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माता गुजरी और साहिबजादों की लासानी शहादत

इतिहास इस बात की गवाही भरता है कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने जुल्म और जालिमों का खात्मा करने के लिए अपना सरवन्श कुर्बान कर दिया। जिस समय उनकी उम्र मात्र 9 वर्ष की थी तो उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर जी को अपने प्राण देकर कश्मीरी पण्डितों की रक्षा करने के लिए कह दिया। अपने दिल के टुकड़े चारों साहिबजादों की कुर्बानी दी। दो बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह को चमकोर की जंग मंे दुश्मनों से लड़ने के लिए स्वयं तैयार करके भेजा ताकि कोई यह ना कह सके कि गुरु जी ने सिखों के बच्चांे को तो मरवा दिया पर अपने बच्चों पर आंच नही आने दी। इसलिए जिस उम्र में माता-पिता अपने बच्चांे की शादी का ख्वाब देखते हैं गुरु जी ने उन्हें जंग के मैदान में उतारा और साहिबजादों ने लड़ते-लड़ते शहादत हासिल की। छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह, बाबा फतेह सिंह जिनकी उम्र 9 और 7 साल की थी उन्हें जालिमों ने सरहिन्द की दीवार में जिन्दा चिनवा दिया। सरहिन्द की दीवारें आज भी उन पलों की गवाही भरती है जब माता गुजरी जी और साहिबजादों को कड़कड़ाती सर्दी में ठण्डे बुर्ज में कैद करके रखा गया।
साहिबजादांे को तरह-तरह के लोभ लालच दिये गये पर वह अपने निश्चय पर अडिग रहे और अन्त में शहादत का जाम पी गये। मगर अफसोस कि जिन देशवासियों के लिए गुरु साहिब ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया आज वह लोग इतिहास से पूरी तरह से अन्जान हैं। देश के बच्चों को क्रिसमस तो याद है पर साहिबजादों की शहादत को भूले बैठे हैं क्योंकि सिख समाज केवल लंगरों तक ही सीमित रह गया। कट्टरवादियों ने अपनी पूरी ताकत माता गुजरी जी को गुजर कौर बताने में लगा दी जिनके पीछे लगकर आज बड़ी कमेटियां और प्रचारक भी उसी नाम से पुकारने लगे जबकि पुरातन इतिहास में जिक्र माता गुजरी जी का ही आता है। समय की हकूमत ने स्कूलांे में इस इतिहास का जिक्र तक नहीं होने दिया। अफसोस इस बात का भी है कि दूसरों को तो क्या सन्देश देना था सिख समाज के अपने ही ज्यादातर लोग अपने बच्चों को इस बात की जानकारी देने में नाकामयाब रहेे। अगर बच्चों को सही ढंग से जानकारी दी होती तो सिखों के बच्चे साहिबजादों को अपना रोल माडल बनाते। आज युवा वर्ग जो सिखी से दूर जाता जा रहा है वह सिखी में भरपूर होते।
जो काम सिख समाज को करना चाहिए था वह आज देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया। पिछले वर्ष उन्होंने 26 दिसम्बर का दिन निर्धारित किया जब समुचे देश में एक साथ साहिबजादों की शहादत का दिन मनाया गया। स्कूलांे, कालेजों में बाकायदा इतिहास की जानकारी दी गई। सड़कों पर होर्डिंग लगाए गये। नैशनल स्टेडियम में दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के सहयोग से कार्यक्रम किया गया जिसमें प्रधानमंत्री ने स्वयं पहुंचकर साहिबजादों की शहादत को याद किया था। इसी के चलते इस बार भी दिल्ली के प्रगति मैदान में केन्द्र सरकार के बाल विकास मंत्रालय द्वारा वीर बाल दिवस का आयोजन किया गया। जिसमें 400 से अधिक स्कूली बच्चों ने शबद कीर्तन गायन किया। प्रधानमंत्री द्वारा मंच से साहिबजादों और उन महान योधाओं की याद ताजा की जिनकी बदौलत आज देशवासी आजाद हवा में सांस लेते हैं। केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी गुरु गोबिन्द सिंह जी के जन्म स्थान तख्त पटना साहिब पहुंचे और वहां पर उन्हांेने साहिबजादों और माता गुजरी की याद में हुए समागम में भाग लिया। प्रधानमंत्री से प्रेरित होकर दिल्ली के स्कूलों में पहली बार शहादत का दिन मनाया गया। रोहिणी के माउंट पब्लिक स्कूल में इस अवसर पर मुझे भी जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जहां देखा गया कि स्कूल की प्रिंसीपल ज्योति अरोड़ा और अन्य अध्यापिकाओं के द्वारा बच्चों को इतिहास बताया गया। आज तक बच्चे इस इतिहास से अन्जान थे।
