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आयातक से निर्यातक बना भारत

आजादी के बाद से ही भारत लगातार रक्षा साजोसामान का आयातक देश बना रहा। पाकिस्तान और चीन की ओर से सीमा पर लगातार जारी तनाव के दौरान भी तत्कालीन सरकारों ने इस संबंध में कोई भी आवश्यक कदम नहीं उठाए और भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने लिए हमेशा दूसरे देशों पर निर्भर रहा। हम सेना के लिए हथियार और अन्य सामग्री रूस से खरीदते रहे, फिर हमने अन्य देशों से भी रक्षा सामग्री और लड़ाकू ​िवमान लिए। पहले रक्षा सौदे में दलाली के स्कैंडल होते रहे और देश की सुरक्षा रक्षा घोटालों में गुम होकर रह गई। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री पद पर रहते घोटालों का इतना शोर हुआ कि तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी घोटालों की आशंका के चलते कई रक्षा सौदे कर ही नहीं पाए लेकिन अब आयातक भारत डिफैंस क्षेत्र में निर्यातक बन चुका है। यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
वित्त वर्ष 2023-24 में देश का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जो 2022-23 की तुलना में 32.5 प्रतिशत अधिक है। यदि इस भारी बढ़ोतरी की तुलना वित्त वर्ष 2013-14 से की जाए, तो निर्यात में बीते एक दशक में 31 गुना वृद्धि हुई है। साल 2004-05 और 2013-14 तथा 2014-15 और 2023-24 की वृद्धि की तुलना करें, तो निर्यात 21 गुना बढ़ा है। वर्ष 2004-05 और 2013-14 के बीच 4,312 करोड़ रुपये के रक्षा उत्पादों का निर्यात हुआ था, जबकि 2014-15 से 2023-24 की अवधि में यह आंकड़ा 88,319 करोड़ रुपये जा पहुंचा। इन आंकड़ों से रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में तीव्र विकास का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। हालिया वर्षों में रक्षा क्षेत्र के विकास के लिए केंद्र सरकार ने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिये हैं। भारतीय रक्षा निर्यात बढ़ने पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि निजी क्षेत्र और डीपीएसयू सहित हमारे रक्षा उद्योगों ने हाल के वर्षों में सराहनीय प्रदर्शन दर्ज किया है।
रक्षा मंत्रालय ने भारत के रक्षा विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। उन्होंने रक्षा निर्यात में नया मील का पत्थर पार करने पर सभी हितधारकों को बधाई दी है। इनमें सबसे प्रमुख हैं रक्षा क्षेत्र में निजी भागीदारी और विदेशी निवेश की अनुमति। इससे निवेश के साथ-साथ तकनीक हासिल करने की सुविधा भी बढ़ी तथा रोजगार के नये अवसरों का सृजन भी हुआ। तकनीक और संसाधन बढ़ने से शोध एवं अनुसंधान में भी प्रगति आयी है। नीतिगत सुधारों की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि निर्यात में 60 प्रतिशत योगदान निजी क्षेत्र का है और 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रक्षा क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों की है।
सरकार ने बहुत सी चीजों की एक सूची बनायी है, जिनकी खरीद देश में ही हो सकती है यानी उनका आयात नहीं किया जा सकता है. यह सूची समय-समय पर संशोधित होती है और इसमें नये उत्पादों को जोड़ा जाता है। इस निर्णय का दूसरा सकारात्मक पहलू यह है कि देश में ही खरीद कर हम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत भी कर रहे हैं तथा आयात पर हमारी निर्भरता भी घट रही है। नीतिगत सुधारों और सरकार की खरीद से गुणवत्तापूर्ण उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। इन प्रयासों से विभिन्न देशों में भारतीय रक्षा उत्पादों के प्रति भरोसा बढ़ा है और वे भारत से अपना आयात बढ़ा रहे हैं। रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने में डिजिटल व्यवस्था से भी मदद मिली है. इससे समूची प्रक्रिया तेज और पारदर्शी हुई है। रक्षा निर्यात आर्थिक विषय होने तथा देश को आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देने के साथ-साथ रणनीतिक और सैन्य दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इससे हमारी रक्षा क्षमता को मजबूती तो मिलती ही है, साथ में आयातक देशों के साथ सामरिक संबंध भी बेहतर होते हैं।
मोदी सरकार का लक्ष्य भारत को शीर्ष हथियार निर्यातक देशों में शामिल करना है और भारत सरकार, हथियारों को लेकर दीर्घकालिक प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। भारत ने पिछले कुछ सालों में मिसाइलें, तोप में इस्तेमाल होने वाले गोले, रॉकेट, बख्तरबंद वाहन, अपतटीय गश्ती जहाज, व्यक्तिगत सुरक्षा गियर, विभिन्न रडार, सर्विलांस सिस्टम और गोला-बारूद के निर्यात को बड़े स्तर पर बढ़ाया है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, इजराइल और ब्राजील सहित 34 देशों को बुलेट-प्रूफ जैकेट निर्यात किए हैं। जबकि, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), मिस्र, इंडोनेशिया और थाईलैंड सहित करीब 10 देशों ने भारत से गोला-बारूद (5.56 मिमी से 155 मिमी के बीच) खरीदा है। वहीं, भारत के डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स का अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने अधिग्रहण किया है, जबकि भारत ने मॉरीशस, सेशेल्स और मालदीव को फास्ट इंटरसेप्टर नौकाओं का निर्यात किया है। विनाशक हथियारों का बाजार भी बन रहा भारत पिछले साल दिसंबर में, भारत की सरकारी स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने कहा था, कि वह अपने स्वदेशी तेजस मल्टीरोल लड़ाकू जेट बेचने के लिए कम से कम तीन देशों के साथ बातचीत कर रही है। आर्मीनिया जैसा देश भारत से आकाश मिसाइल के साथ-साथ और दूसरे हथियारों की खरीद कर रहा है। भारत लगातार घातक मिजाइलों का परीक्षण कर रहा है। उससे दु​िनया भर में उसकी धाक बन गई है। वह दिन दूर नहीं जब भारत रक्षा उत्पादन में पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो जाएगा।

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