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कंपकंपी सर्दी और मानवीय भावना

यह भारत ही है जहां कभी वसंत बहार तो कभी गर्मी-सर्दी और पतझड़ के साथ-साथ बरसात देखने को मिलती है। इसका अर्थ हुआ कि हम प्राकृतिक रूप से संपन्न देश में जी रहे हैं। भारत के लिए यह किस्मत की बात है

यह भारत ही है जहां कभी वसंत बहार तो कभी गर्मी-सर्दी और पतझड़ के साथ-साथ बरसात देखने को मिलती है। इसका अर्थ हुआ कि हम प्राकृतिक रूप से संपन्न देश में जी रहे हैं। भारत के लिए यह किस्मत की बात है। लेकिन वैश्विक मौसम के चलते हर तरफ इसके तेवर बदल रहे हैं। अगर मौसम की बात करें तो आजकल दिल्ली विशेष रूप से उत्तरी भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। मकर संक्रांति का पर्व जो सूर्य से जुड़ा है और उनके तेज पर अगर सर्दी अपना असर दिखाते हुए हावी होने लगे तो फिर भरोसा करना ही पड़ता है कि ग्लेशियरों के पिघलने से दुनियाभर का मौसम खास तौर पर भारत की जलवायु बदल रही है। दिल्ली जैसे शहर में जहां एक और दो डिग्री के बीच में तापमान आम बात हो गयी है तो लोगों की परेशानी बढ़ना स्वाभाविक ही है। लेकिन इस टार्चर वाली सर्दी के बीच लोग एकजुट होकर उनकी मदद कर रहे हैं जो जरूरतमंद हैं। कपड़े-लत्ते की जिनके पास कमी है, सर्दी में उन तक पहुंचाएं जा रहे हैं।
नववर्ष जब से शुरू हुआ है तब से ही दिल्ली में अनेक कालोनियों के बाहर लोग लंगर भंडारे लगाकर खुशियां मनाते हैं। यह एक अच्छी भावना है और सर्दी जैसी भीषण चुनौती में भी लोग मदद अर्थात परोपकार की भावना के तहत काम कर रहे हैं तो यह भारत जैसे देश में ही संभव है। हालांकि सर्दी और परोपकार का कोई रिश्ता तो नहीं है लेकिन सर्दी के दिनों में जब किसी जरूरतमंद को आप कंबल या ऊनी वस्त्र प्रदान करते हैं या उनकी जरूरत का सामान प्रदान करते हैं तो मानवता की ही जय होती है। यही हमारे देश के संस्कार हैं और इस संस्कृति पर हमें नाज है। ऐसा ही एक मानवीय चेहरा हमेशा मेरी आंखों के सामने घूमता है। जिसके बारे में मैं सबको बताना भी चाहूंगी, वे हैं आजादपुर मंडी के राजकुमार भाटिया, जो हमारी चौपाल के साथी हैं। सबसे पहले वह रोटी बैंक द्वारा यह मिशन लेकर चल रहे हैं कि कोई भी भूखा न सोये।  अब इस सर्दी में उन्होंने स्वेटर बैंक खोला है, ताकि जो लोग अपने गर्म कपड़े नहीं पहनते वह इकट्ठे करके जरूरतमंद लोगों में बांटे। जिनके पास इस सर्दी में तन ढकने के लिए गर्म कपड़े नहीं हैं। हमारे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के सदस्य भी ऐसा ही काम कर रहे हैं, जिनका जितना समर्थ है वह लोगों में जुराबें, टोपियां, स्वेटर बांट रहे हैं। क्योंकि हम सब जानते हैं कि बूंद-बूंद से सागर भरता है। इसी तरह हम अगर छोटी-छोटी भी कोशिश करें तो बहुत से लोगों का भला हो सकता है।
