1960 के दशक में पूज्य दादा लाला जगत नारायण जी ने एक और नए इतिहास की रचना की थी जब पंजाब के अब तक के सबसे सशक्त मुख्यमंत्री, जिस पर प्रधानमंत्री पं. नेहरू का पूरा हाथ था, को लालाजी ने अपना त्यागपत्र देने पर मजबूर कर दिया। जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूं कि प्रताप सिंह कैरों खुद इतना भ्रष्टाचारी नहीं था, लेकिन उसकी पत्नी और दोनों बेटे भ्रष्टाचार में लिप्त थे। इसके अलावा कैरों के लड़कों ने बेशर्मी से पंजाब में गुंडागर्दी की शुरूआत कर दी थी। पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से कैरों के एक बेटे ने सैक्टर-22 के किरण सिनेमा हाल के बाहर से एक लड़की काे उठा लिया था और अपनी कार में लेकर फरार हो गया था।
पंजाब और दिल्ली के किसी अखबार में यह हिम्मत नहीं थी कि वे इस खबर को प्रकाशित करें लेकिन लालाजी की हिंद समाचार ने इस खबर को प्रथम पृष्ठ पर प्रमुखता से प्रकाशित किया। प्रताप सिंह कैरों की पत्नी और बेटों के भ्रष्टाचार के चर्चे तो प्रदेश में होते थे, लेकिन उन्हें रोकने वाला लालाजी के अलावा कोई न था। जालंधर के उस समय के सिविल सर्जन डा. प्रताप सिंह से अक्सर कैरों की पत्नी कुछ न कुछ मांगती रहती थी। डा. प्रताप सिंह ने कैरों की पत्नी की रिश्वत की मांगों को टेप कर लिया। बाद में यह टेप लालाजी और रमेश जी को सौंप दिए। लालाजी ने किश्तवार ‘कैरों परिवार भ्रष्टाचार की चरम सीमा पर!’ शीर्षक से अपने लेख हिंद समाचार के प्रथम पृष्ठ पर छापने शुरू कर दिए।
ऐसे ही लेख 1975 में एमरजैंसी से पहले पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह पर लालाजी ने लिखे थे, जिसका शीर्ष था ‘नादिरशाह, बाबर और औरंगजेब की रूह ज्ञानी जैल सिंह में!’ इंदिरा गांधी पर भी लालाजी ने लेख लिखे थे ‘डिक्टेटर इन्दिरा को उसका बेटा संजय ले डूबेगा’। बहरहाल पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों भी गुंडागर्दी पर उतर आए। लालाजी और रमेश जी पर झूठे केस बनाए गए। रात को लालाजी और रमेश जी की हत्या हेतु हथियारबंद लोग हमारे घर के बाहर घूमने लगे। पंजाब के शहरों में लालाजी की बेटियाें के भद्दे-भद्दे इश्तिहार लगाए जाने लगे। मुझे याद है कि एमरजैंसी के दौरान भी हमारी प्रेस की बिजली काटने के उपरांत दर्जनों कोर्ट केस बने थे।
आप जरा सोचिए मेरे पिताजी और मेरी दिन की शुरूआत सुबह जालन्धर से चंडीगढ़ वकीलों से मीटिंग, कोर्ट में पेशी से हाेती थी। दोपहर बाद चंडीगढ़ से फिरोजपुर जेल और बाद में पटियाला के राजिन्द्रा अस्पताल में दिन बीतता था। शाम को हम दोनों बाप-बेटा वापिस जालन्धर आते थे। देर रात तक ‘पंजाब केसरी’ को प्रकाशित करने और सैंसर के सदस्यों से झड़पों में समय बीत जाता था। देर रात सोते थे, फिर सुबह होते अपने मिशन पर निकल जाते थे। मैं कई बार घबरा जाता, छोटा था लेकिन पिताजी कहते कि जब ‘हमने हिंद समाचार में प्रताप सिंह कैरों के विरुद्ध जिहाद छेड़ा था और उसके विरोध में आवाज उठाई थी तो हम पूरे पंजाब में अकेले थे। आज भी अकेले हैं।
जिस आसमान पर आज काले बादल छाए हैं, एक दिन इस घनघोर अंधेरे से राहत मिलेगी और सूर्य फिर से आसमान पर चमकेगा।’ पिताजी खुद कार चलाते थे। मैं उनके साथ आगे की सीट पर बैठता था। पिछली सीट फाइलों से भरी होती थी। हमारे पास तब कार चलाने के लिए ड्राइवर नहीं था। मुझे याद है कि फिरोजपुर के जेलर श्री विभीषण अग्रवाल बड़े ही सज्जन पुरुष थे। जब मैं लालाजी को रोजाना फलों की टोकरी में चोरी-चोरी पत्र छुपा कर देता था तो श्री अग्रवाल मेरी तरफ देखकर हंसते थे और कहते थे ‘दे-दो, दे-दो-लालाजी को पूरे फलों की टोकरी दे दो।’ उनका यह अहसान दादे के इस पोते ने 1995 में जाकर चुकाया जब बूढ़े हो चुके श्री अग्रवाल दिल्ली में मेरे दफ्तर आए। मैंने उन्हें पहचान लिया, उनके पांव छुए और उन्होंने मेरे से मदद मांगी। उनके पोते को सरकारी नौकरी की दरकार थी। मैंने फौरन मंत्री महोदय को फोन किया और श्री अग्रवाल को मंत्री के पास भेजा।
