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रिजर्व बैंक और अर्थव्यवस्था

भारतीय रिजर्व बैंक ने दो माह के भीतर रेपो रेट में बढ़ौतरी की है। इसका अनुमान पहले से ही था। दरअसल रिजर्व बैंक के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। एक तरफ महंगाई है तो दूसरी तरफ विदेशी पूंजी का हो रहा पलायन।

भारतीय रिजर्व बैंक ने दो माह के भीतर रेपो रेट में बढ़ौतरी की है। इसका अनुमान पहले से ही था। दरअसल रिजर्व बैंक के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। एक तरफ महंगाई है तो दूसरी तरफ विदेशी पूंजी का हो रहा पलायन। रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। अर्थशास्त्रियों की नजर में रिजर्व बैंक द्वारा लिए गए फैसले से इस बात की उम्मीद लगी है कि रिजर्व बैंक सिर्फ महंगाई को लेकर ही प्रोएक्टिव नहीं बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने की कोशिशों में भी लगा हुआ है। दूसरी तरफ यह कहा जा रहा है कि रेपो रेट बढ़ाए जाने से आटो, होम और पर्सनल लोन महंगे हो जाएंगे। ऊंची ब्याज दरों का असर हर चीज पर पड़ता ही है।  होम लोन महंगे हो जाने का असर रिएल एस्टेट पर पड़ेगा और मकानों की बिक्री प्रभावित होगी। ब्याज दरें बढ़ने का असर कारोबारियों और उन लोगों पर पड़ेगा जिन्होंने पहले आसान मौद्रिक नीति के दौर में भारी-भरकम लोन लेकर उद्यमों या मकान, कार खरीदने के लिए लगा रखा है।
अमेरिका में फेडरल बैंक द्वारा ब्याज दरें बढ़ाए जाने से लोग अपनी पूंजी निकाल रहे हैं। रिजर्व बैंक के कदमों से विदेशी पूंजी का पलायन कितना रुकेगा, यह अभी देखना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंक ने जो कदम उठाए हैं उनके अलावा उसके पास कोई विकल्प भी नहीं है। महंगाई सुरसा की तरह बढ़ रही है जिससे उपभोग खर्च घटेगा। 
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि रेपो रेट में बढ़ौतरी का ​फिलहाल असर सीमित है। हाल ही के महीनों में अर्थव्यवस्था पटरी पर तेजी से लौट रही है और पारिवारिक आय में वृद्धि ब्याज दरें बढ़ने से पैदा हुए हालात से निपटने में मददगार साबित होगी। यदि बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ौतरी जारी रखी तो इससे देश की आर्थिक रफ्तार सुस्त पड़ने का खतरा पैदा हो जाएगा। मई में अचानक रेपो रेट बढ़ाए जाने के बाद बैंकों ने पहले ही ब्याज दरें बढ़ाना शुरू कर दिया था। यहां तक महंगाई का सवाल है, महंगाई केवल भारत की समस्या नहीं बल्कि पूरी दुनिया की समस्या बन चुकी है। अमेरिका ने कई पीढ़ियों से महंगाई का दंश नहीं झेला वहां भी मुद्रा स्फिति पिछले 40 वर्षों से सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है। एक तरफ कोविड के कारण 2.2 करोड़  अमेरिकियों के रोजगार नष्ट हुए हैं और वार्षिक उत्पादन में 30 प्रतिशत की गिरावट आई है।
 महंगाई के चलते लोगों का जीवन दूभर हो रहा है। अमेरिकी नीति निर्माता रिकार्ड महंगाई का ठीकरा सप्लाई चेन समस्याओं और कच्चे माल की कमी पर फोड़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अधिकांश अर्थशास्त्री मुद्रा की बढ़ती आपूर्ति को इसका मुख्य कारण बना रहे हैं। उपभोक्ता मांग तो बढ़ी हुई है लेकिन सप्लाई कम होने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ गई हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भी पूरे विश्व की परिस्थितियां प्रभावित हुई हैं  जिनसे अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। तमाम चुनौतियों के बावजूद रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में मुद्रा स्फीति की दर 6.7 रहने का अनुमान लगाया है। इसका अर्थ यही है कि रिजर्व बैंक को भी तुरन्त महंगाई काबू में आने की उम्मीद नहीं है, जबकि केन्द्रीय बैैंक ने चालू वित्त वर्ष में जीडीपी से जुड़े अनुमान को 7.2 फीसदी पर बरकरार रखा है। भारतीय अर्थव्यवस्था के सभी मानक बेहतरी के संकेत दे रहे हैं। हालांकि रेपो रेट बढ़ाए जाने का असर शेयर बाजार पर भी पड़ा है लेकिन शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव एक सामान्य बाजारी प्रक्रिया है इससे ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। 
भारत में खाद्यान्न का कोई संकट नहीं। कोविड की शुरूआत से लेकर अब तक गरीबों काे मुफ्त राशन दिया जा रहा है। मानसून अच्छा रहा तो खाद्यान्न उत्पादन प्रचुर मात्रा में होगा। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगोें को मुफ्त राशन देना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पूरी दुनिया की निगाहें भारत के गेहूं पर है। बीते वर्ष भारत ने 400 अरब डालर मूल्य का निर्यात कर ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। इसमें कृषि क्षेत्र का योगदान काफी महत्वपूर्ण है। अगर आर्थिक गतिविधियों को देखें तो भारत विश्व में सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन चुका है। भारत की सकल घरेलू उत्पाद में वार्षिक वृद्धि दर 8.7 प्रतिशत दर्ज की गई। कोरोना महामारी के प्रभाव और रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भले ही संकट के दौर से गुजर रही है लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से उछाल आ रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस वर्ष के अंत तक भारत कोविड से पहले वाली स्थिति को छू लेगा लेकिन हमें यथास्थिति में ​वापिस जाने में थोड़ा अधिक समय लगेगा, जिसे हमने खो दिया है। जीएसटी संग्रहण रिकार्ड तोड़ हो रहा है। यह इस बात का संकेत है कि आर्थिक गतिविधियां सामान्य ढंग से चल रही हैं। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार महंगाई के दबाव को कम करने के लिए बहुत सारे कदम उठा रही है। हाल ही में पैट्रोल-डीजल की कीमतों में कटौती करके उसने लोगों को राहत दी है। केन्द्र सरकार द्वारा कुछ और कदम उठाए जाने से उपभोक्ता मांग बढ़ेगी और लोग अपना खर्च बढ़ाएंगे। भारत के आर्थिक सलाहकार वी.ए. नागेश्वरण ने भी उम्मीद जताई है कि महामारी के बादल छंटने और भू राजनीतिक तनाव घटने के बाद देश की ग्रोथ बढ़ेगी और भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होकर उभरेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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