यह बात सच है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में धर्म के नाम पर जितनी सियासत चलती है उतनी कहीं और नहीं। अगर कोई पार्टी सत्ता में है, तो वह सत्ता बरकरार रखने के लिए धर्म के नाम पर चलती है और दूसरी पार्टी सत्ता से बेदखल होने के बाद मजहब का सहारा लेती है। धर्म को सामने रखकर चुनावी एजेंडा तैयार किया जाता है और फिर इसे वोटतंत्र के तराजू पर परखा जाता है। आप हिन्दुत्व कहें या फिर धर्मनिरपेक्षता मकसद सबका अपने-अपने सामने है। इन सबका जिक्र इसलिए किया जा रहा है कि हमारे यहां आजकल कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी अब एक हिन्दुवादी चेहरा लेकर सबके सामने उभर रहे हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी ने हिन्दू धर्म को लेकर वो सब कुछ किया जो देश में आम लोग धर्म के मामले में करते हैं। जनेऊ धारण से लेकर शिवभक्त होना और फिर हर मंदिर, हर गुरुद्वारा या फिर चर्च या मस्जिद जहां मौका मिले वहां राहुल गांधी जा रहे हैं। इससे उनकी छवि बदलती नजर आ रही है। हमें तो यही लगता है कि लोकतंत्र में अपनी बदली हुई छवि से वह बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं।
जब धर्म की बात आती है या अध्यात्म की बात आती है तो देश में जिस भारतीय जनता पार्टी को कल तक साम्प्रदायिक पार्टी कहा जाता था उसी ने अपने इस धर्म को अलग ढंग से परिभाषित करते हुए राष्ट्रीयता अर्थात हिन्दुत्व से जोड़ दिया था। आज राहुल गांधी अगर इसी हिन्दुत्व का कार्ड एडॉप्ट कर आगे चल रहे हैं तो यह सब आरएसएस की ही देन है, क्योंकि राहुल और उनकी पार्टी पर धर्मनिरपेक्षता को लेकर बड़े आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में अब राहुल जब अचानक हिन्दुत्व की तरफ और धर्म के मामले में पूजा-पाठ करने लगे हैं तो हम समझते हैं कि यह उनका निजी नजरिया हो सकता है। इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। बहरहाल सोशल मीडिया पर लोग राहुल के हिन्दूवादी स्वरूप को लेकर चर्चाएं बहुत करने लगे हैं।
राहुल जिस हिन्दुत्व की खेलपट्टी पर बैटिंग कर रहे हैं इसके लिए उन्हें भाजपा का विशेष कर आरएसएस का शुक्रिया अदा करना चाहिए। आने वाले दिन हिन्दुत्व को लेकर कांग्रेसी नजरिए और भाजपा के एजेंडे के बीच भी एक नई जंग देखने को मिल सकती है। इस मामले में राम मंदिर का जिक्र भी कर लें तो अच्छा है। इसी राम मंदिर को लेकर आरएसएस ने भाजपा को बहुत कुछ दिया है और भाजपा को भी अहसास होना चाहिए कि उसने बहुत कुछ पाया है, लिहाजा अब यह उसकी नैतिक ही नहीं बल्कि राजनीतिक जिम्मेवारी भी बन गई है कि मंदिर निर्माण हो जाना चाहिए। रह-रहकर कांग्रेस की ओर से और अन्य विपक्षी दलों की ओर से मंदिर को लेकर बयानबाजियां राजनीतिक रूप से सामने आ रही हैं लेकिन यह भी सच है कि कांग्रेस अब हिन्दुत्व को अपने एजेंडे में शामिल कर रही है। अब हिन्दुत्व राष्ट्रीयता है या राजनीतिक सोच लेकिन यह सच है कि खुद राहुल गांधी ने इस मामले में पिछले दिनों साफ कहा है कि मैं हिन्दू धर्म को समझता हूं और सब राष्ट्रीयता निभा रहे हैं तो हम भी अपना राष्ट्र धर्म निभा रहे हैं, इसलिए इसमें किसी को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। लोग सोशल साइट्स पर यह भी कह रहे हैं कि इस बार के चार राज्यों के चुनावों के अलावा 2019 के आम चुनावों में मुस्लिम साम्प्रदायिकता और हिन्दुत्व के बीच एक जंग देखने को मिलेगी, जिसका जवाब वक्त देगा।
यह भी स्पष्ट हो गया है कि अब कांग्रेस की रणनीति हिन्दुत्व के मामले पर भाजपा को घेरने के लिए ही बनी है। इसीलिए राहुल गांधी पिछले दिनों जब महाकालेश्वर गए तो उन्होंने वहां बाकायदा नियमों के तहत पूजा-पाठ किया। सोशल साइट्स पर लोग अपनी राय खुलेआम शेयर करते हुए कह रहे हैं कि इस सारे मामले पर विशेष रूप से राहुल गांधी के हिन्दूवादी चेहरे को लेकर भाजपा को जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करनी चाहिए। इसे लेकर चैनलों पर राजनीतिक पंडितों में बहस हम भी देख और सुन रहे हैं परंतु यह तो नजर ही आ रहा है कि राहुल गांधी को अब इसी हिन्दुत्व के चेहरे से फुटेज तो जमकर मिल रही है। एक नेता को राष्ट्रीयता स्तर पर जब अखबारों और चैनलों में प्रमुखता से कवरेज मिलने लगे तो इसका अर्थ समझ लेना चाहिए। आपका नाम बढ़ता है, वह सकारात्मक हो या नकारात्मक हो। कहने वाले तो कहते हैं कि प्रधानमंत्री रहीं श्रीमती इंदिरा गांधी अपनी बात प्रखर रूप से इसलिए रखती थीं कि उन्हें नाम कमाने की भूख रहती थी।
जब वह 1977 के बाद लोकसभा चुनावों में सत्ता से बेदखल कर दी गईं तो उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए शाह आयोग बैठा दिया गया तो उन्होंने पत्रकारों के सामने यही कहा था कि अगर मैंने कोई घपला किया है तो मुझे गिरफ्तार करो लेकिन देश का रुपया ऐसे आयोगों के गठन पर खर्च न करो। उनके इस बयान को अखबारों ने प्रमुखता से छापा। वह गिरफ्तार हुईं और इससे उन्होंने और भी सुर्खियां बटोरी। बड़े नेता के जेल जाने से अच्छा खासा नाम होता है। इंदिरा गांधी पहले से ही एक बड़ा नाम थीं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा तथा बुद्धिजीवी लोग इसे इंदिरा गांधी पर लागू करते थे। आज की तारीख में कोई कुछ भी कहे राहुल अपने आप में एक ब्रांड बन चुके हैं और इसके पीछे उनका वही हिन्दुत्व का कार्ड है जो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने बड़ी चतुराई से आरएसएस से ही एडॉप्ट किया है। इसका जवाब आने वाला वक्त देगा।