आरएसएस अर्थात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एक ऐसा संगठन है, जिसमें गहराई है। भारत देश का अपना इतिहास हो सकता है, लेकिन आजादी जिस दिन से हमें मिली तब से लेकर आज तक आरएसएस की रचनात्मक, जुझारू और मार्गदर्शन करने वाली भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। आज की तारीख में आरएसएस का अपना नाम और अलग शान है। क्योंकि मोदी सरकार अब पावर में है और यह सच है कि भाजपा को सत्ता में लाने के लिए पर्दे के पीछे जो भूमिका बनाई जाती है और किरदार मंच पर निभाए जाते हैं उसका पर्दा उठाने और गिराने का काम आरएसएस का ही है। इसीलिए आरएसएस के बारे में कहा जाता है कि वह भाजपा की जननी है। राजनीतिक दृष्टिकोण से इस मामले पर वाद-विवाद हो सकते हैं, लेकिन यह सच है कि आरएसएस से हर विपक्षी पार्टी को जबर्दस्त तकलीफ है।
हिन्दुत्व और राष्ट्रभक्ति को अगर वोटतंत्र से जोड़ दिया जाए तो आरएसएस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। आरएसएस अपने यहां किसी भी खास मौके पर या किसी भी गोष्ठी में विद्वान और जानकार लोगों को आमंत्रित करता रहा है। अब इस कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को बुलाए जाने की चर्चा छिड़ी। इसी महीने ‘भविष्य के भारत’ विषय को लेकर आरएसएस ने एक डिबेट आयोजित किया है, जिसके बारे में राहुल गांधी को आमंत्रित किए जाने का होहल्ला है। आरएसएस की ओर से कह दिया गया कि राहुल को न्यौता दिया जा सकता है, तो कांग्रेस की ओर से बड़ी टेड़ी-मेढ़ी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई। भाजपा और कांग्रेस परस्पर वैचारिक विरोधी पार्टियां हैं। आरएसएस से कांग्रेस की खुंदक पुरानी है। पंडित नेहरू भी उसके बारे में टिप्पणी करते रहे हैं, लेकिन यह सच है कि देश में अनुशासन और संस्कारों के साथ-साथ राष्ट्रभक्ति की नींव रखने में आरएसएस के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। कांग्रेस की ओर से आरएसएस को ऑन रिकार्ड जहरीला कहा जा रहा है।
आरएसएस ने हमेशा देश में अनुशासन को महत्व दिया है और उसने जब-जब कड़वी दवाई की बारी आई तो वह भाजपा को भी पिलाई है। राहुल गांधी कल इस समारोह में जाएं या न जाएं इसका फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर किसी से आपकी नहीं बनती और इरादा राष्ट्रभक्ति और देश के सुंदर भविष्य को लेकर किसी कल्पना से जुड़ा है तो वहां जाने में कोई बुराई नहीं होनी चाहिए। आखिरकार वार्ता के सिलसिले और अपने विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जब-जब कोई मंच तैयार होता है तो हमें उसमें शामिल होना चाहिए। आरएसएस ने सचमुच अगर राहुल गांधी को अपने यहां बुला लिया तो आप कुछ भी कहिए आपको अधिकार है, लेकिन पहले से ही राय बना लेना और कांग्रेस के लोग शब्दों की फायरिंग शुरू कर दें तो यह अच्छी बात नहीं। कितने ही गंभीर मुद्दे हैं चाहे वह आरक्षण हो या श्री राम मंदिर मामला, आरएसएस ने जो कहा, जब कहा भाजपा से कहा और डंके की चोट पर कहा। राष्ट्र पहले है, अनुशासन और संस्कृति पहले है और सत्ता में रहने के लिए क्या इसकी जरूरत नहीं, इस सवाल को लेकर कांग्रेस की ओर से श्रीराम मंदिर को लेकर भी हमेशा सवाल खड़े किए जाते रहे हैं।
आरएसएस ने कई मौकों पर राहुल गांधी के मंदिर-मस्जिद या चर्च से जुड़ने को लेकर कभी कोई टिप्पणी नहीं की, हां नेता लोग बयान देते रहते हैं लेकिन यह भी तो सच है कि इन्हीं टिप्पणियों को लेकर आज राहुल गांधी जब पलटवार करते हैं तो उन्हें आरएसएस का शुक्रिया अदा करना चाहिए। वह अपने पप्पू होने की भूमिका से उभर रहे हैं। लोकसभा में सदन के नेता यानी िक प्रधानमंत्री से गले मिलना अगर एक राजनीतिक हिसाब-किताब हो सकता है तो यह वोटों की दृष्टिकोण से कांग्रेस के रणनीतिकार अपने ढंग से सोच सकते हैं लेकिन इस किस्से के बाद अपने किसी सहयोगी की ओर देखकर आंख मार देना ये कौन सा हिसाब-किताब है। माफ करना आप कैमरे में कैद हो चुके हैं। आरएसएस ने अपने विरोध को भी स्वीकार किया है और किसी खास मुद्दे पर जब चाहे हर किसी का विरोध किया है। आरएसएस के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत अपनी बात प्रखर तरीके से रखते हैं। आरएसएस हर किसी को यह धर्म और राष्ट्रीयता निभाने के लिए प्रेरित कर है तो राहुल भी इससे अलग नहीं हैं। किसी समारोह का होना, न होना, आमंत्रण देना, न देना यह कांग्रेस और आरएसएस के निजी मामले हैं, परंतु पहले से जहर नहीं घोलना चाहिए। आरएसएस अनुशासन, राष्ट्रभक्ति और संस्कारों की जननी है, इस पर हमें नाज है और हम उनसे प्रेरणा लेते रहे हैं और लेते रहेंगे, क्योंकि वह हर राजनीतिक पार्टी से ऊपर है।