी गेट, तुर्कमान गेट, सुईवालान, बल्लीमारान व चितली कबर आदि इलाकों में चप्पे-चप्पे पर कटरे बसे हुए हैं। इनमें अधिकांश में नीचे बाजार की दुकानें हैं तो ऊपर रिहायश है।
अनेक मकान और कटरे ऐसे हैं, जो कि हादसे के मुहाने पर खड़े हुए हैं। अधिक तीव्रता का भूकंप हो या फिर मूसलाधार बारिश उन्हें कभी ढहाकर गिरा सकते हैं। ऐसे अनेक हादसे पूर्व में हो भी चुके हैं। ऊपर से पुरानी इमारतों में चोर-छिपे चलने वाली फैक्ट्री और कारखाने आग में घी का काम कर रहे हैं। अनाज मंडी हादसा भी अवैध रूप से चल रही फैक्ट्री और लापरवाही का सबसे बड़ा नमूना है। फैक्ट्री और कारखानों को रिहायशी इलाकों से दूर करने के पीछे भी यही मकसद रहता है कि उनके कारण कोई बड़ा हादसा न हो जाए, लेकिन गुपचुप तरीके से गोरखधंधा जारी रहता है।
पुरानी दिल्ली और सदर इलाके की इन गलियों में दमकल की गाड़ी तो दूर, बल्कि दोपहिया वाहन और रिक्शा बामुश्किल से पहुंच पाती है। मसलन इन रिहायशी इलाकों की पुरानी इमारतों में चल रहे रोजगार जान हथेली पर लेकर चलने से ज्यादा कुछ नहीं है। रविवार को हुआ हादसा बेशक अब इतिहास बन जाएगा, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या संबंधित एजेंसियां इसकी रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाएंगी क्योंकि हर बार बड़ी घटना या हादसा होने पर पूरी ताकत झोंकी जाती है और कुछ दिन बाद पुराने ढर्रे पर सभी लौट जाते हैं।