संविधान की धारा 35-ए में ऐसा क्या है जिसके कारण जब भी इस पर चर्चा छिड़ती है तो कश्मीर में बवाल हो जाता है। जब भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तिथि आती है, जम्मू-कश्मीर में बन्द का ऐलान कर दिया जाता है। अनुच्छेद 35-ए जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए हक का मुद्दा है तो अलगाववादियों के लिए एक हथियार बन चुका है। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की बात टल चुकी है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती कई बार धमकी दे चुकी हैं कि यदि कश्मीर में धारा 35-ए हटी तो जिस तिरंगे को हमारे आदमी उठाते हैं, उस तिरंगे को कश्मीर में कोई कंधा देने वाला नहीं होगा।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रैंस के संरक्षक फारूक अब्दुल्ला भी कह चुके हैं कि भारत को पूरी सेना मिलकर भी आतंकवादियों से हमारी रक्षा नहीं कर सकती। यह तो तब है जब हुर्रियत के बड़े नेता देश के खिलाफ लड़ने वालों को धन पहुंचाने के आरोप में जेल जा चुके हैं और एनआईए इस घिनौने अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र के काफी बड़े हिस्से का पर्दाफाश कर चुकी है। जिस 35-ए के हटने के भय से कश्मीरी नेता इतने बेचैन हुए जा रहे हैं उन्हें पता होना ही चाहिए कि कश्मीर की सारी समस्या की जड़ यही धारा है जिसे जवाहर लाल नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से अध्यादेश के माध्यम से संविधान संशोधन के रूप में लागू करवा दिया था।
इसी धारा ने कश्मीर को भारत रूपी समुद्र में एक स्वायत्तशासी टापू में बदल दिया जो भारत के संविधान से मुक्त रहकर भारत में चीनी, चावल, पेट्रोल और सीमेंट के मजे ले रहा है। इसी धारा की आड़ में कश्मीरी नेता दिल्ली आकर आलीशान बंगलों में रहते हैं। टैरर फंडिंग के चलते हुर्रियत के नागों ने स्कूली बच्चों के हाथों में पत्थर पकड़वा दिए। खुद बेशकीमती सम्पत्तियां खड़ी कर लीं जबकि भारत का आम नागरिक कश्मीर में दो गज जमीन भी नहीं खरीद सकता। सबसे पहले ‘वी द सिटीजन्स ऑफ इंडिया’ नामक संस्था की तरफ से इसे अदालत में चुनौती दी गई। फिर जम्मू-कश्मीर स्टडी सैंटर ने 35-ए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। याचिकाओं में मांग की गई कि अनुच्छेद 35-ए असंवैधानिक है अतः इसे रद्द किया जाए।
याचिकाओं में कहा गया है कि संविधान में जोड़े गए नए अनुच्छेद 35-ए के माध्यम से लगाई गई बाध्यताएं संविधान प्रदत्त अनुच्छेद 370 (1) डी के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों से बाहर हैं। इसे रद्द किया जाने का प्रावधान 1954 के राष्ट्रपति आदेश का एक भाग है और जम्मू-कश्मीर पर गम्भीर प्रतिघात है। याचिका में अनुच्छेद को भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हुए कहा गया है कि ‘‘भारत के संविधान का अनुच्छेद 35-ए संविधान के अनुच्छेद 14, 19 आैर 21 का विरोधाभास है, क्योंकि यह भारत के नागरिकों के एक वर्ग में से एक विशेष वर्ग के नागरिकों का निर्माण करता है। विशेष वर्ग के नागरिक की अवधारणा नागरिकता के कानून से अलग है। भारत के संविधान के संदर्भ में यह स्थापित है कि भारत के संविधान की भावना भारत के नागरिकों की एकात्मकता को बनाए रखने में है।
इसी कारणवश अनुच्छेद 35-ए अपने आपमें बहुत ज्यादा पक्षपातपूर्ण है और इसीलिए इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।’’ याचिका में यह भी कहा गया कि संविधान में संशोधन सिर्फ संसद के द्वारा अनुच्छेद 368 में प्राप्त शक्तियों के अधीन ही किया जा सकता है। अनुच्छेद 35-ए महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन है कि वह राज्य के अस्थायी नागरिक से अपनी पसन्द से विवाद नहीं कर सकती क्योंकि तब उनके बच्चों को सम्पत्ति का अधिकार नहीं मिलेगा। राज्य के बाहर के बच्चों को जम्मू-कश्मीर के कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिलता। अच्छे डॉक्टर राज्य में आ नहीं पाते। औद्योगिक और निजी सम्पत्ति खरीदने पर लगे प्रतिबंध के चलते राज्य विकास के मामले में पिछड़ चुका है।
वित्त मंत्री अरुण जेतली ने जम्मू-कश्मीर में गैर स्थायी निवासियों के सम्पत्ति खरीदने पर रोक लगाने वाले अनुच्छेद 35-ए को संवैधानिक रूप से दोषपूर्ण बताया है और कहा है कि यह राज्य के आर्थिक विकास को बाधित कर रहा है। अरुण जेतली का बयान भाजपा द्वारा राज्य के विधानसभा चुनाव इस पंडित नेहरू की एक बड़ी भूल करार दिया। मैं अरुण जेतली के विचारों से पूरी तरह सहमत हूं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अनुच्छेद 35-ए की वजह से राज्य की अधिक संसाधन जुटाने की क्षमता ही पंगु हो चुकी है। कोई भी निवेशक उद्योग, होटल, निजी शिक्षण संस्थान या निजी अस्पताल स्थापित करने को तैयार नहीं है।
अरुण जेतली ने सरकार का रुख भी स्पष्ट कर दिया है कि वह कश्मीर घाटी के लोगों और व्यापक हित में विधि का शासन जम्मू-कश्मीर पर भी समान रूप से लागू करने को प्रतिबद्ध है। धारा 35-ए को वहां के नेताओं ने कश्मीर की अस्मिता के लिए इसे अपना हक मानते हुए एक मुद्दा बना लिया है और कहा जा रहा है कि केन्द्र इस पर हमला करने की साजिश रच रहा है। मामला सुप्रीम कोर्ट में है। संविधान पीठ ही कोई फैसला दे सकती है या फिर संसद ही कोई कदम उठा सकती है।