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दिल्ली में लग सकता है राष्ट्रपति शासन?

‘अंधेरों के कारोबार के राज़दार नहीं बनना है मुझे
मैं तो एक चिराग हूं आखिरी लौ तक जलना है मुझे’

जिनके सियासी मंसूबों से कभी दिल्ली दूर होती चली गई, वे अब राजधानी के सियासी गर्दों-गुबार में अपनी बुझी महत्वाकांक्षाओं के ऊपर जमी धूल झाड़ने में लगे हैं। दिल्ली के मौजूदा हालात सियासी पेचोंखम की नई दास्तां को जुबां दे रहे हैं वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ईडी की हिरासत में बेबस हैं। आप में बेचैनी है, सुगबुगाहट है, नए सिरमौर के शिनाख्त की जद्दोजहद है, पर केजरीवाल की जगह कौन हो नया चेहरा? फिलवक्त इस पर कयासें भी ठिठक कर खड़ी हैं। दिल्ली ने अलग-अलग सल्तनतों के कई दौर देखे हैं, बलवा देखा है, रण देखा है और गद्दी के लिए संघर्ष भीषण देखा है, पर यह सब देखने वाली जनता अभी मौन है।
शायद उनके मौन को माकूल वक्त और सही मौके का इंतजार है। जैसा कि पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर यह कहा गया कि ‘ईडी की हिरासत में रहते हुए केजरीवाल अगर कोई आदेश जारी करते हैं तो यह उनकी संविधान के लिए ली गई शपथ का उल्लंघन होगा।’ इसके साथ ही एक याचिका और भी दायर की गई थी जिसमें केजरीवाल को दिल्ली सीएम पद से हटाने की मांग की गई थी, इस पर हाईकोर्ट ने यह कहते हुए दोनों याचिकाएं खारिज कर दीं कि ‘यह कार्यपालिका का मामला है कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता। यह एक राजनीतिक मामला है जो न्यायपालिका के दायरे में नहीं आता इस पर एलजी और राष्ट्रपति को विचार करना है।’ वहीं दिल्ली के उपराज्यपाल खम्म ठोक कर कह रहे हैं कि ‘केजरीवाल जेल से सरकार नहीं चला सकते।’
केंद्र सरकार से जुड़े विश्वस्त सूत्र खुलासा करते हैं कि आने वाले कुछ दिनों में दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। यही सूत्र बताते हैं कि दिल्ली में 6 महीने राष्ट्रपति शासन लगाने के बाद केंद्र सरकार तय करेगी कि दिल्ली अपने मौजूदा स्वरूप में रहे या वापिस इसे अपने पुराने स्वरूप यानी एक केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर इसके राज्य का दर्जा खत्म कर दिया जाए।
राघव तेरा ध्यान किधर है ?
सूत्रों की मानें तो अरविंद केजरीवाल के ‘ब्लू आईड ब्यॉय’ राघव चड्ढा ने अपने ‘मेंटर’ आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को यह संदेशा भिजवा दिया है कि अपने स्वास्थगत कारणों से वे 4 महीने तक भारत में नहीं आ सकते। ईडी की नज़रें इनायत ताजा-ताज़ा कैलाश गहलाेत की ओर हो गई हैं और सूत्रों का दावा है कि इस लिस्ट में राघव चड्ढा का नंबर भी जल्द ही आने वाला था।
सूत्र यह भी बताते हैं कि अपनी पत्नी की बड़ी बहन प्रियंका चोपड़ा के माध्यम से राघव ने भाजपा में अपनी पैठ बना ली है। सो, आने वाले दिनों में अगर उनकी ​िनष्ठाओं और इरादों पर भगवा रंग का मुलम्मा चढ़ जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पिछले दिनों राघव ने लंदन में रहते हुए ब्रिटेन की पहली सिख महिला सांसद प्रीत कौर गिल से एक सारगर्भित मुलाकात की। सनद रहे कि यह प्रीत कौर गिल वही हैं जो अपनी खालिस्तान समर्थक छवि और भारत विरोधी भावनाओं के लिए जानी जाती हैं। हालांकि राघव और गिल की मुलाकात का सोशल मीडिया पर जोरदार विरोध भी देखने को मिला। खास कर भाजपा समर्थकों ने इस बात के लिए राघव चड्ढा को पानी पी-पीकर कोसा। अब सवाल उठता है कि आखिर राघव इतना रंग क्यूं बदल रहे हैं? सूत्र बताते हैं कि राघव की पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से कई मुद्दों पर घोर असहमति है। सूत्रों की मानें तो मान राघव को पंजाब से राज्यसभा नहीं देना चाहते थे, वह तो उन्हें केजरीवाल की जिद के आगे झुकना पड़ा। भाजपा की रणनीति पंजाब के 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपने को मजबूत करने की है।
