ममता दी की अपनी अलग चाल - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

ममता दी की अपनी अलग चाल

प. बंगाल की सभी 42 लोकसभा सीटों पर तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता दीदी द्वारा अपनी पार्टी के प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद विपक्षी गठबन्धन इंडिया की हालत ऐसी ‘रेलगाड़ी’ जैसी हो गई है जिसमें बैठे सभी यात्री एक-दूसरे से पूछ रहे हैं कि यह गाड़ी कहां जायेगी? एक जमाना था जब सभी विपक्षी दलों का गठबन्धन बनने पर ममता दीदी इसकी नेता के रूप मं निरूपित की जा रही थीं औऱ आज यह हालत हो गई है कि वह स्वयं को सभी व्यावहारिक मामलों में इंडिया गठबन्धन से अलग रखकर कदम उठा रही हैं। बेशक राज्य में इंडिया गठबन्धन के तृणमूल कांग्रेस के अलावा अन्य घटक दलों की कोई ताकत नहीं है और 42 मं 22 सीटें ममता दी की पार्टी के पास हैं व कांग्रेस के पास दो सीटें हैं जबकि 18 पर भाजपा का कब्जा है। भाजपा ने अचानक 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव में ही यह ऊंची छलांग लगा कर अपनी ताकत में वजनदार इजाफा किया था और एक समय में राज्य की सबसे मजबूत समझी जाने वाली मार्क्सवादी पार्टी का सफाया भाजपा व तृणमूल कांग्रेस के बीच हुई लड़ाई की वजह से हो गया था। मगर राज्य में वामपंथियों की जमीन पर अभी भी ताकत है और उनके पास वोटों का अच्छा खासा प्रतिशत भी है। यह वोट प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से 2022 के विधानसभा चुनाव व पिछले लोकसभा चुनावों में ममता दीदी के विरोध के चलते भाजपा की तरफ मुड़ गया था जिसकी वजह से वामपंथी दलों की हालत शून्य जैसी हो गई थी।
विधानसभा चुनावों में तो एक करामात यह भी हुई थी कि कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ हो गया था और इसका एक भी विधायक नहीं जीत पाया था जबकि भाजपा के विधायकों की संख्या सीधे 2 से बढ़ कर 77 हो गई थी। अक्सर राजनीति में वही सच नहीं होता है जो ऊपर से दिखाई पड़ता है। ममता दी इंडिया गठबन्धन का सदस्य रहने के बावजूद शुरू से ही यह कहती रही हैं कि प. बंगाल में भाजपा का मुकाबला अकेले वही कर सकती हैं क्योंकि राज्य में उन्हीं की पार्टी सबसे बड़ी व ताकतवर पार्टी है। हालांकि वामपंथी दल भी इंडिया गठबन्धन के सदस्य हैं मगर प. बंगाल में इनमें आपस में कोई सामंजस्य नहीं है। इसकी खास वजह यह है कि प. बंगाल से वामपंथियों का 34 वर्ष पुराना शासन ममता दी की तृणमूल कांग्रेस ने ही 2011 में समाप्त किया था और वामपंथियों को रसातल मंे पहुंचाया था।
अतः इंडिया गठबन्धन के घटक दलों की यह रणनीतिक चाल भी हो सकती है कि वे सब मिलकर आपस में ही एक-दूसरे के मुकाबले प्रत्याशी मैदान में उतारें जिससे भाजपा को कम से कम वोट मिल पायें और उनमें से किसी के भी वोट एक-दूसरे को हराने के लक्ष्य के प्राप्त करने हेतु भाजपा के पाले में न जा पायें। राज्य में भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यदि इंडिया गठबन्धन के घटक दलों की यह रणनीति है तो जाहिर तौर पर अपेक्षाकृत राज्य की नई ताकत भाजपा के लिए यह चिन्ता की बात हो सकती है लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों को विश्वास है कि ममता दी की यह चाल सफल नहीं हो सकती क्योंकि लोकसभा चुनावों के जो मुद्दे उभर रहे हैं उन्हें देखते हुए अन्तिम मुकाबला अन्ततः भाजपा के साथ ही होगा औऱ पार्टी के प्रत्याशी हर चुनाव क्षेत्र में लड़ाई मं रहेंगे। गौर से देखा जाये तो कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस व वामपंथी दल तीनों ही भाजपा के कट्टर दुश्मन कहे जा सकते हैं हालांकि ममता बनर्जी को यह श्रेय दिया जा सकता है कि वह वाजपेयी काल के दौरान जब एनडीए की सदस्य थीं तो राज्य में भाजपा को विस्तार देने में उनकी प्रमुख भूमिका थी। यहां से वाजपेयी सरकार में भाजपा सांसद मन्त्रिमंडल में भी शामिल रहते थे। मोदी मन्त्रिमंडल में भी प. बंगाल के कई भाजपा सांसद मन्त्री बने हुए हैं लेकिन मोदी सरकार संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लागू करने जा रही है जिसका बहुत तीखा विरोध करने की घोषणा ममता दी पहले ही कर चुकी है। यह ऐसा विषय है जिसकी गूंज इस प्रदेश की सभी 42 लोकसभा सीटों पर चुनावी मौसम में होगी।
बांग्लादेश से लगे होने की वजह से इस मुद्दे का राज्य की जनता पर व्यापक असर हुए बिना नहीं रह सकता। इसके साथ ही सन्देशखाली के शाहजहां शेख का मामला भी कलकत्ता उच्च न्यायालय से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने के बाद राज्यव्यापी मुद्दा बन सकता है जिसका असर प. बंगाल की साम्प्रदायिक संरचना पर पड़ सकता है क्योंकि भाजपा ममता दी पर शुरू से ही मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है हालांकि बंगाली जनता अपनी मजबूत सांस्कृतिक जड़ों की वजह से बहुत ही धर्मनिरपेक्ष मानी जाती है। यहां रवीन्द्र नाथ टैगोर जैसे महामानववादी अन्तर्राष्ट्रीय कवि भी हैं और काजी नजरुल इस्लाम जैसे महान बांग्ला कवि भी हुए। बंगाली दोनों ही शख्सियतों को अपनी महान धरोहर मानते हैं परन्तु जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु के बाद राज्य में उनके द्वारा संस्थापित जनसंघ पार्टी का भाजपा के रूप में यह पुनरुत्थान काल भी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

13 + fourteen =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।