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मैडिकल जगत में हमारा आयुष लाजवाब

हम इतिहास में झांके या रामायण की गहराई में उतरें तो लक्ष्मण मुर्छा को कौन भूल सकता है कि जो एक शस्त्र से घायल हो गए थे तब भगवान बजरंगबली जो संजीवनी बूटी लेकर आए थे वह उस आयुर्वेद की प्राकृतिक जड़ी-बूटी ही थी

हम इतिहास में झांके या रामायण की गहराई में उतरें तो लक्ष्मण मुर्छा को कौन भूल सकता है कि जो एक शस्त्र से घायल हो गए थे तब भगवान बजरंगबली जो संजीवनी बूटी लेकर आए थे वह उस आयुर्वेद की प्राकृतिक जड़ी-बूटी ही थी जिसके दम पर लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटी थी। इसी प्रसंग में वैद्य सुशेन का जिक्र है जिन्होंने संजीवनी बूटी लाने  की बात कही थी और कुछ शर्तें बताई थीं जिसका पालन करना जरूरी था। आज के जमाने में इस प्रसंग को लेकर, उस जड़ी-बूूटी को लेकर आज भी शोध चल रहे हैं।  वनस्पति विज्ञान में पुदीना, धनिया, अदरक, जीरा और काली मिर्च सहित अनेक हरी स​ब्जियां हैं जो अपने आप में ऐसे गुण लिए हैं जिनसे हमारी इम्युनिटी बढ़ती है। हम यहां स्पष्ट करना चाहते हैं कि आयुर्वेद को अब वह गौरव हमारी सरकार ने दे दिया है जिसकी वर्षों से तलाश थी। आज की तारीख में सेना के अस्पतालों में आयुष मंत्रालय के तहत चिकित्सा सेवाएं दी जा रही हैं। 12 अस्पताल भी चुुन लिए गए हैं। खुद प्रधानमंत्री श्री मोदी जी ने कहा कि आयुष आज की तारीख में देश का एक बड़ा ब्रैंड है। सच बात तो यह है कि पारम्परिक इलाज को इस समय प्रमोट किए जाने की आवश्यकता है। इसी के लिए सरकार ने आयुष मार्ग बनाने का फैसला किया है। आयुष उत्पादों को तो भारत में तो पहचान मिली ही हुई थी अब इसका रुतबा ​दुनिया में बढ़ाने के लिए काम किए जा रहे हैं। सरकार की योजना के तहत आयुष पार्क बनाए जा रहे हैं ताकि आयुष उत्पादों पर ​रिसर्च की जा सके। इतना ही नहीं मैडिसनल प्लांट लगाने की ट्रेनिंग दी जा सके। वजह सिर्फ यही है कि आयुष उत्पादों को दुनिया भर में निर्यात करने की भारत की योजना है। जड़ी-बूटी वनस्पति को प्रमोट करने के लिए किसानों को आगे लाने के लिए सरकार बहुत कुछ आधुनिक तरीके ईजाद करने जा रही है। उस दिन मैं नेट पर देख रही थी तो मुझे बड़ी खुशी है कि सरकार आयुष दवाइयों को मान्यता देने के लिए 50 से ज्यादा देशों के साथ एग्रीमेंट कर चुकी है। दुनिया के नक्शे पर 225 देशों में से लगभग 160 राष्ट्रों में भारत अपनी आयुष दवाएं बेच सकेगा। यह मानवता को समर्पित एक बड़ा काम हैं और हमारी सरकार पारम्परिक इलाज पर जिस तरह जोर दे रही है वह प्रशंसनीय है। पिछले दिनों गांधी नगर में ‘ग्लोबल आयुष इनवेस्टमेंट एंड समिट’ में प्रधानमंत्री मोदी ने दौरा भी ​किया था और यह उन डाक्टरों को प्रेरित भी करेगी जो आयुष दवाओं को अपना करियर बनाना चाहते हैं। आयुष का जलवा कोरोना के दिनों  में लोग देख चुके हैं कि हमारा गर्म पानी और काढा आज भी पूरी दुनिया के लिए शोध का विषय है कि किस प्रकार हमने कोरोना के​ खिलाफ जंग में अपनी इमीयुनिटी को बनाए रखा यह हमारे आयुर्वेद अर्थात् आयुष का ही कमाल था। आयुष की इस  पहल का स्वागत है और आभार भी। सच बात तो यह है कि मैडिकल जगत क आयुष की सबसे ज्यादा जरूरत है।
अभी दो दिन पहले जब मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविन्द जगन्नाथ गुजरात पहुंचे तो उन्होंने कहा कि भारत इस दुनिया की सबसे बड़ी फार्मेसी है और पारम्परिक चिकित्सा में भारत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। 
मेरा अपना जिन्दगी का अनुभव है। मेरे मायके में आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टर है, जिनकी मैं बहुत इज्जत करती हूं। कई साल पहले मुझे एलर्जी यानी छपाकी हो गई, बहुत इलाज कराया ठीक नहीं हो रही थी। अगर मैं अंग्रेजी दवाइयां खाती तो मुझे नींद आती थी, तब मेरे मायके के डाक्टर ने मुझे दवाई दी, जिसका नाम मुझे आज भी याद  है, प्रवाल पिष्टी सर्प गंधा टिकड़ी और उसके बाद मुझे कभी इलाज कराने की जरूरत नहीं पड़ी। यही नहीं आदित्य के बाद क्योंकि हमने आतंकवाद का चरम देखा। मुझे कंसीव करने में दिक्कत आ रही थी तब मुझे देसी दवाएं यानी सेब, आंवला, बेल का मुरब्बा, सोने-चांदी के बरक और मिश्री के साथ दिया गया तब मेरे जुड़वा अर्जुन-आकाश पैदा ​हुए। यही नहीं मेरी बहन मधु को कैंसर हुआ डाक्टर ने जवाब दे दिया परन्तु मेरे मायके वालों ने चाहत नहीं छोड़ी, उसने सर्जरी के साथ आयुर्वेद का इलाज किया और आज वो हमारे बीच स्वस्थ है। काश! अश्विनी जी भी आयुर्वेद को अपना लेते तो हमारे बीच होते। उन्होंने सिर्फ एलोपैथी पर विश्वास किया। अगर एलोपैथी और आयुर्वेद चिकित्सा भी साथ-साथ चले तो चमत्कार होते हैं।

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