पिछले दिनों लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। आप के जालंधर से सांसद सुशील कुमार रिंकू भी भाजपा में आ गए हैं। कैप्टन अमरिंदर की पत्नी परणीत कौर ने पहले से ही भाजपा का दामन थाम लिया है। ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि राघव चड्ढा जैसे युवा और लोकप्रिय चेहरा पंजाब के कितने काम आ सकता है।
अभिषेक मनु से केजरीवाल की नजदीकी
केजरीवाल पर ईडी के ताज़ा केस में जिस तरह विभिन्न अदालतों में सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने जो दलीलें पेश की हैं उसकी कानूनी जगत में सर्वत्र तारीफ हो रही है। अभिषेक मनु से केजरीवाल की जान-पहचान भी काफी पुरानी है। यही वजह है केजरीवाल काफी पहले से अभिषेक मनु सिंघवी को आप की ओर से राज्यसभा में भेजना चाहते थे। पिछली बार उन्होंने दिल्ली से राज्यसभा के लिए सिंघवी का नाम तय भी लगभग कर दिया था। पर जेल में बंद संजय सिंह की पत्नी अनीता सिंह ने केजरीवाल से मिल उनसे अनुनय कर अपने पति के लिए दोबारा से राज्यसभा की सीट हासिल कर ली। कहते हैं कि इसके बाद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से पूछा कि ‘क्या सिंघवी को वहां से राज्यसभा में भेजा जा सकता है।’ तो मान ने सियासी चतुराई दिखाते हुए कहा कि ‘एक को छोड़ कर उनके बाकी सभी राज्यसभा सांसद पंजाब के लोकल ही हैं। अगर वे किसी बाहरी की जगह बाहरी को भेजना चाहें तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।’ केजरीवाल समझ चुके थे कि मान का इशारा राघव चड्ढा की ओर है जिनसे उनकी पटरी नहीं खाती।
क्यों नहीं हो पाया भाजपा-अकाली गठबंधन?
एक वक्त ऐसा लग रहा था भाजपा का पुराना साथी ​िशरोमणि अकाली दल लौट कर एनडीए गठबंधन के पाले में आ जाएगा। पर कुछ मुद्दों पर भाजपा और अकाली दल के दरम्यान सहमति नहीं बनी। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि अकाली दल ने अपनी ओर से ऐसी 3 प्रमुख शर्तें रख दीं जो भाजपा को मान्य नहीं थीं। कहते हैं अकाली दल की पहली शर्त थी कि खालिस्तान समर्थक ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन के कट्टरवादी नेता अमृतपाल सिंह को रिहा किया जाए। शर्त नंबर दो, जेलों में बंद कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थकों को रिहा करना और शर्त नंबर तीन, विदेशों में रह रहे खालिस्तान समर्थक भारतीय नेताओं को जिन्हें भारत ने फिलवक्त ‘ब्लैक लिस्ट’ किया हुआ है उन्हें भारत आने की परमिशन देना। इनमें से कोई भी शर्त भाजपा को मान्य नहीं थी जिससे कि दोनों दलों के बीच बातचीत का सिलसिला टूट गया।
..और अंत में
कांग्रेस को अपनी किंकत्तर्व्यविमूढ़ता की कीमत चुकानी पड़ रही है। निर्णय लेने में देरी की वजह से गठबंधन की कई अहम सीटें उसके हाथ से फिसलती जा रही हैं। बिहार में पप्पू यादव ने अपनी ‘जन अधिकार पार्टी’ का विलय कांग्रेस में कर पार्टी की ओर से पूर्णिया लोकसभा से अपनी उम्मीदवारी पेश की तो कांग्रेस के गठबंधन साथी राजद ने जदयू से आई बीमा भारती को वहां से मैदान में उतार दिया। मुंबई उत्तर पश्चिम से उद्धव ठाकरे ने आनन-फानन में अमोल कीर्तिकर को टिकट दे दिया, जबकि इस सीट पर कांग्रेस का दावा था जिससे यहां से वह संजय निरूपम को उतारना चाहती थीं बाद में निरूपम ने अमोल पर निशाना साधते हुए उन्हें ‘खिचड़ी चोर’ तक कह डाला।

– त्रिदीब रमण

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