कश्मीर घाटी में अशांति का मुख्य कारण क्या है? जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव भी होते हैं, वहां का अवाम वोट भी डालता है, मतदान के रिकार्ड भी टूटते हैं। इसका अर्थ यही है कि वहां के अवाम की भारत के लोकतंत्र और संविधान में आस्था है। फिर वे कौन लोग हैं जो घाटी को अशांत बनाये रखने का षड्यंत्र रचते आ रहे हैं, किसे फायदा है इसमें। वे हैं हुर्रियत के नाग और अलगाववादी नेता। सबसे ज्यादा फायदा उन 23-24 जमातों के तथाकथित रहनुमाओं ने उठाया जो खुद को कुलजमाती हुर्रियत कांन्फ्रेंस कहते हैं। इन्हें पाकिस्तान और विदेशों से इसलिए धन मिलता रहा कि चाहे कुछ भी हो, कश्मीर को शांत मत रहने देना। कश्मीर में अशांति बनी रहे, ऐसा कई मुस्लिम देश भी चाहते हैं जो इन्हीं देशद्रोहियों को पैसा भेजकर अपना मकसद साधना चाहते हैं।
बाहर के इस पैसे का 25-30 प्रतिशत भाग हुर्रियत वाले घाटी के निर्दोष युवाओं को बहकाने में लगाते रहे और जलसे-रैलियों के लिये उन्हें पैसा देते रहे। बाकी सब गोलमाल कर दिया जाता रहा। इन्होंने बच्चों के हाथों में पत्थर पकड़वाये, किताबों की जगह बंदूकें थमवा दी, उनको मरने के लिये आत्मघाती बना डाला जबकि इनके खुद के बच्चे विदेशों में पढ़ते रहे। भारत की एक खुफिया एजैंसी वहां करोड़ों-अरबों खर्च करती रही और उस पैसे का हिसाब-किताब जांचने का अधिकार संसद को भी नहीं था। अलगाववादियों और तथाकथित हुर्रियत के रहनुमाओं ने देश-विदेश में चल-अचल सम्पत्तियां खड़ी कर लीं। क्या केन्द्र की सरकारें यह सब नहीं जानती थीं जबकि सब कुछ कई साल पहले साफ हो चुका था। सवाल पहले भी उठा था कि जब गिलानी का आय का कोई स्रोत नहीं तो वह हर माह लाखों का खर्च कैसे करता रहा?
बड़ा ताज्जुब होता है जब राहुल गांधी और अन्य कांग्रेसी नेता यह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नीतियों से कश्मीर जल रहा है, जबकि वास्तविकता यह है कि कश्मीर आपके पूर्वजों और कांग्रेस सरकारों की नीतियों से अब तक जल रहा है। काश! कांग्रेस सरकार ने बहुत पहले हुर्रियत नेताओं पर नकेल कसी होती तो कश्मीर शांत हो चुका होता। हुर्रियत के नेता देश के सामने नग्न हो चुके हैं। टैरर फंडिंग मामले में हुर्रियत नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी है। अब प्रवर्तन निदेशालय ने अलगाववादी नेता शब्बीर शाह को श्रीनगर से गिरफ्तार कर लिया है। हैरानी हुई कि यह कार्रवाई दस वर्ष बाद हुई। दस वर्ष पहले दिल्ली पुलिस के स्पैशल सैल ने शेख मोहम्मद वानी को गिरफ्तार किया था, उसे हवाला व्यापारी बताया गया था। उस पर शब्बीर शाह को 2.25 करोड़ रुपये देने का आरोप था।
इस मामले में शब्बीर शाह को कई बार पूछताछ के लिये सम्मन भेजा गया लेकिन एक बार भी वह हाजिर नहीं हुआ, उल्टा वह यह आरोप लगाता रहा कि यह आरोप राजनीति से प्रेरित है और सरकार खतरनाक खेल खेल रही है। काश! केन्द्र की सरकार ने उसे दस वर्ष पहले दबोचा होता। हुर्रियत वाले और शब्बीर शाह जैसे लोग अपना अलग दल बनाकर पाकिस्तान और आईएसआई की जुबां बोलते रहे, वह दहशतगर्दों, मीरजाफरों, दार-उल-तरब के दार-उल-इस्लाम में बदलने वाली जहनियत की जुबान बोलते रहे। देशद्रोहियों की जुबान ने राष्ट्र की अस्मिता को झकझोर कर रख दिया। सारे भारत में एक राज्य के एक कोने में थोड़ी सी ताकत पाकिस्तान के इशारे पर मिली तो उसने ओरंगजेब की तरह अपना फन फैला दिया। घाटी को हिन्दूविहीन बना डाला गया।
कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी हो गये। दर-दर भटकते रहे। हुर्रियत के साथ कांग्रेस के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेता अब तक इन लोगों पर नकेल क्यों नहीं कस सके। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कान्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने हुर्रियत नेताओं को मिलने वाले पैसे की जांच का स्वागत किया है। साथ ही यह भी कहा है कि एनआईए को यह भी पता लगाना चाहिए कि क्या कभी भारत सरकार ने हुर्रियत नेताओं को फंडिंग की है या नहीं। बात बहुत गंभीर है क्योंकि हुर्रियत नेताओं पर पाकिस्तान के साथ-साथ नई दिल्ली के साथ भी सांठगांठ के आरोप लगते रहे हैं। सवाल उठता है कि वह कौन सी सरकार थी जो खुद अलगाववादियों को फंडिंग करती थी। नरेन्द्र मोदी सरकार ने घाटी की फिजाओं को विषाक्त बनाने वाले नागों पर शिकंजा कसा है तो प्रतिक्रियाएं भी आयेंगी।
अब तो यह भी पता चला है कि एक अलगाववादी नेता की दिल्ली के पॉश एरिया में करोड़ों की संपत्ति है। किसी ने शॉपिंग माल में हिस्सेदारी डाल रखी है तो किसी ने होटल में। आखिर अलगाववादी नेताओं ने अकूत संपत्ति कहां से अर्जित की। उनका आतंकी स्रोत से क्या सम्बन्ध है। इन सबका खुलासा होने वाला है। हुर्रियत के नागों को सजा देने का वक्त आ चुका है। वर्षों से विध्वंस का खेल खेल रहे इन लोगों का फन कुचलना बहुत जरूरी है। कश्मीरी अवाम इनकी सच्चाई को समझे और इन्हें खुद से अलग कर दे, यही अच्छा होगा।