चुनाव आयोग ने ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) को राष्ट्रीय राजनैतिक दल का दर्जा प्रदान कर दिया है जिससे इसका रुतबा अब देश के गिने-चुने राष्ट्रीय दलों की कतार का हो गया है। किसी भी राजनैतिक दल के लिए यह गर्व का विषय होता है कि वह अखिल भारतीय स्तर पर सर्वमान्य दल बने। अब ‘आप’ भारत के केवल छह दलों में से एक हो गई है जिन्हें राष्ट्रीय दल कहा जाता है। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व ममता दी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय दल का तमगा समाप्त कर दिया है। ये तीनों दल अब क्षेत्रीय दलों की श्रेणी में चले गये हैं। इस सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी भारत के प्रथम 1952 के आम चुनावों से लेकर अब तक अपना राष्ट्रीय पार्टी का रुतबा संभाले रखने में कामयाब रही थी मगर 2019 के लोकसभा चुनाव और इसके बाद विभिन्न राज्यों के चुनावों के बाद इसकी हालत बहुत दयनीय हो गई जिसकी वजह से इसका दर्जा नीचे चला गया। जबकि दूसरी तरफ केवल दस साल के भीतर ही आम आदमी पार्टी ने दिल्ली व पंजाब समेत अन्य राज्यों में जनता का जो समर्थन प्राप्त किया उससे इसका स्थान ऊंचा होता चला गया।
भारत के लोगों को तब बहुत आश्चर्य हुआ था जब पंजाब के पिछले चुनावों में आप पार्टी को वहां के मतदाताओं का अभूतपूर्व समर्थन मिला था और इसे राज्य विधानसभा में तीन- चौथाई बहुमत प्राप्त हुआ था। मगर इसके साथ यह भी हकीकत है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में इसे संसद की एक भी सीट नहीं मिल पाई थी। राजनैतिक दलों के संचालन में ऐसे विरोधाभास होते रहते हैं मगर मूल सवाल उनकी स्वीकार्यता का होता है। राष्ट्रीय दल होने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि ऐसी राजनीतिक पार्टी का चुनाव चिन्ह उसकी मिल्कियत बन जाता है और भारत के किसी भी राज्य में होने वाले चुनाव में उसकी तरफ से खड़े किये गये प्रत्याशियों का यह चुनाव चिन्ह उनकी पहचान बन जाता है। उनके चुनाव चिन्ह को चुनाव आयोग किसी अन्य निर्दलीय या पंजीकृत दल के प्रत्याशी आविंत नहीं कर सकता। इस प्रकार ‘झाङू’ चुनाव चिन्ह अब आम आदमी पार्टी की पूरे भारत में उसी तरह स्थायी पहचान बन गया है जिस प्रकार कमल का फूल भाजपा का अथवा हाथ कांग्रेस का।
भारत में अब जो राष्ट्रीय पार्टी बची हैं वे केवल छह हैं और ये हैं भाजपा, कांग्रेस, मार्क्सवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी और आप। इनके अलावा सभी क्षेत्रीय अथवा पंजीकृत दल हैं। चुनाव आयोग ने किसी भी राजनैतिक दल को क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय दल घोषित करने के कुछ नियम बनाये हुए हैं जो जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत 1968 में जारी आदेशों के अनुरूप हैं। इसमें चुनाव चिन्ह व दर्जा नियत करने के बारे में नियम बनाये गये थे जिनमें 2014 के जनवरी महीने में संशोधन भी हुआ था। इनके अनुसार किसी भी राजनैतिक दल को क्षेत्रीय दल का दर्जा तभी मिल सकता है जब उस राज्य के पहले हुए चुनावों में उसे कम से कम छह प्रतिशत मत मिले हों और उसके दो विधायक जीते हों अथवा छह प्रतिशत मत मिले हों और उसका सांसद चुना गया हो अथवा तीन विधानसभा सीटें जीती हों बेशक उसका मत प्रतिशत तीन प्रतिशत ही रहा हो। इसी प्रकार राष्ट्रीय दल होने के लिए जरूरी होता है कि उस पार्टी के प्रत्याशियों को देश के किन्ही भी चार राज्यों में कम से कम छह प्रतिशत मत विधानसभा अथवा लोकसभा चुनावों में मिले हों मिले हों और उसके कम से कम चार सांसद जीते हों या लोकसभा में उसकी न्यूनतम दो प्रतिशत सीटें हों। यह आंकलन चुनाव आयोग पिछले दो लोकसभा चुनावों में प्राप्त सीटों के आधार पर करता है। अतः 2014 व 2019 के लोकसभा चुनावों के परिणामों का जब आंकलन किया गया तो आम आदमी पार्टी इस पर खरी उतरी।
2014 के लोकसभा चुनावों में पंजाब से उसके चार सांसद जीते थे और इनमें भगवन्त मान भी शामिल थे जो कि फिलहाल पंजाब के मुख्यमन्त्री हैं। आप पार्टी पंजाब, दिल्ली व गोवा राज्यों में अभी तक क्षेत्रीय पार्टी ही थी मगर पिछले गुजरात विधानसभा चुनावों में इसके प्रत्याशियों को 12 प्रतिशत से अधिक मत पड़े जिसकी वजह से यह अब राष्ट्रीय पार्टी बन गई है। जबकि दूसरी तरफ ममता दी की तृणमूल कांग्रेस ने प. बंगाल के अलावा मणिपुर व अरुणाचल प्रदेश में भी जोर आजमाइश की थी परन्तु इन राज्यों में उसे बहुत कम मतदाताओं का समर्थन मिला जबकि त्रिपुरा व प. बंगाल में यह मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय दल है। मगर हाल के चुनावों में मिजोरम में पार्टी को पांच सीटें मिली हैं और मतों का भी अच्छा प्रतिशत मिला है जिसकी वजह से यह पार्टी चुनाव आयोग के फैसले को न्यायालय में चुनौती देने पर विचार कर रही है। इसी प्रकार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का प. बंगाल व ओडिशा में क्षेत्रीय दल होने का रुतबा खत्म हो गया है क्योंकि पिछले जबकि केरल, मणिपुर और तमिलनाडु में यह क्षेत्रीय दल है। इससे वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में हो रहे बदलाव का अन्दाजा भी मोटे तौर पर होता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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