दो दिन बाद अग्रवाल साहिब मुझे मिलने आए और पोते की नौकरी लग जाने पर धन्यवाद किया। मैंने कुछ लम्बे सांस लिए, आखिर पोते ने दादे का ऋण और अहसान चुकाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। उधर प्रताप सिंह कैरों की हमारे परिवार पर अत्याचार और गुंडागर्दी की हरकतें बढ़ती जा रही थीं। उधर पक्के इरादों के लालाजी और रमेश जी भला कहां मानने और झुकने वाले थे। मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों पर भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी के आरोपों का सिलसिला हिंद समाचार में चलता रहा। बात इतनी बढ़ गई कि पंजाब से निकल कर इसकी गूंज राजधानी दिल्ली तक जा पहुंची। प्रधानमंत्री पं. नेहरू का देश की राजधानी दिल्ली में सिंहासन डोलने लगा। मेरे दादाजी और पिताजी कहा करते थे समाचार पत्र कोई छोटा नहीं होता। बड़ा समाचार पत्र हो या छोटा उसकी असल ताकत तो सच्चाई, ईमानदारी और निडरता से लड़ने की क्षमता में छिपी होती है।
उस समय हिंद समाचार मात्र 25000 कापी छपता था लेकिन निडरता के पैमाने पर लालाजी और रमेश जी ने पूरी दिल्ली को हिलाकर रख दिया था।आखिरकार प्रधानमंत्री पं. नेहरू को दास कमिशन बनाकर मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के हिंद समाचार में छपे भ्रष्टाचार के आरोपो की जांच के लिए भेजना पड़ा। गृहमंत्री सरदार पटेल ने खुद लालाजी को फोन कर यह बताया और कहा कि ‘लालाजी अब आप सच्चाई और बहादुरी से इस कमिशन के समक्ष प्रताप सिंह कैरों के विरुद्ध सबूत पेश करो’। सबसे पहले तो नब्बे प्रतिशत लोग दास कमिशन के समक्ष पेश होने से डरते थे लेकिन डा. प्रताप सिंह पहले व्यक्ति थे जो लालाजी और रमेश जी के साथ दास कमिशन के समक्ष पेश हुए और प्रताप सिंह कैरों की पत्नी के टेप कमिशन के समक्ष पेश कर दिए।
अब रोजाना चंडीगढ़ में दास कमिशन की कार्रवाई होती और यह टेप बजाए जाते। हर रोज अकेले हिंद समाचार में ही दास कमिशन की कार्रवाई प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होती। फिर धीरे-धीरे लालाजी और रमेश जी के प्रयासों से कुछ कैरों के भ्रष्टाचारों के सबूत दास कमिशन के समक्ष पेश होने लगे। फिर सबूत देने वालों की भीड़ बढ़ने लगी। आखिरकार दास कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों और उनके परिवार को भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी में लिप्त पाया और अपनी रिपोर्ट पं. नेहरू, स. पटेल और केन्द्रीय मंत्रिमंडल समेत उच्चतम न्यायालय को सौंप दी। लालाजी और रमेशजी के प्रयासों से आखिर सत्य, निडरता और ईमानदारी की जीत हुई।
प्रताप सिंह कैरों को अपने मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र देना पड़ा। उधर निडरता से लड़ने वाले पूरे पंजाब और देश के एकमात्र समाचार पत्र हिंद समाचार की प्रसार संख्या 25000 से 75000 हो गई। यह लालाजी और रमेश जी का अभूतपूर्व निडर रहने का परिणाम ही तो था।
‘सत्यमेव जयते’
बाद में पंजाब के भूतपूर्व मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की दिल्ली समेत पंजाब (अब हरियाणा) में गोली मारकर हत्या कर दी गई। कैरों के हत्यारे सुच्चा सिंह को बाद में लालाजी के लाडले पुलिस अफसर अश्विनी कुमार ने काठमांडू (नेपाल) में जाकर गिरफ्तार किया।
इस संबंध में दो घटनाएं मुझे आज भी याद हैं कि जब प्रताप सिंह कैरों को गोली मारी गई तो वे हत्यारे को पहचानते थे। उनके ड्राइवर ने इस बात का रहस्योद्घाटन मीडिया के समक्ष किया। जब हत्यारा प्रताप सिंह कैरों को समीप से गोली मारने आगे बढ़ा तो प्रताप सिंह कैरों ने चिल्ला कर कहा ‘ओए सुच्चे तूं’। दूसरा किस्सा कैरों की हत्या की रात का है।
उसी रात कैरों का छोटा लड़का सुरेन्द्र कैरों जालन्धर स्थित हमारे घर आया और लालाजी के पांव पड़कर बहुत रोया। हमारा पूरा परिवार यानि पिताजी और मैं भी वहां मौजूद थे। रोते हुए लालाजी के पांव पकड़ कर सुरेन्द्र कैरों बोला ‘लालाजी आपका भाई प्रताप सिंह कैरों अब नहीं रहा’।