चीनी रक्षा मंत्री और भारत - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

चीनी रक्षा मंत्री और भारत

भारत और चीन के और सम्बन्धों में पिछले लगभग तीन वर्षों में जिस प्रकार की कसीदगी लद्दाख की गलवान घाटी में हुए सैनिक संघर्ष के बाद आयी है उसमें सुधार की सभी कोशिशें वे रंग नहीं ला पाई हैं जिनकी अपेक्षा आम भारतीय करते हैं।

भारत और चीन के और  सम्बन्धों में पिछले लगभग तीन वर्षों में जिस प्रकार की कसीदगी लद्दाख की गलवान घाटी में हुए सैनिक संघर्ष के बाद आयी है उसमें सुधार की सभी कोशिशें वे रंग नहीं ला पाई हैं जिनकी अपेक्षा आम भारतीय करते हैं। इसकी असली वजह यह है कि चीन अगर लद्दाख में एक कदम पीछे हटने का उपक्रम करता है तो अरुणाचल प्रदेश में कई कदम आगे बढ़ने की सीनाजोरी कर देता है और समुद्री सीमाओं के भीतर भी अपनी सैनिक क्षमता का रुआब झाड़ने लगता है। चीन के इस रुख को लेकर भारत के लोगों के बीच 1962 के बाद से ही जो संशयपूर्ण वातावरण बना हुआ है उसके तापमान में कभी ऊंच-नीच जरूर होती रहती है परन्तु कुल मौसम वैसा ही नासाजगार बना हुआ है परन्तु भारत इस वर्ष जहां जी-20 देशों की मेजबानी कर रहा है वहीं इसे शंघाई सहयोग संगठन देशों के सम्मेलन के आयोजन की भी जिम्मेदारी दी गई है जिसके चलते आगामी 27 व 28 अप्रैल को संगऑन देशों के रक्षा मन्त्रियों की बैठक भी भारत में ही होगी। इस संगठन के सदस्य देश रूस, चीन के अलावा तजाकिस्तान, किर्गिस्तान, कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान व पाकिस्तान भी हैं। 
अभी रक्षा मन्त्रियों के इस सम्मेलन में रूस व चीन के रक्षा मन्त्रियों क्रमशः सर्जेई शोइगूव ली- शएंगफू ने अपनी स्वीकृति प्रदान की है। जबकि पाकिस्तान के रक्षा मन्त्री ख्वाजा आसिफ को भी निमन्त्रण भेजा है मगर अभी तक इस्लामाबाद ने उनकी यात्रा की घोषणा नहीं की है जबकि शेष चार मध्य एशियाई देशों के रक्षा मन्त्रियों के आने की संभावना भी है। जाहिर है कि भारत की ओर से रक्षा मन्त्री श्री राजनाथ सिंह इन सभी देशों के रक्षा मन्त्रियों से बातचीत करेंगे और इस पूरे क्षेत्र की सामरिक सुरक्षा व आतंकवाद के खतरों के बारे में सलाह-मशविरा करने के साथ अफगानिस्तान को लेकर उठने वाली सुरक्षा समस्याओं पर भी बातचीत करेंगे। मगर भारत के सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि चीन व पाकिस्तान का गठजोड़ इस क्षेत्र को अपने दबदबे में रखने के प्रयासों में इस तरह सफल न हो जिससे भारत व अन्य देश स्वयं को ठगा हुआ महसूस करें। 
मध्य एशिया के जो चार देश हैं वे 1990 तक सोवियत संघ का ही हिस्सा रहे हैं अतः रूस की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस क्षेत्र में शान्ति व सुरक्षा का माहौल बनाये रखने के साथ ही आपसी  आर्थिक सहयोग के क्षेत्र में बराबरी की हिस्सेदारी के सिद्धान्त को लागू करने पर बल दे। इसके साथ ही एेसे संगठनों की उपयोगिता यह भी होती है कि जब सभी देश एक साथ एक मेज पर बैठते हैं तो वे विवाद के मुद्दों का भी निस्तारण विचार-विमर्श से कर सकते हैं। इस मामले में भारत-चीन के बीच जून 2020 के गलवान घाटी संघर्ष के बाद जो सीमा विवाद पैदा हुआ है उस पर भी दोनों देशों के रक्षा मन्त्रियों के बीच सकारात्मक बातचीत हो। शंघाई संगठन की मार्फत दोनों देशों के रक्षा मन्त्रियों के हाथ में यह असर है कि वे इस मसले को उच्च स्तर पर सुलझाने की नीयत के साथ दिशा-निर्देश देने का काम करें। भारत को अपने रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह की सूझबूझ पर पूरा भरोसा है और सभी देशवासी जानते हैं कि श्री सिंह भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर कभी भी समझौता नहीं करेंगे। लद्दाख में कई स्थानों पर चीन को पीछे हटने के लिए उन्हीं की रणनीति ने मजबूर भी किया था हालांकि अभी तक यह विश्वास से नहीं कहा जा सकता कि चीन लद्दाख में अप्रैल-मई 2020 वाली स्थिति में पहुंच गया है। उसने अरुणाचल के सीमावर्ती क्षेत्र में इसके बाद काफी उलट-फेर करने की कोशिश की है। भारत के कई कूटनीतिक विशेषज्ञों ने 2003 में ही तत्कालीन वाजपेयी सरकार को चेतावनी दी थी कि वह तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार करके भूल कर सकते हैं। मगर इसके बदले में तब चीन ने सिक्किम को भारत का अंग स्वीकार कर लिया था और इसके कुछ महीने बाद ही चीन का राजनैतिक नक्शा जारी करके इसमें अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बता दिया था। जब यह सब हुआ था तो नई दिल्ली में वाजपेयी सरकार ही थी और उस समय विपक्ष ने संसद में वाजपेयी सरकार को बुरी तरह घेर भी लिया था। तब सरकार ने चीन से इसका कड़ा विरोध करके अपनी जान छुड़ाई थी। मगर इसके बाद केन्द्र में मनमोहन सरकार आने के बाद भी चीन का अरुणाचल पर दावा जारी रहा और बीजिंग से कोई न कोई एेसा विवाद खड़ा किया जाता रहा जिससे भारत की अखंडता को चुनौती देने की ध्वनि आती रही। 
पिछले वर्ष दिसम्बर में ही चीन ने अरुणाचल के तवांग इलाके में अतिक्रमण की हरकत की थी। अतः शंघाई सम्मेलन के मंच पर इस बात की कोशिश होनी चाहिए कि चीन अपनी तरफ से  ऐसी हरकतें न करें जिन्हें भारत नाजायज मानता हो क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमा पर शान्ति, स्थिरता व सौहार्द बनाये रखने का समझौता 1993 में ही हो चुका है। इसके बाद सीमा विवाद का स्थायी हल ढूंढने के लिए 2005 में उच्चस्तरीय वार्ता तन्त्र स्थापित हो चुका है जिसकी बैठकें चलती रहती हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

17 − 3 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।