शिक्षा किसी भी देश का आधार है, यह कहना शत-प्रतिशत है। गुरुकुल से चली हमारी शिक्षा प्रणाली आज कम्प्यूटर से लबरेज है और आधुनिकता के नए रूप में है। दुनिया के नामी देशों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, आस्ट्रेलिया में भारतीय लोग बड़े पदों पर काम कर रहे हैं। उनकी सैलरी उनकी योग्यता से सर्वाधिक है। आज पूरी दुनिया में अगर भारत की धूम है तो उसकी शिक्षा को ही इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। हमारे यूथ के प्रति विशेष कर स्कूली बच्चों को शिक्षा समागम में शामिल करने का अवसर देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने दो दिन पहले नई शिक्षा नीति के फायदों से बच्चों को रूबरू करवाया। वहीं डिग्री दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले शिक्षकों को भी जिम्मेदारी का अहसास करवाया। स्कूली बच्चों को दसवीं-बारहवीं से ही एक ऐसा प्लेटफार्म मिले तो उनका करियर बना सके। इस थीम के साथ पीएम ने साफ कहा कि डिग्रियां लेने से कुछ नहीं होता, बल्कि शिक्षा ऐसी हो जिसके दम पर नौकरी मिल सके। मोदी जी शिक्षा के मामले में स्टूडैंट्स की दशा सुधारने के साथ-साथ उनकी दिशा तय करने की बात कर रहे हैं और इसका स्वागत करना चाहिए। बच्चों में प्रतिभा चाहे योग या गायन या भाषण कला या अन्य लेखन किसी भी प्रतिस्पर्धा में हो, उसे नई शिक्षा नीति में जगह देना एक बड़ी बात है।
हम तो यह भी कहेंगे कि सरकार की अग्निपथ यो॓जना के तहत अगर 18 से 23 वर्ष तक के यूथ को सेना में शामिल होने का मौका मिल रहा है तो स्टूडैंट्स अपनी शैक्षणिक पात्रता को पूरा करते हुए इसका हिस्सा बन कर आगे बढ़ें। बल्कि अग्निपथ योजना एक तरह से शिक्षा नीति की ही एक कड़ी मानी जानी चाहिए। हमारी नई शिक्षा नीति अब यूथ विशेष रूप से स्टूडैंट्स का भविष्य संवारने जा रही है। भारी-भरकम किताबें या शोध करते रहना ही शिक्षा नहीं बल्कि टैलेंट के दम पर नौकरियां दिलाने वाली पहल का हम स्वागत करते हैं। अग्निपथ योजना देशभक्ति के साथ-साथ रोजगार भी है।
अगर थोड़ा पीछे चलें तो हम पाते हैं कि नई शिक्षा नीति का प्रारूप सन् 2020 में सामने आया था। कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद रहे इसमें कोई संदेह नहीं नई शिक्षा नीति का उद्देश्य 21वीं शताब्दी की आवश्यकताओं के अनुकूल स्कूल और कॉलेज की शिक्षा को अधिक समग्र, लचीला बनाते हुए भारत को एक ज्ञान आधारित जीवंत समाज और वैश्विक महाशक्ति में बदलकर प्रत्येक छात्र में निहित अद्वितीय क्षमताओं को सामने लाना है। नई शिक्षा नीति के अंतर्गत शैक्षिक ढांचे को बेहतर बनाने का सरकार का प्रयास अपने आप में एक सराहनीय कार्य है, लेकिन इसके समक्ष कई चुनौतियां भी हैं, एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बुनियादी ढांचे की कमी से संबंधित है। जिसे मजबूत करना होगा और यह सच है कि मोदी सरकार इसमें सक्षम है।
मैं नहीं जानती कि आप में से कितने लोग इस बात से सहमत होंगे कि ऑनलाइन शिक्षा स्कूली कक्षा की शिक्षा का विकल्प नहीं बन सकी। इससे मोबाइल या लैपटॉप लेकर बच्चे तीन-तीन घंटे बैठे रहते थे लेकिन जो बच्चा स्कूली कक्षा में अपने सहपाठियों के साथ रहकर सीखता है इसका पूरी तरह से अभाव पैदा हो गया। यह ठीक है कि कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा अपनाना हमारी मजबूरी भी रहा। अब वह वक्त गुजर चुका है। नई शिक्षा नीति को लागू करना हमारे शिक्षक जगत की ईमानदारी व निष्ठा पर निर्भर है तथा उनमें क्षमता है।
दरअसल नई शिक्षा नीति से बच्चे पूरी तरह से तकनीक से जुड़ जाएंगे। छोटी उम्र में ही उन्हें आत्मनिर्भर होने का अवसर मिलेगा। इस नीति से बच्चों का पूर्ण विकास होगा। शिक्षकों को भी पढ़ाने की शैली को बदलना होगा। मेरा सबसे आग्रह है कि जहां हमें संस्कारपूर्ण समाज की रचना करनी होगी वहीं हमें बच्चों को उच्च शिक्षा देनी होगी। आइये हम साथ-साथ चलते हैं ताकि नई पीढ़ी का भविष्य उज्जवल बना सकें। नई शिक्षा नीति के तहत एक गांव में एक शिक्षक होना चाहिए ताकि शिक्षा का प्रसार और शिक्षा की अनिवार्यता के बारे में जागरूकता बनी रहे। नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार एकल शिक्षक के भरोसे बड़ी संख्या में स्कूल चल रहे हैं, जो शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
पीएम मोदी जानते हैं कि सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा की गुणवत्ता की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि बच्चों को प्राइमरी शिक्षा, मातृ भाषा और क्षेत्रीय भाषाओं में दी जाएगी। छठी कक्षा से बच्चों का कौशल विकास शुरू हो जाएगा। बच्चों को मातृभाषा या स्थानीय भाषा में पढ़ाने को लेकर भी कई तरह के सवाल और अनिश्चितताएं हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में देश के अलग-अलग राज्यों से आए लोग रहते हैं। ऐसे में एक ही स्कूल में अलग-अलग मातृभाषा को जानने वाले बच्चे होंगे, लिहाजा सवाल है कि उन बच्चों का माध्यम क्या होगा? नई शिक्षा नीति रोजगार के अवसर अवश्य लाएगी, यह तय है। कहा गया है कि शिक्षा में एक भिन्न प्रकार की जाति प्रथा जन्म ले रही है जिसमें छात्र धन के आधार पर इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट और डॉक्टर आदि उपाधियों के लिए प्रवेश पाकर उच्च भावना से ग्रस्त और धनाभाव के कारण प्रवेश से वंचित हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं, जिससे असमानता की खाई बढ़ रही है। सामाजिक असंतुलन और विषमता इसका ही परिणाम है। सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए मानना है कि इस नई शिक्षा नीति के सकारात्मक पहलू नकारात्मक पहलुओं की अपेक्षा अधिक हैं।
मोदी जी नई शिक्षा नीति में टैलेंट को परखने के पक्षधर हैं और धीरे-धीरे इसका लाभ मिलेगा। एकदम कुछ नहीं होगा, हमें इस पहल का स्वागत करना है और इसके परिणामों का इंतजार करना है, जो पोजिटिव होंगे, यह तय है।