अमेरिका के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह जिसका भी दोस्त हो उसे दुश्मन की जरूरत नहीं पड़ती। दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति होने का दावा करने वाला अमेरिका हमेशा अपने हितों को प्राथमिकता देता है और वक्त आने पर वह मित्र देशों की पीठ में छुरा घोंपने से भी परहेज नहीं करता। खुद को विश्व शांति मसीहा बताने वाले अमेरिका ने शांति का राग अलाप-अलाप कर हमेशा विध्वंस का खेल खेला है। उसने अफगानिस्तान, ईराक, लीबिया और कई देशों में जो विध्वंस किया उसके बाद आज तक इन देशों में अशांति ही रही है। अमेरिका यूरोपीय देशों को अपना मित्र करार देता है। लेकिन उसने यूरोप की ही सांसें बंद करने की कोशिश की। यूरोप के अधिकतर देश रूस से नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन के जरिये आने वाली गैस पर निर्भर हैं। इसी गैस से यूरोपीय देश चलाएमान रहते हैं। लेकिन अमेरिका ने यूरोपीय देशों को ठप करने की साजिश रची। अमेरिकी पत्रकार सीमोर हर्ष की सनसनीखेज रिपोर्ट ने पूरी दुनिया में हंगामा खड़ा कर दिया है। जिसमें कहा गया है कि बाल्टिक सागर में नॉर्ड स्ट्रीम अंडरवाटर गैस पाइपलाइन को 26 सितम्बर 2022 में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के इशारे पर गुप्त तरीके से उड़ाया गया था। पाइपलाइनों पर हुई बमबारी एक गुप्त ऑपरेशन के तहत नारवे से सीआईए की ओर से की गई थी। तब गहरे समुद्र में अमेरिकी गोताखोरों ने उन पाइपलाइनों के आसपास बारूदी सुरंग बिछाकर धमाका किया था। हालांकि उस समय रूस पर आरोप लगाया गया था कि यह धमाके उसी का किया कराया है। सीमोर हर्ष की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट से रूस के तेवर तीखे हो गए हैं और उसने इस रिपोर्ट की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जांच कराने की मांग करते हुए अमेरिका के इस तरह के आतंकी कृत्य से प्रभावित देशों को मुआवजा दिए जाने की आवाज बुलंद की है। यद्यपि अमेरिका गैस पाइपलाइनों को नुकसान पहंुचाने की रिपोर्ट को झूठा करार दे रहा है लेकिन रिपोर्ट के तथ्य सीधा इशारा उसकी तरफ ही कर रहे हैं।
रिपोर्ट सामने आने के बाद अमेरिका और रूस में तनाव बढ़ गया है। इस तनाव का रूस-यूक्रेन युद्ध पर कितना असर पड़ेगा यह भविष्य ही बताएगा। जहां तक सीमोर हर्ष की पत्रकारिता का सवाल है वो पहले भी अपनी रिपोर्ट से दुनिया में खलबली मचा चुके हैं। 1969 में वियतनाम में अमेरिकी नरसंहार का मामला हो या ईराक की अबुग्रेव जेल में कैदियों पर अमानवीय अत्याचारों की दास्तान हो। सीमोर हर्ष हमेशा सही साबित हुए हैं। अब सवाल यह है कि अमेरिका ने गैस पाइपलाइन को तबाह करने की कोशिश क्यों की। नॉर्ड स्ट्रीम-1 का काम 2011 में पूरा हुआ था जो लेनिन ग्राद (रूस) में वायबोर्ग से जर्मनी के लुबमिन तक पहुंचती है। इस पाइपलाइन के जरिये जर्मनी और अन्य देशों को सस्ती गैस मिलती है। यूरोपीय देशों में घरेलू गैस उत्पादन में कमी के कारण वे गैस आयात पर निर्भर हैं और उनके लिए निर्भरता कम करना बहुत मुश्किल है। इसलिए वे गैस आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर हैं। इसी तरह नॉर्ड स्ट्रीम-1 के समानांतर बिछाई गई नॉर्ड स्ट्रीम-2 तैयार की गई। लेकिन अभी इससे गैस आपूर्ति शुरू नहीं हुई है। अमेरिका किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि यूरोप गैस सप्लाई के लिए रूस पर निर्भर हो। इसलिए उसने इस बात का ढिंढोरा पीटा कि यह पाइपलाइन नाटो देशों के लिए खतरा है और इससे जलवायु को काफी खतरा है। जबकि असली कारण यह है कि रूस द्वारा जर्मनी और नाटो देशों में गैस की आपूर्ति शुरू होने से अमेरिका को अपना बड़ा बाजार खोने का डर सताने लगा था। अमेरिका यूरोप में तेल की बिक्री बढ़ाना चाहता है। अमेरिका की शह पर ही बिना मंजूरी नॉर्ड स्ट्रीम-2 के निर्माण पर रूसी कंपनी गज प्रेम पर मोटा जुर्माना लगाकर राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया था। नाटो देश जर्मनी पर इस बात के लिए दबाव डाल रहे थे कि वह पाइपलाइन योजना से अलग हो जाए। अमेरिका ने एक के बाद एक रूस पर प्रतिबंध लगाए लेकिन रूस ने कोई परवाह नहीं की। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते इस बात की आशंकाएं पैदा हो गईं थी कि अगर रूस ने गैस सप्लाई लाइन बंद कर दी तो यूरोप के देशों में हाहाकार मच जाएगा।
जर्मनी ने अमेरिका को साफ कर दिया था कि पाइपलाइन का मुद्दा विशुद्ध रूप से आर्थिक है। रूस भी अपने कुल बजट का लगभग 40 फीसदी हिस्सा तेल और गैस की बिक्री से प्राप्त करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले भी अमेरिका इस पाइपलाइन को लेकर रूस को धमकाता रहा है। अमेरिका ने अपने फायदे के लिए पाइपलाइन को उड़ाकर मित्र देशाें के लिए संकट पैदा करने की कोशिश की। अमेरिका की पोल खुल चुकी है। पाइपलाइन शक्ति संघर्ष का प्रतीक बन गई है। फिलहाल रूस और अमेरिका तनाव चरम पर पहुंच गया है और रूस इस पर क्या कदम उठाता है यह देखना बाकी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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