आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धि का तेजी से विस्तार हो गया है और यह जीवन का अनिवार्य अंग बन चुकी है। शासन, प्रशासन और लोग इस कृत्रिम मेधा का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत डिजिटल समावेशन और कौशल को गति देने के लिए बड़े स्तर पर एआई के इस्तेमाल की ओर बढ़ रहा है। जीवन का हर पहलू बदलता जा रहा है। ज्ञान गुरु गूगल से खोज से लेकर, ड्रोन के जरिए दुर्गम क्षेत्रों में दवाओं को पहुंचाने, अपराधियों पर नजर रखने और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षेत्रों की निगरानी, सीमाओं की निगरानी और मोबाइल ऐप जैसी सुविधाएं एआई द्वारा ही संभव हाे रही हैं। कृत्रिम मेधा से ही सब्सडी कार्यक्रमों में धन की लूट और भ्रष्टाचार बंद हो सका है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अन्य कार्यक्रमों को आधार कार्ड से जोड़कर सारे छिद्र बंद किए जा चुके हैं। वैश्विक स्तर पर एआई को लेकर प्रतिस्पर्धा गला काट बन चुकी है। नई-नई इंटेिलजेंस कंपनियां लांच की जा चुकी हैं, कुछ आने को तैयार बैठी हैं।
ट्विटर के सीईओ एलन मस्क ने चैट जीपीटी के युग में नई कंपनी एक्सएआई नाम से शुरू की है। इस नई कंपनी के दस करोड़ शेयरों की बिक्री को अधिकृत किया गया है। मस्क चाहते हैं कि उनकी कंपनी चैट जीपीटी आैर माइक्रोसॉफ्ट समर्थत ओपन आई का मुकाबला कर सके। प्रतिस्पर्धा बढ़ने से इस क्षेत्र में निवेश की संभावनाएं काफी बढ़ जाएंगी। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिक्षा विभाग की एक महत्वपूर्ण बैठक में थे, जहां आईआईटी कानपुर के निदेशक डा. अभय करंदीकर ने एआई द्वारा विभिन्न परीक्षाओं में बैठने वाले विद्यार्थियों के संबंध में बताया कि िकस प्रकार भारतीय भाषाओं में नीट या जेईई की परीक्षाओं में बहुत कम छात्र बैठ रहे हैं। यदि अंग्रेजी में परीक्षा देने वाले 80-90 प्रतिशत होते हैं, तो हिन्दी में 10-14 प्रतिशत और शेष 12 भारतीय भाषाओं में मात्र तीन प्रतिशत। यदि अंग्रेजी और हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलुगू भाषाआें में भी विद्यार्थियों को उच्च ज्ञान संपन्न क्षेत्रों में आने की सुविधा मिल जाए, तो एक शिक्षा क्रांति की शुरुआत हो सकती है। स्वतंत्रता से लेकर अभी तक ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अंग्रेजी का ताला बड़ी संख्या में भारतीय भाषा जानने वाले प्रतिभाशाली युवाओं की प्रगति के मार्ग में बाधा बना हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत इस विचार को पकड़ा और आईआईटी कानपुर को इस कार्य में आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने पूरी उथल-पुथल मचा दी है। काम इतना मुकम्मल होता है कि पलभर में भाषायी अनुवाद हो जाता है। मन मुताबिक संगीत की रचना हो जाती है। मन मुताबिक टेक्स्ट लिख डाला जाता है और भी कई रचनात्मक कार्य आसानी से हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में युद्ध आर्टिफिशियल एजेंसी के माध्यम से ही लड़े जाएंगे। दूसरे देशों की जासूसी करने, युद्ध के दौरान कम्प्यूटर आधारित व्यवस्था को ठप्प करने और घातक हथियारों के इस्तेमाल में भी इंटेलिजेंस का ही उपयोग किया जाएगा। विज्ञान के हमेशा ही दो पहलू रहे हैं। एक अच्छा और दूसरा बुरा।
इसने भी वैसी ही चिंताएं पैदा कर दी हैं। आज के दौर में शासन-प्रशासन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग बहुत जरूरी है लेकिन इसके भीतर डाटा और पंत्रीकृत की क्षमता तो बहुत है लेकिन इसने मानव के दिमाग को नियंत्रित करना शुरू कर दिया है। सीबीएसई ने तो आठवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में एआई को शामिल कर लिया है और देशभर के लाखों युवा एआई क्षेत्र का ज्ञान ले रहे हैं। समस्या यह आ पड़ी है कि मोबाइल, लैपटॉप बच्चों की उंगलियों पर हैं। वह मामूली से मामूली प्लस माइनस और मल्टीप्लाई जैसी चीजें भी मोबाइल के माध्यम से हल कर रहे हैं। बच्चे इलैक्ट्रोनिक्स गैजेट्स के गुलाम बनते नजर आ रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह चीजें बच्चों के दिमाग पर पूरी तरह से कब्जा कर सकती हैं। इससे उनकी संभावित बुद्धिमता प्रभावित हो जाएगी और वह खुद ज्यादा काम करने के योग्य नहीं रह जाएंगे। इससे भविष्य में उनका जीवन प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएगा। शोधकर्ताओं के मुताबिक क्वांटम एआई सिस्टम इंसानी दिमाग की ओर ज्यादा स्टीकता से नक्ल कर सकता है। पर ऐसी परिस्थितियों में बच्चों का खुद का दिमाग काम करने के काबिल नहीं रह पाएगा। हमें यह देखना होगा कि एआई का इस्तेमाल विशिष्ट क्षेत्रों में किया जाए जिसका लाभ देश को मिले। इसमें कोई संदेह नहीं कि नए-नए अविष्कार मानव जाति को बदल रहे हैं। इनसे बचना संभव नहीं है लेकिन बच्चों और युवाओं की स्वाभाविक बुद्धि को बचाए रखने के लिए हमें तकनीक पर नियंत्रण करना सीखना होगा। अभिभावकों को चाहिए कि युवा होने तक बच्चों में स्वाभाविक मेधा का विकास हो अन्यथा वे एक रोबोट की तरह ही काम करने लगेंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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