तीसरी बार अकाली दल में शामिल हुए मनजीत सिंह जीके
जागौ पार्टी के अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके तीसरी बार अकाली दल में शामिल हुए। सबसे पहले वह 1982 में जरनैल सिंह भिंडरावाले और हरचंद सिंह लोंगोवाल की प्रेरणा के साथ अकाली दल का हिस्सा बने थे। मगर बाद में पार्टी हाईकमान के साथ मतभेद के चलते उन्होंने पार्टी छोड़ दी। 2006 में अकाली दल पंथक का गठन कर 2007 में दिल्ली कमेटी चुनाव में अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे े जिसमें 6 उम्मीदवार जीत कर आए। 2008 में जब सुखबीर सिंह बादल ने अकाली दल की कमान सम्भाली तो वह मनजीत सिंह जीके को पुनः पार्टी मंे लाए और जत्थेदार अवतार सिंह हित को दरकिनार कर दिल्ली इकाई की कमान मनजीत सिंह जीके को सौंप दी। मनजीत सिंह जीके की अध्यक्षता में पहली बार 3 विधायक और 7 पार्षद जीतकर आए, जिससे सुखबीर सिंह बादल का विश्वास मनजीत सिंह जीके पर बढ़ता चला गया। 2013 में दिल्ली कमेटी चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने के बाद अकाली दल के साथ-साथ दिल्ली कमेटी की बागडोर भी मनजीत सिंह जीके को सौंप दी गई।
करीब 6 साल तक वह दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज भी रहे मगर जब उन पर इल्जामों की झड़ी लगी तो पार्टी हाईकमान द्वारा दबाव बनाकर उनसे इस्तीफा लेकर कमान मनजिन्दर सिंह सिरसा को सौंप दी। 2021 के चुनाव अकाली दल ने मनजिन्दर सिंह सिरसा और हरमीत सिंह कालका की देखरेख में लड़े। इन चुनावों में अकाली दल की सीनीयर लीडरशिप को दूर ही रखा गया क्योंकि बरगाड़ी काण्ड, गुरु ग्रन्थ साहिब के 328 स्वरुपों के गायब होने जैसे गंभीर आरोप पार्टी हाईकमान पर लग रहे थे। इन चुनावों में एक बार फिर से अकाली दल को अच्छी कामयाबी मिली हालांकि उनके कप्तान अपनी सीट बचाने में असफल रहे। इन चुनावों में मनजीत सिंह जीके को केवल दो ही सीट मिली। मनजिन्दर सिंह सिरसा के भाजपा में शामिल होने के बाद घटनाक्रम कुछ ऐसे बदले कि सुखबीर सिंह बादल सरना भाइयों और मनजीत सिंह जीके के साथ मिलकर कमेटी बनाने की फिराक में थे जिसके चलते अकाली दल से जीतकर आए उम्मीदवारों ने हरमीत सिंह कालका के साथ मिलकर नई पार्टी अकाली दल दिल्ली स्टेट का गठन कर डाला और तब से दिल्ली कमेटी की बागडोर उन्हीं के पास है। परमजीत सिंह सरना ने पंथ पर खतरा मण्डराने की बात करते हुए लम्बे अंतराल के बाद पुनः अकाली दल का दामन थाम लिया और मनजीत सिंह जीके ने भी उन्हे मुद्दों पर आधारित समर्थन दिया। सुखबीर सिंह बादल द्वारा भाजपा से गठबंधन की निरन्तर कोशिशे की जाने के संकेत भी मिल रहे है पर शायद पंजाब भाजपा के नेता किसी भी सूरत में अकाली दल का साथ लेकर चलने को तैयार नहीं है।
शिरोम​िण कमेटी चुनाव भी जल्द होने वाले है ंऐसे मे सुखबीर सिंह बादल शायद भाजपा हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए पंथ को एकजुट करने निकल पड़े हैं। इसी के चलते उन्होंने एक बार फिर से मनजीत सिंह जीके को पार्टी में शामिल किया है। इस हिसाब से जीके की यह तीसरी बार अकाली दल में एन्ट्री है। स्त्री अकाली दल की कदावर नेता मनदीप कौर बख्शी और परमजीत सिंह राणा सहित जागो पार्टी का पूरी तरह से विलय अकाली दल में हो गया है। हरमीत सिंह कालका और जगदीप सिंह काहलो ने इस गठबन्धन पर चुटकी लेते हुए कहा कि सुखबीर बादल के आदेश पर ही जीके को बाहर का रास्ता दिखाया था क्या वह तब गलत थे यां फिर आज गलत हैं। इसी प्रकार परमजीत सिंह सरना, मनजीत सिंह जीके एक दूसरे पर और दोनों बादल परिवार पर जमकर आरोप लगाते रहे हैं फिर एका एक कौन से साबुन से धुलाई हो गई जो एक दूसरे के लिए पाक साफ हो गये। अब सब कुछ भाजपा पर निर्भर करता है अगर उन्होंने सुखबीर सिंह बादल से गठबन्धन कर लिया तब तो नए गठबन्धन को कुछ हासिल हो सकता है अन्यथा दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के बाद शिरोमणी कमेटी भी बचानी अकाली दल को भारी पड़ सकती है।

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