अभी दो दिन पहले ही हमने श्री अश्विनी जी के जीवन के आदर्शों से प्रेरित होकर हमारे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब से जुड़े आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद लोगों को कुछ मदद की चाहे वह कंबलों या गर्म वस्त्रों या गर्म टोपियां या जुराबों से जुड़ी हो। यह एक टीम वर्क था और इसी के दम पर हम आज भी आगे चल रहे हैं। मुझे बड़ी खुशी होती है कि दिल्ली में अनेक संगठन और बड़े लोग मुसीबत के मौकों पर या किसी खुशी के मौके पर जरूरतमंदों की मदद करते हैं। यही एक सच्चा परोपकार है। यह हमें मानवता से जोड़ता है। दिल्ली की सड़कों पर ऐसे कितने ही लोग मिल जायेंगे जो फटे कपड़ों में चौराहों पर हाथ फैलाते नजर आते हैं, इनमें से कई बेचारे शारीरिक रूप से अक्षम भी होते हैं और जब उनको कंबल या गर्म कपड़ों की सहायता प्रदान की जाती है तो सचमुच हम एक इंसानियत का धर्म निभाते हैं। ऐसे सभी लोगों को भगवान परोपकारी बनाए रखें ताकि जरूरतमंद लोगों की मदद होती रहे, यही हमारा धर्म है। 
साथ ही मैं अक्सर यह भी सोचती हूं कि दिल्ली में जितने भी रैन बसेरे हैं वहां लोगों को एक छत मिल जाती है तो वहां भी अगर हीटर जैसी सुविधाएं मिलती रहें तो जरूरतमंद लोगों को और भी मदद हो सकती है। हम खुद मानवीय भावना से ही जुड़े हैं। कोरोना की जंग में अगर भारत एकजुट होकर उपाय न करता तो हमारे यहां भी बहुत तबाही हो सकती थी। सर्दी भी कुदरत का कहर है।  इसमें हम तुम कुछ नहीं कर सकते लेकिन अगर इंसानियत और परोपकार की भावना है तो हम सबकुछ कर सकते हैं। कई लोग और संगठन भी अपने बुजुर्गों के नाम पर, उनकी पुण्यतिथि पर  या जन्मदिवस पर जरूरतमंदों की मदद करते हैं। जरूरतमंदों की मदद करते हुए देखकर कोई भी इससे प्रेरित होकर इस पुण्य कार्य से जुड़ सकता है और अनेक लोग इसी भावना के तहत हमसे जुड़ रहे हैं तो हमें भी लगता है कि सुख-दु:ख में हम सब एक हैं। 
सोशल मीडिया पर लोग परोपकार को लेकर अच्छी बातें करते हैं इनमें से कई व्यावहारिक भी हैं। कुछ लोग स्कूली बच्चों को, तो कुछ बुजुर्गों को, तो कुछ सड़कों पर गरीब परिवारों की मदद करते हैं। हमारा मानना है कि जो सड़कों पर खुले में सोने वाले लोग हैं। अगर अस्थायी तौर पर ही सही कुछ टैंट वगैराह लगाने की व्यवस्था हो जाये तो यह एक अच्छी बात हो सकती है। जैसे कांवड़ के दिनों में अनेक लोग कांवड़ियों की सेवा के लिए टैंट वगैराह लगा देते हैं तो ऐसे लोग जिनके पास अपने घर बार नहीं हैं या जो लोग भीख मांग कर गुजारा कर रहे हैं, उन्हें इस कंपकंपाती सर्दी में खुले आसमान के नीचे सोने से बचाते हुए टैंट वगैराह की सुविधाएं मिल जायें तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। कुल मिलाकर सर्दी और इंसानियत जब मिलती है तो उन लोगों की मदद हो जाती है जो जरूरतमंद है और परोपकार भी हो जाता है। हमने भी बुजुर्गों के सम्मान और परोपकार की  भावना के तहत वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब शुरू किया था। हम इसी पर चल रहे हैं और चलते रहेंगे। फिर सर्दी या कोई भी मुसीबत अचानक आती है तो उस पर विजय पाई जा सकती है और विजय का सूत्रधार हमारी मानवीय भावनाएं और परोपकार ही हैं। 

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